"अम्मा इतना सुख मिलता है, कभी पराया लगा नही...
हर रिश्ता मुझको लगता है, पहचाना सा, सगा कोई...
दिन भर यूँही लेटे- लेटे, हंस के दिवस बिताती हूँ...
तूने जो पहनाई, दिन भर, वो पायल छनकाती हूँ...
यहाँ ससुर जी बापू जैसे, सासू, अम्मा हैं तुझसी...
यहाँ भी आँगन रोज़ सुबह उठ, पूजा करती हूँ तुलसी...
खुशहाली के मौसम, दुख के दूर हुए सब पतझड़ हैं...
कलम ठीक से नही चल रही, तभी लिखावट गड़बड़ है...
रेशम की साड़ी पहनूँगी, अबकी बार दीवाली पर...
जेवर तन पे यूँ चमकेंगे, जैसे फल हों डाली पर...
नही निकलती कभी धूप मे, और निखर आया चेहरा...
खुश हूँ यहाँ बहुत मैं, देखो तू भी अम्मा खुश रहना"...
"मैं तो तेरी माँ हूँ बेटी, मुझको क्या समझाती है...
जब भी खोल लिफ़ाफ़ा देखा मिलती गीली पाती है...
इन टूटे अक्षर मे तेरा, सूनापन दिख जाता है...
कुछ गाढ़े शब्दों मे तेरा, दर्द उभर कर आता है...
छनकी पायल बता रही, तुझको इक पल का चैन नही...
ये टेढ़ी सी कहे लिखावट, कबसे सोए नैन नही...
खुशहाली ये जता रही, इस बार भी ना आ पाएगी...
साड़ी कहती, ये दीवाली, भी सूनी रह जाएगी...
कुम्हलाया सा रूप हो गया, तन पे एक नही गहना...
और मुझे तू कहती बेटी अम्मा तू भी खुश रहना....
खाली खाली मन से कैसे समझ नदी ये बहती है...
तू रोए, मैं सुखी रहूँ, ये कैसी बातें करती है"...
19 टिप्पणियाँ:
माँ बेटी का प्रगाढ प्रेम
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
कुम्हलाया सा रूप हो गया, तन पे एक नही गहना...
और मुझे तू कहती बेटी अम्मा तू भी खुश रहना....
खाली खाली मन से कैसे समझ नदी ये बहती है...
तू रोए, मैं सुखी रहूँ, ये कैसी बातें करती है"...
बहुत खूब ....!!
दिलीप जी वाह ! क्या गजब का लिखते हैं आप ! हर रचना मन को मोह लेती है .... आँखों को रोने पे बिबस कर देती है ... इतनी असरदार रचना तो बहुत दिन बाद पढने को मिली ! बधाई !
व्यथा की ऐसी सरल और प्रभावशाली प्रस्तुतियाँ अब बहुत कम दिखती हैं। आप ने तो पुराने कवियों की याद दिला दी।
Bahut sundar aur bhavanaatmak kavita----man betee ke manobhavon ko apane bahut bareekee se chitrit kiya hai.
Poonam
bahut hi behtareen...
dil ko chhu gayi..
aane waali rachnaon ka intzaar rahega....
mere blog par pehli baar ek English poem ...
jaroorpadhein aur apni pratikriya dein...
aur ho sake to follow bhi karein.. i already following you...
Shuiya mitron in protsahan bhare shabdon ka...
जब " दिल की कलम " चलेगी ऐसी ही " पाती " लिखेंगी...
इतनी कम उम्र और इतने गहरे भाव.......???....(शब्द नहीं)
दिलीप जी, बहुत सुन्दर और भावनात्मक कविता लिखी है आपने.
काफी समय के बाद ऐसी रचना पड़ने को मिली है......
शुक्रिया आपका
achchi kavita
बहुत ही मार्मिकता से वर्णन किया है……………………ाअति सुन्दर
सुन्दर भाव भरी रचना है|बधाई....
Dhanyawaad mitron....
बहुत अच्छा...
बहुत दिनों के बाद कुछ अच्छा पढने को मिला... बहुत बहुत बधाई.
अभी अर्चना जी के यहाँ सुना..भावुक करती अभिव्यक्ति!
बहुत ही मार्मिक ... गजब लिखते हैं आप ....
आँखें नम हो गई।
एक माँ को अपनी बिटिया का दर्द जानने के लिए उसकी पाती की भी जरूरत नहीं होती होगी शायद!
बहुत मार्मिक रचना
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