वो करते होंगे याद उन्हे, जो स्वर्ण महल मे रहते हैं...
हम टूटे मिट्टी के घर में, गर्मी और पानी सहते हैं...
या वो जो अधनंगे होकर, हैं बाज़ारों मे नाच रहे...
हम टूटी खटिया पड़े हुए, दुर्भाग्य के पोथे बाँच रहे...
कुछ मिश्री मेवा फेंक रहे, हम इक रोटी को रोते हैं...
हम याद करें कैसे उनको, हम अब भी भूखे सोते हैं.....
शायद वो सच्चे देशभक्त, जो चूर नशे में उछल रहे...
हम रोज़ उन्ही की गाड़ी के, नीचे आकर हैं कुचल रहे...
या फिर वो जिनकी इज़्ज़त भी, अधखुले वस्त्र से होती है...
और एक हमारी इज़्ज़त है, घर मे भी डर कर सोती है...
वो जिन महलों मे सोते हैं, हम उनके पत्थर ढोते हैं...
हम याद करें कैसे उनको, हम अब भी भूखे सोते हैं.....
शायद वो ही भारत वासी,जो भारत को ही भूल चले...
पूरब को विधवा करके जो, पश्चिम मे लेके सूर्य चले...
अब पुरवाई जब आती है, जोड़ों मे दर्द ही लाती है...
कंपित कर देती शीत लहर, बारिश भी छत टपकाती है....
सावन के ये खाली बादल, बस मन मे काँटे बोते हैं...
हम याद करें कैसे उनको, हम अब भी भूखे सोते हैं.....
कल फाँसी, गोली झेल गये, वो आज यहाँ गर होते भी...
देश ना रहता याद उन्हें, वो भाग्य को अपने रोते ही...
इक वो थे औरों की खातिर, हँसके फन्दो पे झूल गये...
हम लाचारी या मस्ती मे, उन बलिदानो को भूल गये...
हम बम बंदूकों से मरते, या भूख से जानें खोते हैं....
हम याद करें कैसे उनको, हम अब भी भूखे सोते हैं.....
18 टिप्पणियाँ:
hamesa ki tarah nice n perfect :-)
या फिर वो जिनकी इज़्ज़त भी, अधखुले वस्त्र से होती है...
और एक हमारी इज़्ज़त है, घर मे भी डर कर सोती है...
उम्दा बात कही
एक निवेदन है
"जो लाइन मैंने कोट की है आपके ब्लॉग से ही कॉपी की है"
आप समझ गये होंगे मै क्या कह रहा हूँ :)
sir ab kya kar sakte hain...koshish kare rehte hain... :D koi upay ho to zarur batayein...
awesome!! nice read
या फिर वो जिनकी इज़्ज़त भी, अधखुले वस्त्र से होती है...
और एक हमारी इज़्ज़त है, घर मे भी डर कर सोती है..
bahut bhadiya ......sateek sataya
वाह फिर से एक लाजवाब कविता ... फिर से एक झकझोर देने वाली रचना ... आप तो सच मुच कमाल हैं ...
दिलीप जी,
इन आजादी के unsung heroes को प्रणाम और आपकी लेखनी को भी। कितनी विचित्र बात है न कि जो असली कुर्बानी कर गये, उनको याद करने वाले कितने थोड़े रह गये हैं। सारी वाहवाही को हाईजैक कर लिया दो तीन नामों ने।
झक्झोरने वाली कविता।
सच में दिल की कलम से लिखी हुई और दिल तक उतर गई।
आभार।
आपके इस बिचारोत्तेजक रचना के लिए आपका धन्यवाद / आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे आपके इस सुन्दर और संदेशात्मक कविता की जितनी तारीफ की जाय कम है / आपके इस प्रयास के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /
vehatreen iske liye koi shabd nahin
abhar
bhaut hi khub likha apne...satyvachan he sare
हमेशा की तरह तेजधार कलम से निकली बेहतरीन भावाव्यक्ति।
Dear Dilip ji..bahut sundar likhte he aap...me bht prabhavit hu apki rachnao se to socha ki me b jara thoda praytan karu or khud b kuchh likhna shuru karu..pehli baar likha he apke tippani chahti hu usme....mere plus or minus points
http://paliwalpushpa.blogspot.com/
सुन्दर रचना! सुन्दर विचार !
bahut hi khubsurat rachna...
i simply adore you...
u r awesome...
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mere blog par is baar
तुम कहाँ हो ? ? ?
jaroor aayein...
tippani ka intzaar rahega...
http://i555.blogspot.com/
yeh hindustan ka kadwa sach hai!
aapne bahut acche dhang se avivyakt kiya hai.
#ROHIT
निशब्द हूँ......
सुधार कार्य ----
उन्हे ,जो स्वर्णमहल ....
खटिया पर पडे हुए ...
पुरवाई..
शीत लहर ...
Dhanyawad Archana ji....
बहुत सुंदर
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