प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है....

Author: दिलीप /


बंद काग़ज़ मे ठिठुरते अक्षरों मे...
रुई के खामोश बैठे लश्करों मे...
थरथराती काँच वाली गाड़ियों मे...
बिन हवा के कंपकपाती झाड़ियों मे...

तोड़ अब अंगड़ाइयाँ उठने लगा है...
प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है...

कुछ हवाई चुंबनो की बारिशो मे...
बाँट क्या बस लूटने की ख्वाहिशों मे...
वस्त्र अंगों की निरी लुक्का छिपी मे...
नग्न होकर घूमती परदानशीं मे...

दिल अमावस रात मे पलने लगा है...
प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है...

काँच के गोले मे जलती रोशनी है...
उसकी चाहत मे पतंगो मे ठनी है...
जाने कैसी प्यार की ये बेकली है...
बाद मे उनको निगलती छिपकली है...

ख्वाब जलने का बड़ा खलने लगा है...
प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है...

हो खड़ी बाज़ार लैला नाचती है...
हीर भी बस जिस्म अपना बाँटती है...
माहिया सोनी के सौदे कर रहे हैं...
बेच अपना प्यार जेबें भर रहे हैं...

जाने क्या किस्से नये गढ़ने लगा है..
प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है...

बोलती तस्वीर बिकती प्यार की अब...
खोखली तकदीर मिटती प्यार की अब...
प्यार चौराहे पे औंधे मुँह पड़ा है...
जाने कबसे प्यार को तरसा बड़ा है...

ढूंढता खुद को, मगर थकने लगा है...
प्यार अब बाज़ार मे बिकने लगा है...

20 टिप्पणियाँ:

Tej ने कहा…

bhai is baar to tumne dil khus ker diya
bahut aacha......

nilesh mathur ने कहा…

WAAH! KAMAL KA LIKH HAI!

M VERMA ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना
पर
प्यार कभी नहीं बिकता, क्योकि जो बिकता है वो प्यार नहीं होता
सुन्दर बिम्ब दिये हैं आपने 'बिना हवा के कँपकपाती झाड़ियाँ' और भी

Rajeev Bharol ने कहा…

bahut achhi kavita.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया गीत!

वाणी गीत ने कहा…

जो बिकता है वो प्यार हो ही नहीं सकता ....कितने भी किस्से गढ़ लिए जाएँ ...प्यार झूठ नहीं हो सकता ...यदि प्यार है तो ...

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

Bahut khoobasurat rachana-----hardik badhai.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

पहला बंद बहुत अच्छा है।

Shekhar Kumawat ने कहा…

बहुत सुंदर


bahut khub


shekhar kumawat


http://kavyawani.blogspot.com/

आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' ने कहा…

pahli baar aay hun .............bahut achche

aarya ने कहा…

फूल तो खिलता नहीं अब बाग में
काटों से बाजार अब हिलने लगा है
अब तो कोई पौध लगालो यारों
आधियों में घर भी अब उड़ने लगा है |
रत्नेश त्रिपाठी

दिलीप ने कहा…

bahut bahut Dhanyawad....mitron....

दिलीप ने कहा…

main samajhta hun prem bikau nahi ho sakta...par ye kavita aaj pyaar ke badalte paimano se dukhi ho likhi hai...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है ! आपकी हर कविता संग्रहनीय है ! पर एक बात यहाँ कहना चाहूँगा कि सच्चा प्यार बिकता नहीं है ... और जो बिकता है वो प्यार नहीं है !

दिलीप ने कहा…

@indraneel ji...fir se kahunga...ye vartaman paristhitiyon ko dhyan me rakhkar likhi hai...jab Archies gallery me pyaar bikta hai....MMS me pyaar bikta hai....sach kahun to Dev D dekh kar mehsus hua sab...

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है बधाई।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

आजकल के प्यार की परिभाषा बड़े अच्छे से बयां की है

बेनामी ने कहा…

jo archies gallery me aur MMS me bike pyaar ho hi nahi sakta ...........

दिलीप ने कहा…

Shukriya mitron....

Anamikaghatak ने कहा…

bahut sundar rachana

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