एक नन्हे बालक ने उचक, खिड़की का किवाड़ खोला....
नन्हा सा बादल देखा तो छत की ओर दौड़ा...
फिर बादल से कुछ कहने लगा...
बरसने की विनती करने लगा...
बोला, रोज़ सुबह सुबह स्कूल जाता हूँ...
लौटने तक बड़ा थक जाता हूँ...
अगर तुम्हारी मुट्ठी पूरी खुल जाएगी...
शायद एक दो दिन के लिए छुट्टी मिल जाएगी...
और वैसे भी सीख लिया है, अब काग़ज़ की नाव बनाना...
चाहता हूँ उसे नालियों मे तैराना...
और फिर मम्मी भी गरमागरम समोसे बनाएँगी...
मीठी चटनी के संग प्यार से खिलाएँगी...
और वैसे भी बंटी, मोनू से कई दिन से मिला नही...
कितने दिनों से शाम को घर से हिला नही...
प्लीज़ अब मत तरसाओ...
खूब सारा पानी बरसाओ...
चाहो तो तुमको दे अपनी गेंद दूँगा...
नही तो फ्रिज पे रखी सारी चॉकलेट दूँगा...
पर याद रखना अगर तुमसे पानी नही गिरेगा...
तो फिर तुमको कुछ नही मिलेगा...
अछा मैं चलता हूँ होमवर्क करने जाना है...
फिर पापा को वीडियो गेम मे हराना है...
इतना कह वो चला गया...
बादल भी बस कुछ दूर चला...
नीचे देखा तो कोई हाथ हिला रहा था...
फटी कमीज़ पहने, ज़मीन पर कोई उसे बुला रहा था...
एक और नन्हा सा बालक नंगे पाँव खड़ा था...
बादल देख उसका मन जाने क्यूँ सड़ा था...
चेहरे पे पीलापन था...
आँखों मे फैला गीलापन था...
कहने लगा, क्या मेरी हँसी उड़ाने आए हो...
क्या इस बार फिर पानी बरसाने आए हो...
पिछली बार जब तुमसे बूंदे बरसी थी...
मेरे झोपडे की छत कितनी रातों तक टपकी थी...
हम गीले हो हो रोते थे...
पन्नी लिपटा कर सोते थे...
मगर इस बार ऐसा मत करना...
मेरे दामन को आँसुओं से मत भरना...
चूल्हा जब गीला हो जाता है...
बस धुआँ धुआँ ही फैलाता है...
सारी खुशियाँ कहीं खो जाती हैं...
माँ को खाँसी भी हो जाती है...
बाबा का भी काम ठप्प हो जाता है...
घर चलाना बड़ा मुश्किल हो जाता है...
और अभी बरसने की तुमको क्या जल्दी है...
देखते नही छोटी को कितनी सर्दी है...
तुम ही बोलो इतना सब हम कैसे सह पाएँगे...
न बाहर ही जा पाएँगे, न अंदर ही रह पाएँगे...
इन आँसुओं पे थोड़ा तरस खाओ...
इस बार बिना बरसे ही चले जाओ...
फिर उन नन्ही आँखों से पानी की कुछ बूंदे छलक पड़ी...
ये देख बादल से भी एक अश्रु बूँद टपक गयी...
पर बादल ने खुद को रोक लिया...
आँसुओं को बहने से पहले ही पोंछ लिया...
फिर बरसा नही और चुपचाप चला गया...
और मन ही मन सोचता रहा...
अब वहाँ बरसूँगा जहाँ हर निगाह मेरे लिए तरसती हो...
और जहाँ मेरी वजह से कोई आँख न बरसती हो....
23 टिप्पणियाँ:
dileep ji,
गज़ब करते हो यार, कसम से।
समर्थ और असमर्थ के लिये एक ही बात के कितने अलग मायने होते हैं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति लगी।
क्या कहे आपकी रचना की तारीफ़ के लिए शब्द नहीं मिलते ....हर बार की तरह बेहतरीन ......दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति
कविता पढना शुरू किया, और जैसे जैसे पढ़ती गयी लगा बहुत कुछ समेट दिया एक कविता में
उफ़ ! क्या कहूँ ? शब्द नहीं है, कई दिनों बाद आखिर आप ने रुला ही दिया !
शानदार रचना !
अदभुत रचना !
दिलीप जी, मैं अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहा, ऐसी रचनाएँ बहुत कम पढने को मिलती हैं !
bahut sahi....
ek hi cheej ke aksar mayane badal jate hain alag alag logo ke liye..
bhav-viwahal karne wali rachna.
#ROHIT
अब वहाँ बरसूंगा जहाँ ---
बेहतरीन अभिव्यक्ति
bahut sundar abhivyakti...
aaj ise apni charcha mien daalna chah rahi thi lekin copy nahi kar payi...
bhej dijiyega...aglibaar karungi..
dhnywaad...
एक कहानी याद आ गयी जिसमे एक परिवार में दो बेटियां थी , एक का विवाह किसान के घर में हुआ और दूसरी का कुम्हार के घर .. जब माता -पिता उनसे मिलने गए तो एक बेटी ने कहा पिताजी भगवान् से प्रार्थना करना खूब बरसात हो जिससे हमारी फसल खूब लहलहाए और दूसरी ने कहा पिताजी भगवान् से प्रार्थना करना खूब धुप खिले , बरसात न हो जिससे हमारे सारे घड़े अच्छी तरह से पक जाएँ ....अब माता पिता पेशोपेश में थे किसके लिए प्रार्थना करें ...
तो कहने का लब्बोलुबाव ये है कि वो आसमानी फ़रिश्ता किसकी सुने ...यहाँ बरसे कि वहां बरसे , कहाँ बरसे ? क्या हमारे सोचने से चली है दुनिया ?
"अब वहां बरसूंगा जहां हर निगाह मेरे लिए तरसती हो …"
एक उत्कृष्ट रचना के लिए दिलीपजी आपको साधुवाद है ।
आपकी अन्य रचनाएं भी देखी हैं …संभावनाओं से भरपूर रचनाकार हैं आप ।
…और भी श्रेष्ठ सृजन हो आपकी लेखनी के माध्यम से ,शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
aapke sneh ke liye bahut bahut abhaar mitron....
एक शब्द: अद्भुत!!
bahut hi sundar rachna adbhud
bahut badiya hain sir ji ab aap itna badiya likte ho,
kuch hame bhi suggest kar dijiye ki comment kya likhe har bar badiya hai, wah wah keh kar maza nahi aata hain
हमेशा की तरह बढ़िया और उत्कृष्ट लेखन ... बधाई !
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ! लाजवाब!
लाजवाब बेमिशाल जो कुछ भी कहूँ सब फीका है इस रचना की तारीफ़ में - अंतिम दो पंक्तियाँ - गजब - आभार तथा शुभ आशीष
कभी समय निकले तो कुछ इसी तरह की मेरी एक रचना "नटखट गोपाल" पढने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ - इस टिपण्णी को आप हटा भी सकते हैं
itna sneh dene ke liye bahut bahut abhar...
गहरी बात! शुभकामनायें!
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