नमक भरी कुछ ओस मिली...

Author: दिलीप /


आसमान की सारी रंगत, आज पड़ी बेहोश मिली...
चाँद अधूरा, टूटे तारे, रात बड़ी खामोश मिली...

भरम मुझे था ये आईना मुझको सच दिखलाएगा...
अलग अलग नकली सी सूरत, दिखती सी हर रोज़ मिली...

कैसे जी लूँ भला बताओ, इन धड़कन के टुकड़ों पर...
कुछ साँसों का क़र्ज़ मिला और एक ज़िंदगी बोझ मिली...

मुझे सहारा देने खातिर, ग़म बाहें फैलाए है...
तन्हाई की इक अनचाही रोज़ मुझे आगोश मिली...

किसी को तारा, चाँद किसी को, किसी को है सूरज की चाह...
लगा सोचने खुद की चाहें, एक अधूरी खोज मिली....

बड़े सहारे की उम्मीदें, किए हुए था रूह से मैं...
बिखर गयी सारी उम्मीदें, वो भी जिस्म फ़रोश मिली...

दीवारों को शब भर मैने, शेर ज़रा से क्या बोले...
सुबह सुबह तकिये के ऊपर, नमक भरी कुछ ओस मिली...

होगा क्या...

Author: दिलीप /


टुकड़े जो दिल के छोड़े हैं, उनको अपने पास रखो...
चीज़ मेरी ही नहीं रही तो, साथ सज़ा के होगा क्या...

क्यूँ तुम झूठी उम्मीदों को सिरहाने रख जाते हो...
नींद नहीं जब बची आँख में, ख्वाब दिखा के होगा क्या...

गम को बस आँखों तक रखो, दिल को भी न आहट हो...
दिल की खाली तस्वीरों को हार चढ़ा के होगा क्या...

अब तो उम्मीदों की बोरी, सिर पर मेरे मत रखो....
मावस के अंधे को बोलो, चाँद दिखा के होगा क्या...

माना तेरी एक छुवन पत्थर सोना कर सकती है...
राख हो चुका है दिल मेरा, हाथ लगा के होगा क्या...

जो दिन भर इक जंग पेट की, जीने खातिर लड़ता हो...
इश्क़, चाँद, सागर की उसको, नज़्म सुना के होगा क्या ...

मिला मशविरा नज़्म भेज दो, लौट के वो आ जाएँगे...
वो मुझको पढ़ न पाया, तो शेर पढ़ा के होगा क्या...

तुझसे सच्चा प्यार मिला..

Author: दिलीप /


अजब कशमकश है दिल में, है ये काँटा या फूल खिला...
टिका हुआ तारा माँगा, मुझको आवारा चाँद मिला....

जमा किया था तुझे जहाँ पर, दिल की वो गुल्लक फोड़ी...
तेरा कुछ भी हाथ न आया, बस इक टूटा काँच मिला....

ग़म ने खड़ी क़तारों में भी, एक हमें चुन रखा है...
थोड़ा तुझसे पहले आया, थोड़ा तेरे बाद मिला...

एक तुम्हारी हँसी की झालर खींच यहाँ तक ले आई...
थोसा सा जो नीचे उतरे, दिल तेरा बरबाद मिला...

प्यार के सागर के धोखे में, झाँका तेरी आँखों में...
मुझ प्यासे को इन आँखों में, सूखा इक तालाब मिला...

दिल की रेत पे कदम तुम्हारे एक निशानी छोड़ गये...
गौर से देखा निशाँ को मैंने, मरा हुआ एहसास मिला...

गले लगाया, प्यार से चूमा, मुझे छोड़ फिर नहीं गयी...
मौत गिला क्या करूँ मैं तुझसे, तुझसे सच्चा प्यार मिला...

वो इक मजदूर था...

Author: दिलीप /


वो इक मजदूर था...
रात भर उसके सिर पर...
नज़मों का बोझ रखता रहा...
चाँद, तारे, सागर, अंबर...
मय, साक़ी, पैमानों के झुंड...
कितना कुछ वो एक नट की तरह....
सिर पर संहालता रहा...
सुबह होने को थी...
कुछ झिझक कर बोला..
कोई ऐसी नज़्म भी रखो न...
जिसमें रोटी के कुछ टुकड़े हो...
या गुड की ढेली...
या कुछ भी न हो तो...
शक्कर का पानी ही सही...
उम्मीद तो होगी कि..
बोझ में कुछ खाने को भी है....
मेरी ग़लती थी, भूल गया था..
वो इक मजदूर था...