तो क्या बुरा होगा...

Author: दिलीप /

मैं रोऊँ तो खुदा हँसता रहे, तो क्या बुरा होगा...
ये कारोबार यूँ चलता रहे, तो क्या बुरा होगा...

मुझे तन्हाई मे अक्सर तुम्हारा साथ मिलता है..
ये मेरा दिल यूँही तन्हा रहे, तो क्या बुरा होगा...

तू जीवन भर जलेगा क्या, यूँही अंजान लपटों मे...
घना बादल तुझे परदा करे, तो क्या बुरा होगा...

घमंडी चाँद को देखा, पिघलते बर्फ की तरह...
मेरी आँखों मे आँसू ही रहे, तो क्या बुरा होगा....

कहाँ अब चाहता हूँ तुम हथेली से छुओ मुझको...
दिया लेकिन तेरी लौ मे जले, तो क्या बुरा होगा...

तुझे देखे तो आऊँ याद मैं, चाहत नहीं लेकिन...
निशाँ मेरे तेरा किस्सा कहे, तो क्या बुरा होगा...

तुम्हारी ज़ुल्फ, चेहरे, पाँव को छूती रहे कलियाँ..
मेरी हर राह मे काँटे रहे, तो क्या बुरा होगा...

पुराने घाव भरना है, नये मिलने की तैयारी...
पुराना ज़ख़्म हर रिसता रहे, तो क्या बुरा होगा...

नमक पानी मे मिल जाने से सावन तो नही आता...
मगर पतझड़ मे कुछ नदियाँ बहे, तो क्या बुरा होगा...

मेरे घर की ये दीवारें, नशे मे हो भले डूबी...
अगर आँगन मे तुलसी भी रहे, तो क्या बुरा होगा...