यह कविता 'प्यासा' फिल्म के गीत 'जिन्हे नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं ' से प्रेरित है...उम्मीद है आपको पसंद आए....
ये टुकड़ों मे घर की कहानी के किस्से...
ये बिकते दुकानों मे ईमान के हिस्से...
यूँ खूं मे बड़ा फ़र्क होता यहाँ है...
ये हिंदू यहाँ हैं तो मुस्लिम वहाँ हैं...
क्यूँ चिंगारियों मे मेरा घर जला है...
जिन्हे नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं....
ये काजी भी पंडित भी खंजर लिए हैं...
यूँ इन्सा की धरती को बंजर किए हैं...
मोहब्बत की हरदम सुनी जो कहानी....
वो बचपन मरा, मर चुकी है वो नानी...
ये दामन उम्मीदों का कट फट चुका है...
जिन्हे नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं....
ये बीमार बैलों की गाड़ी रुकी सी...
ये नभ के खजानों की थैली चुकी सी...
ये धरती के बेटों की गीली निगाहें...
उठाए ज़मीन अपनी सूखी सी बाहें...
वो मजबूर अब खो गया आसमाँ में...
जिन्हे नाज़ है हिंद पर वो कहाँ है...
ये सड़कों पे घुट घुट गुज़रती सी रातें...
ग़रीबी के गलियों मे खुलते हैं खाते...
ये नुक्कड़ पे लुटती हुई कोई इज़्ज़त...
ये सजती हुई भूख से कोई मैय्यत...
न कंबल मिला, न कफ़न ही मिला है....
जिन्हे नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं...
ये नफ़रत ज़हेर को उगलती ज़बानें...
ये हिन्दी, मराठी पे कटती ज़बानें...
ये दहशत के रंगों से सड़कें सजी जो ...
वो सरहद पे कल रात गोली चली जो...
ये धरती लुटी, आसमाँ भी फटा है....
जिन्हे नाज़ है हिंद पर वो कहाँ है...
सपोले यूँ कुर्सी से चिपके हुए हैं...
वो ठंडे मकानों मे दुबके हुए हैं...
अमीरों की गलियों मे सूरज खिला है...
ग़रीबों को बस ये अंधेरा मिला है...
सिसकती फटे हाल हो, अपनी माँ है....
जिन्हे नाज़ है हिंद पर वो कहाँ है....
मुहाफ़िज़ बने हिंद के उनको लाओ...
ये तस्वीर जलती उन्हे भी दिखाओ...
जलाना ही है आज पूरा जलाओ...
हस्ती खुदी की खुदी अब मिटाओ...
भटकते भटकते बहुत थक चुका है...
जिन्हे नाज़ है हिंद पर वो कहाँ है...
22 टिप्पणियाँ:
भटकते हुए कभी न थकना
भटकन ही देगी जिन्दगानी
सुन्दर कविता
बहुत सुन्दर कविता है ... काश हम भी आप जितना अच्छा लिख पाते ...
वाह, क्या बात कही है!
bilkul pasand aayi ye kavita.
हमें जब पढ़ाया गया है गुलामी
नही ये बताया गुरु विश्व के थे
जिन्होंने ये समझा वो मर गए देश पर
जिन्हों ने ना समझा राज उनका यहाँ है
इसी मानसिकता की कुंठा लिए
आज लड़ते है हम अपने ही चमन में
आज अपनो की खातिर खुद अपना लुटा है
जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहाँ हैं ?
रत्नेश त्रिपाठी
अति सुन्दर !
अमीरों की गलियों में सूरज खिला है
गरीबों को बस ये अँधेरा मिला है,
कमाल की पंक्तिया!
वाह !
डुबके की जगह दुबके करें,' सिसकती फटेहाल अपनी माँ है' हो तो ज्यादा सुन्दर लगेगा !
nilesh ji bahut bahut dhanyawad....trutiyon ki ore dhyan dalne ke liye...parantu pankti ka tatparya hai....maa fatehaal hokar sisakti hai aur sath hi sath lay bhi banakar rakhni thi...:D
कविता पसंद आई .....
जहेर को नफ़रती जहर ,
सिसकती फ़टेहाल ये अपनी माँ है,
अमीरों के हर घर मे ......(अगर आपको उचित लगे तो...)
waaaaahhhhhhhhhhh....sahir saab ki nazm se prerit ho kar...uski atma ko banaye rakhte hue likhna apne aap me ek uplabdhi hai ...bahut hi achhi rachna hai dilip ji ...
atisundar rachna. badhai!!
मुहाफिज बने हिंद के उनको लाओ
ये तस्वीर जलती उन्हें भी दिखाओ
बहुत खूब ....
बहुत मेहनत की है आपने इस मंचीय नज़्म पर .....!!
बहुत सुंदर .....वाह ....!!
बहुत बढ़िया,
बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
दोस्त सलाम करने की आरज़ू हैं ,,,,,,,,,,,,,,,झुक गया हूँ तुम्हारे लिए मित्र ..................सलाम .....................ओरे हां ये भटकना कम्बख़त बहुत हसीं बात हैं ......................मुहाफिज बने हिंद के उनको लाओ
ये तस्वीर जलती उन्हें भी दिखाओ...........
...बहुत खूब ...बेहतरीन रचना!!!
वाह मित्र क्या लिखा है
सच में रोमांच हो गया।
इतनी उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये शुभकामनाएं और बहुत धन्यवाद
shukriya doston...
आपकी पोस्ट के साथ लगे चित्र को देख कर आँखें भर आईं और पूरी कविता पढ़ते पढ़ते वो पैमाना छलक गया... आपने यह कविता प्यासा फिल्म के गीत से प्रेरित होकर लिखी है..साहिर साहब का नाम भी लिखते तो एक श्रद्धांजलि होती..लेकिन आपने भरपूर न्याय किया है उनकी कविता से प्रेरणा लेकर... इस आग को बचाये रखिए.
दिलीप भाई
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!!
भगवान करे सबके दिलों मे ये जज्बा पैदा हो
हमारा हिन्द स्वर्ग बन जायेगा।
bahut achcha laga.
Dilip bhai, agar Sahir sahab isko padhte to unhe bhee is rachnaa par behad naaz hota....Too Good!!!
bhaut pyaari rachna... josh bhi hai aur dard bhi...
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