दो पातियाँ....अम्मा और बिटिया........

Author: दिलीप /


"अम्मा इतना सुख मिलता है, कभी पराया लगा नही...
हर रिश्ता मुझको लगता है, पहचाना सा, सगा कोई...
दिन भर यूँही लेटे- लेटे, हंस के दिवस बिताती हूँ...
तूने जो पहनाई, दिन भर, वो पायल छनकाती हूँ...

यहाँ ससुर जी बापू जैसे, सासू, अम्मा हैं तुझसी...
यहाँ भी आँगन रोज़ सुबह उठ, पूजा करती हूँ तुलसी...
खुशहाली के मौसम, दुख के दूर हुए सब पतझड़ हैं...
कलम ठीक से नही चल रही, तभी लिखावट गड़बड़ है...

रेशम की साड़ी पहनूँगी, अबकी बार दीवाली पर...
जेवर तन पे यूँ चमकेंगे, जैसे फल हों डाली पर...
नही निकलती कभी धूप मे, और निखर आया चेहरा...
खुश हूँ यहाँ बहुत मैं, देखो तू भी अम्मा खुश रहना"...

"मैं तो तेरी माँ हूँ बेटी, मुझको क्या समझाती है...
जब भी खोल लिफ़ाफ़ा देखा मिलती गीली पाती है...
इन टूटे अक्षर मे तेरा, सूनापन दिख जाता है...
कुछ गाढ़े शब्दों मे तेरा, दर्द उभर कर आता है...

छनकी पायल बता रही, तुझको इक पल का चैन नही...
ये टेढ़ी सी कहे लिखावट, कबसे सोए नैन नही...
खुशहाली ये जता रही, इस बार भी ना आ पाएगी...
साड़ी कहती, ये दीवाली, भी सूनी रह जाएगी...

कुम्हलाया सा रूप हो गया, तन पे एक नही गहना...
और मुझे तू कहती बेटी अम्मा तू भी खुश रहना....
खाली खाली मन से कैसे समझ नदी ये बहती है...
तू रोए, मैं सुखी रहूँ, ये कैसी बातें करती है"...

19 टिप्पणियाँ:

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

माँ बेटी का प्रगाढ प्रेम
सुन्दर भावाभिव्यक्ति

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

कुम्हलाया सा रूप हो गया, तन पे एक नही गहना...
और मुझे तू कहती बेटी अम्मा तू भी खुश रहना....
खाली खाली मन से कैसे समझ नदी ये बहती है...
तू रोए, मैं सुखी रहूँ, ये कैसी बातें करती है"...

बहुत खूब ....!!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

दिलीप जी वाह ! क्या गजब का लिखते हैं आप ! हर रचना मन को मोह लेती है .... आँखों को रोने पे बिबस कर देती है ... इतनी असरदार रचना तो बहुत दिन बाद पढने को मिली ! बधाई !

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

व्यथा की ऐसी सरल और प्रभावशाली प्रस्तुतियाँ अब बहुत कम दिखती हैं। आप ने तो पुराने कवियों की याद दिला दी।

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

Bahut sundar aur bhavanaatmak kavita----man betee ke manobhavon ko apane bahut bareekee se chitrit kiya hai.
Poonam

बेनामी ने कहा…

bahut hi behtareen...
dil ko chhu gayi..
aane waali rachnaon ka intzaar rahega....
mere blog par pehli baar ek English poem ...
jaroorpadhein aur apni pratikriya dein...

बेनामी ने कहा…

aur ho sake to follow bhi karein.. i already following you...

दिलीप ने कहा…

Shuiya mitron in protsahan bhare shabdon ka...

Archana Chaoji ने कहा…

जब " दिल की कलम " चलेगी ऐसी ही " पाती " लिखेंगी...
इतनी कम उम्र और इतने गहरे भाव.......???....(शब्द नहीं)

लता (ऑरकुट से ) ने कहा…

दिलीप जी, बहुत सुन्दर और भावनात्मक कविता लिखी है आपने.
काफी समय के बाद ऐसी रचना पड़ने को मिली है......
शुक्रिया आपका

राइना ने कहा…

achchi kavita

vandana gupta ने कहा…

बहुत ही मार्मिकता से वर्णन किया है……………………ाअति सुन्दर

अंजना ने कहा…

सुन्दर भाव भरी रचना है|बधाई....

दिलीप ने कहा…

Dhanyawaad mitron....

Dev K Jha ने कहा…

बहुत अच्छा...
बहुत दिनों के बाद कुछ अच्छा पढने को मिला... बहुत बहुत बधाई.

Udan Tashtari ने कहा…

अभी अर्चना जी के यहाँ सुना..भावुक करती अभिव्यक्ति!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ही मार्मिक ... गजब लिखते हैं आप ....

सागर नाहर ने कहा…

आँखें नम हो गई।
एक माँ को अपनी बिटिया का दर्द जानने के लिए उसकी पाती की भी जरूरत नहीं होती होगी शायद!

Onkar ने कहा…

बहुत मार्मिक रचना

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