फागुन को फिर ना जाने दें...(पिछली होली पर लिखी एक रचना)

Author: दिलीप /

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2/8/10
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अपनों मे जब मृत प्राय पड़े, और गिद्ध स्वान सब नोचेंगे...
जब अपना सब लुट जाएगा, क्या तब जाकर कुछ सोचेंगे...
जब लाल किले से गिर भू पर, ये तीन रंग बँट जाएँगे...
पापों को धोने जाएँगे, सब गंगा तल घट जाएँगे...

इस बार होलिका संग सभी, ये पाप कर्म जल जाने दें...
नव क्रांति कोई हो जाने दें, फागुन को फिर ना जाने दें...

कोई भोजन से मर जाता हैं, कोई सोने से मर जाता है....
कोई कुछ पाने से कोई, कुछ खोने से मार जाता है...
जाने कितने ही राहों पे, यूँ पड़े पड़े ही गुजर गये...
मोती स्वासों के कितनों के, महलों मे यूँही बिखर गये...

इस भेड़चाल मे जीवन के, यूँ खुद को क्यूँ बह जाने दें...
नव रंग भरे इस जीवन में, फागुन को फिर ना जाने दें...

क्या लुटा अस्मिता भारत भी, अपने घुटनों पे रेंगेगा....
क्या पूरब यूँ जल जाएगा, और पश्चिम आँखें सेंकेगा...
क्या नाम हमारे होंगे कल, अपशब्दों के पर्याय बने...
क्या फिर इतिहास के ये पन्ने, कालिख से होंगे स्याह सने....

क्या यूँही बिना अर्थ जीवन, हम स्वानों सा बन जाने दें....
इन रंगों संग कुछ रक्त बहे, फागुन को फिर ना जाने दें...

नव परिवर्तन की आग आज, कुछ रक्त हमारा चाह रही...
मस्तक पल मे कट जाता है, ये फूलों की है राह नही...
माँ के आँचल मे दुश्मन के, सिर भेंट चढ़ाने होते है...
इस रुधिर रंग मे सने हुए, कुछ पुष्प सजाने होते है...

अरि के रुधिरों की लाली में, अब पूरब को सज जाने दें...
हो जाए शत्रुमृत्युमिलन, फागुन को फिर ना जाने दें...

बन रक्तबीज का रक्त बिंदु, जब क्रांति क्रांति हम खेलेंगे...
हंसते हंसते माँ की खातिर, छाती पे हमले झेलेंगे....
जब भय देंगे अरि सेना को, जब हाहाकार मचाएँगे...
जब अपनों के अंदर बैठे, भय का विस्तार मिटाएँगे....

तब ही बरसों से झुका हुआ, भारत फिर शीश उठाएगा...
होगा फिर सुख संचार नया, फिर फागुन बीत ना पाएगा....

13 टिप्पणियाँ:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छा लिखते हैं .. बहुत संभावनाएं हैं आपमें .. पर महात्‍मा गांधी ने अहिंसा के बल पर स्‍वतंत्रता प्राप्‍त की थी .. इसे न भूलें !!

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया रचना..संगीता जी से सहमत!

वाणी गीत ने कहा…

होगा फिर सुख संचार नया ...फागुन बीत ना पायेगा ...
इस भयंकर गर्मी में नए उत्सव का यह फागुनी गीत बहुत भाया ...!!

दिलीप ने कहा…

main Sangeeta ji se bilkul bhi sehmat nahi hun....agar itihaas ko khangale to pata chalta hai Gandhi ji ke kisi andolan ne hame azadi nahi dilayi...ye to azad hind fauj ki wajah se hue british sena me vidroh ki vajah se mili...

Ra ने कहा…

बहुत खूब मित्र .....कम उम्र है आपकी ...... पर लिखाई में परिपक्वता है कोई अपनी ऐसी रचना बताएं जो आपको बहुत पसंद हो ...चाहे पाठको की उस पर कोई प्रतिक्रिया हो ....मैं प्रतीक्षा में हूँ http://athaah.blogspot.com/

Prem Farukhabadi ने कहा…

Bahut achchha likhte ho .Badhai!!

SANSKRITJAGAT ने कहा…

बहुत ही अच्छा लिखते है

आपके ब्लोग पर आकर खुशी हुयी


शुभ कामनाये

arvind ने कहा…

bahut khub, badhiya rachna.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बेहतरीन शब्द कम पद जायेगा इस रचना के लिए....आप को ब्लॉग जगत कि रौशनी हो ! और क्या कहूँ, आपकी हर कविता कि तरह यह कविता भी अति उत्तम है !

Himanshu Mohan ने कहा…

आपकी लेखनी संभावनाओं से भरपूर है और आपकी सज्जा समझ बेहतरीन!
जारी रहिए।
जारी रहिए मैं इसलिए कहता हूँ कि आप के लेखन से कुछ भला ही होगा साहित्य का, बुरा नहीं - यानी गुरु नानक के वचन जैसी सोच है कि लिखते रहिए - आगे और अच्छा लिखेंगे। अच्छाई की भी कोई सीमा नहीं होती।
आप का संदर्भ अपनी पोस्ट पर आज देख पाया, कल तो सांस्कृतिक संध्या से सीधे मोबाइल पर रिपोर्टिंग चल रही थी।

Tej ने कहा…

hamesha ki tarahn behtareen

Unknown ने कहा…

bahut ache loved it...

www.xcept.blogspot.com

दिलीप ने कहा…

dhanyawaad mitron...

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