बंद काग़ज़ मे ठिठुरते अक्षरों मे...
रुई के खामोश बैठे लश्करों मे...
थरथराती काँच वाली गाड़ियों मे...
बिन हवा के कंपकपाती झाड़ियों मे...
तोड़ अब अंगड़ाइयाँ उठने लगा है...
प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है...
कुछ हवाई चुंबनो की बारिशो मे...
बाँट क्या बस लूटने की ख्वाहिशों मे...
वस्त्र अंगों की निरी लुक्का छिपी मे...
नग्न होकर घूमती परदानशीं मे...
दिल अमावस रात मे पलने लगा है...
प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है...
काँच के गोले मे जलती रोशनी है...
उसकी चाहत मे पतंगो मे ठनी है...
जाने कैसी प्यार की ये बेकली है...
बाद मे उनको निगलती छिपकली है...
ख्वाब जलने का बड़ा खलने लगा है...
प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है...
हो खड़ी बाज़ार लैला नाचती है...
हीर भी बस जिस्म अपना बाँटती है...
माहिया सोनी के सौदे कर रहे हैं...
बेच अपना प्यार जेबें भर रहे हैं...
जाने क्या किस्से नये गढ़ने लगा है..
प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है...
बोलती तस्वीर बिकती प्यार की अब...
खोखली तकदीर मिटती प्यार की अब...
प्यार चौराहे पे औंधे मुँह पड़ा है...
जाने कबसे प्यार को तरसा बड़ा है...
ढूंढता खुद को, मगर थकने लगा है...
प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है...
20 टिप्पणियाँ:
bhai is baar to tumne dil khus ker diya
bahut aacha......
WAAH! KAMAL KA LIKH HAI!
बहुत सुन्दर रचना
पर
प्यार कभी नहीं बिकता, क्योकि जो बिकता है वो प्यार नहीं होता
सुन्दर बिम्ब दिये हैं आपने 'बिना हवा के कँपकपाती झाड़ियाँ' और भी
bahut achhi kavita.
बहुत बढ़िया गीत!
जो बिकता है वो प्यार हो ही नहीं सकता ....कितने भी किस्से गढ़ लिए जाएँ ...प्यार झूठ नहीं हो सकता ...यदि प्यार है तो ...
Bahut khoobasurat rachana-----hardik badhai.
पहला बंद बहुत अच्छा है।
बहुत सुंदर
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
pahli baar aay hun .............bahut achche
फूल तो खिलता नहीं अब बाग में
काटों से बाजार अब हिलने लगा है
अब तो कोई पौध लगालो यारों
आधियों में घर भी अब उड़ने लगा है |
रत्नेश त्रिपाठी
bahut bahut Dhanyawad....mitron....
main samajhta hun prem bikau nahi ho sakta...par ye kavita aaj pyaar ke badalte paimano se dukhi ho likhi hai...
बहुत सुन्दर रचना है ! आपकी हर कविता संग्रहनीय है ! पर एक बात यहाँ कहना चाहूँगा कि सच्चा प्यार बिकता नहीं है ... और जो बिकता है वो प्यार नहीं है !
@indraneel ji...fir se kahunga...ye vartaman paristhitiyon ko dhyan me rakhkar likhi hai...jab Archies gallery me pyaar bikta hai....MMS me pyaar bikta hai....sach kahun to Dev D dekh kar mehsus hua sab...
बहुत सुन्दर रचना है बधाई।
आजकल के प्यार की परिभाषा बड़े अच्छे से बयां की है
jo archies gallery me aur MMS me bike pyaar ho hi nahi sakta ...........
Shukriya mitron....
bahut sundar rachana
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