मचलता था बचपन मे जिनके लिए मैं,
वो सब आज अपने लिए पा रहा हूँ,
मैं अब छोड़कर सारे वादे इरादे,
बिना शर्त कोई जिए जा रहा हूँ,
न जाने इन आँखों मे फिर क्यूँ नमी है,
माँ शायद मुझे अब तुम्हारी कमी है,
वो मिट्टी के बर्तन वो गुड्डे वो गुड़िया,
वो बचपन के जो खेल तुमने सिखाए,
कहीं खो गये सब वो यादों मे छिपकर,
जवानी मे जब पैर हमने बढ़ाए,
मैं बढ़ आया फिर भी वो यादें थमी है,
माँ शायद मुझे अब तुम्हारी कमी है,
वो सब जख्म मेरे, वो मरहम तुम्हारा,
वो गम मे मेरे नम थी आँखें तुम्हारी,
वो राहें थी मुश्किल, मगर बस चले हम,
वो सर को उठा थामे उंगली तुम्हारी,
उन्ही राहों पे अब भी आँखें जमी है,
माँ शायद मुझे अब तुम्हारी कमी है,
वो तस्वीर धुंधली सी अब भी बची है,
वो पल भर बिछड़ना, वो मेरा बिलखना,
वो आँचल मे छुप छुप के तुझको सताना,
वो गोदी मे सोना, वो घुटनो सरकना,
तेरी प्यारी सूरत मे नीयत रमी है,
माँ शायद मुझे अब तुम्हारी कमी है,
वो यादें सुनहरी ना मिटने दो फिर तुम,
मुझे फिर से आवाज़ देकर बुला लो,
तुम्हारे बिना लड़ सकूँगा ना जग से,
मुझे अपने आँचल मे इक पल सुला लो,
वो लोरी तुम्हारी बहुत लाज़मी है,
माँ शायद नहीं, बस तुम्हारी कमी है...
28 टिप्पणियाँ:
aah !!!! padhkar rone ko mann kiya...
maaf kijiyega par isse jyada kuch na kah paunga.......
Maa aisi hi hoti hai...
तेरी प्यारी सूरत मे नीयत रमी है,
माँ शायद मुझे अब तुम्हारी कमी है,
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यह कमेंट अपना ही(भारतीय) ब्लाग समझ कर किया है ईसलिये डिलीट नही करें, आगे बढने मे एक भारतीय साईट को योगदान दें।
बेहद भावुक रचना 1माँ की कमी कोई नहीं पूरी कर सकता
दिल को छू गयी आप की भावपूर्ण कविता .
माँ के स्नेह और ममता का दुनिया में कोई सानी नहीं.माँ की कमी कोई नहीं पूरी कर सकता.
उसका प्यार अद्वितीय है अनमोल है वो पास न हो तो भी अपने होने का अहसास दे जाती है.
**मेरी पोस्ट par आप की टिप्पणी पर कहना चाहती हूँ--
-जी हाँ उन सज्जन Suman ji ने दो बार एक ही कमेन्ट 'nice ' अलग अलग समय पर दिया
socha to था मिटा दूँ..फिर लगा नहीं उनकी यह Mahanta! 'जग जाहिर होनी चाहिये
वैसे भी वे अपनी इस आदत के लिए अखबार की सुर्खियाँ भी बटोर चुके हैं.
bade bade blograthi kuchh nahin kar sake in ke 'NICE'ka ...ham tum kya karenge?
bilkul sahi kahte hain aap :)..
shukriya.
भावुक रचना....
अति उत्तम रचना ......माँ के बिना तो जग सुना है .
maa aesi hi hoti hai ..bahut bhavuk kar dene waali kavita likhi hai aapne shukriya badhaai ke liye aapke blog par aana accha laga
मुझे फिर से आवाज़ देकर बुला लो,
तुम्हारे बिना लड़ सकूँगा ना जग से,
सही है जग की विसंगतियों से लड़ने के लिये माँ का आशीर्वाद तो जरूरी ही है
बस...ये गीत याद आ गया.....
माँ मुझे अपने आँचल मे छुपा ले,गले से लगा ले,कि और मेरा कोई नही...
http://www.in.com/music/search.php?type=song&search_data=maa+mujhe+apane
Ankhe nam ho gai bhai...
aapki profile se hi dil ko bahut sukun mila.
aap bahut hi achchha likhte ho...!
aadrniy aadaab arz he apke alfaaz maashaa allah maan kaa drsn flsfaa yaad dilaate hen schchaai yhi he aaj visv or puri kaainaat men sbse anmol he to voh maan he or maan jo jnm deti he jiski god men hm plte hen saath hi jiski mitti men hm khelte hen voh sr zmin bhi maan he maan tuje slaam . akhtar khan akela kota rajasthan
वो सब जख्म मेरे, वो मरहम तुम्हारा,
वो गम मे मेरे नम थी आँखें तुम्हारी,
वो राहें थी मुश्किल, मगर बस चले हम,
वो सर को उठा थामे उंगली तुम्हारी,
उन्ही राहों पे अब भी आँखें जमी है,
माँ शायद मुझे अब तुम्हारी कमी है,
आँखे नम हो गई.. क्या कहूं कहने के लिए शब्द नही है।
Sabhi ka Abhar....
बहुत ही भावुक रचना , मां से बढकर दुनिया में कुछ नहीं ।
दिल को छू लेने वाली कविता लिखी है आपने। हम तो आपके साथ अपना ये विचार सांझा करना चाहते हैं कि जो मां का नहीं वो किसी का नहीं हो सकता।
ek amit chap chod gayee hai aapkee ye bhavvibhor kar dene walee rachana .
बहुत सुंदर रचना है...माँ की गोद याद आ गई ...भावपूर्ण कविता
...प्रसंशनीय !!!
आँख भरी आई!
बेहद सुंदर.
-Rajeev Bharol
dhanyawad mitron
nice poem yaar.......
बहुत बेहतर..... क्या कहें ...शब्द नहीं मिल रहे .....हर बार की तरह ....एक जोरदार प्रस्तुति
हर पोस्ट पर एक फोटोग्राफ. लिखने का नया अंदाज अच्छा लगा.
मेरे पास माँ ही नही है बस शब्द है बचा है
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