वीर अमर कुरबानी की....
मीरा जैसी दीवानी की....
मधु से मीठी हर वाणी की....
मुरलीधर जैसे ग्यानी की....
अपने आचल मे छुपा शीश, माँ सूबक सूबक जो रोती है....
ये कलियुग का है कटु सत्य, अब कीमत सबकी होती है....
प्रेम भरी बरसातों की....
सब प्यारे रिश्ते नातो की....
निर्मल गंगा सी पावन जो....
पूनम की उजली रातों की....
मन के आँधियारों को हरती,जो सत्य प्रेम की ज्योति है....
ये कलियुग का है कटु सत्य, अब कीमत सबकी होती है....
वीर प्रसूता माओं की....
काली घनघोर घटाओं की....
इन शौर्या भरी गाथाओं की....
बलिदानो की आशाओं की....
जो राष्ट्रभक्ति निज प्राण त्याग, इस मातृभूमि पर सोती है....
ये कलियुग का है कटु सत्य, अब कीमत सबकी होती है....
शिशु के अबोध शैशवपन की....
युवती के मोहक यौवन की....
हर जोगी की हर जोगन की....
जीवन के हर इक क्षण क्षण की....
परकष्टों मे बहने वाला,वो अश्रु बना जो मोती है....
ये कलियुग का है कटु सत्य, अब कीमत सबकी होती है....
माँ के हाथों के भोजन की....
भगिनी के उस अपनेपन की....
हर कीर्तन की हर पूजन की....
मनबसिया राधे मोहन की....
वो प्रेम नदी मानव तन जो, अपने अमृत से धोती है....
ये कलियुग का है कटु सत्य, अब कीमत सबकी होती है....
हे राम तेरी मर्यादा की....
हे कृष्ण तुम्हारी राधा की....
अब और लिखूं क्या मन मेरे....
कुछ थोड़े की कुछ ज़्यादा की....
ये कलम मेरी जो अपने मे, किंचित सा सार समोती है....
ये कलियुग का है कटु सत्य, अब कीमत सबकी होती है....
18 टिप्पणियाँ:
ek baat to achhi hai ki aapki rachnaon ko padhne ke liye jyada intzaar nahi karna padta...
roj kuch na kuch achha mil jaat hai...
one personal qstn if you don't mind, how u manage to write such good poems daily..
and also go to many pages to comment them....
what do u do professionally..
shekhar
http://i555.blogspot.com/
बेहतरीन रचना.
ये कलियुग का है कटु सत्य...बहुत ही सटीक लिखा है ..
वाह वाह क्या लिखा है बहुत अच्छा। अंत तो गजब का है।
It is a Gem!
बहुत सुंदर रचना.
-Rajeev Bharol
कलियुग के कटु सत्य पर लिखी गयी एक बहुत ही सुन्दर रचना ....!!
Bahut sundar bandhu, really a beautiful poem !
आपकी कविता भावपूर्ण होती है ...साथ ही एक संदेश भी देती है ,मुझे ज्यादा तो नही आता फ़िर भी एक बात बताना चाहती हूँ----अन्यथा न ले -----मुझे लगता है इस कविता की पंक्तियों को सही क्रम मे जमाने से----- जैसे---
मनबसिया राधे मोहन की,
मीरा जैसी दीवानी की,
हर जोगी की हर जोगन की,
हर कीर्तन की हर पूजन की,
वो प्रेम नदी मानव तन जो,अपने अमॄत से धोती है,
ये कलियुग का है कटुसत्य,अब कीमत सबकी होती है।
(आपको मेल मे ही बताना चाहती थी पर mail-id पता नही है )
हमेशा की तरह आप इस बार भी एक उत्तम रचना को प्रस्तुत किये हैं ! आपको पढना हमेशा अच्छा लगता है क्यूंकि आप में अच्छी कविता लिखने का हुनर है । आप केवल शब्दों का पुलिंदा नहीं बनाते हैं वल्कि उनको एक कढ़ी में सजाकर सुन्दर सलोनी एक रचना का जन्म देते हैं । अभिनन्दन !
मैं तो आपका fan हो चला हूँ । आपके फन को मान गया की आप इतनी अच्छी कविता लिख लेते हैं !
भावों और संदेशों को समेटे - सच्ची और बहुत अच्छी रचना/गीत - हार्दिक बधाई
yaar bahut bade dhoorandhar ho tum to...
bas dil jeet liya....
bahut dhansoo rachna hai
badhai !!!
बहुत खूब ....!!
bahut bahut dhanyawad mitron...
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
अद्भुत। एक खरा सत्य।
ek baar fir se aap sabhi ka abhar....
jabardast.....aachi sonch
बढ़िया लिखते है भाई..अच्छा लगा...निरंतरता बनाएँ रखें....शुभकामनाएँ!!!
Oh,wah! Kya gazab likha hai, wo bhi tarannum me!
एक टिप्पणी भेजें