बनिये को पूजते या ठाकुर को पूजते हैं...

Author: दिलीप /

 
हूँ दिल की खबर लेता, वो जात पूछते हैं...
मैं चाँद पूजता हूँ, वो रात पूजते हैं...

कुछ इस कदर है बिगड़ी आबो हवा यहाँ पर...
मेरे शहर मे अक्सर इंसान जूझते हैं...

धरती है राधिका की, मीरा की, गोपियों की...
दो प्यार करने वाले दरिया मे कूदते हैं...

उसका कुसूर ये है, वो ख्वाब देखती है...
हर रोज कलाई मे कंगन ही टूटते हैं...

कातिल है मोहब्बत का मालूम है ज़माना...
तो इश्क़ करके खुद की क़ब्रें क्यूँ खोदते हैं...

  मरते रहे दीवाने, मिटती रही मोहब्बत...
क़ानून के खुदा तो बस आँख मून्दते हैं...

औरत हुई है पैदा, ग़लती हुई खुदा से...
सबकी नज़र के घेरे इज़्ज़त ही लूटते हैं...

सोचा जहाँ की रौनक पर भी कलम चलाऊं...
न नज़्म बन रही है, न शेर सूझते हैं...

इस आग के दरिया के उस पार है ज़माना...
क्या होगा उसे पाकर, लो हम तो डूबते हैं...

उनसे जो जातियों के, ठेके चला रहे हैं...
है क्या भला खुदा की, हम जात पूछते हैं...

बनिये को पूजते या ठाकुर को पूजते हैं...
या मंदिरों मे कान्हा और राम पूजते हैं....