एक साँप, धीरे से जा बैठा दिल मे...
बोला, जगह नही है आस्तीन के बिल मे....
कहने लगा, मैं अब संत हो चुका हूँ...
सारा ज़हेर अपना, कबका खो चुका हूँ....
मैने बोला, साँप हो कहाँ सुधरोगे....
जब भी उगलोगे, ज़हेर ही उगलोगे....
वो बोला, साप हूँ तभी तो जी रहा हूँ...
बड़ी देर से, तुम्हारे दिल का ज़हेर पी रहा हूँ....
देखो मेरा रंग जो हरा था, अब नीला है...
अरे आदमी...तुम्हारा ज़हेर तो मेरे ज़हेर से भी ज़हरीला है....
बोला, जगह नही है आस्तीन के बिल मे....
कहने लगा, मैं अब संत हो चुका हूँ...
सारा ज़हेर अपना, कबका खो चुका हूँ....
मैने बोला, साँप हो कहाँ सुधरोगे....
जब भी उगलोगे, ज़हेर ही उगलोगे....
वो बोला, साप हूँ तभी तो जी रहा हूँ...
बड़ी देर से, तुम्हारे दिल का ज़हेर पी रहा हूँ....
देखो मेरा रंग जो हरा था, अब नीला है...
अरे आदमी...तुम्हारा ज़हेर तो मेरे ज़हेर से भी ज़हरीला है....
25 टिप्पणियाँ:
बहुत उम्दा
पहली बार आया हूं अच्छा लगा
बहुत सुंदर.
...मेरे डसने के बाद आदमी जिन्दा नही बचता,
मगर तुम्हारे डसने के बाद तो,
जीते-जी ही- मरते रहता है ......
bahut hi behtareen...kya baat hai...
mere blog par is baar..
नयी दुनिया
jaroor aayein....
nice
अरे आदमी ...तेरा जहर तो सांप के जहर से भी जहरीला है ...
क्या बात कही कविता में ...
बहुत खूब ...!!
क्या बात है.बहुत खूब!
kafi sunder aur mazedaar rachna hai........
subhkamnayein....
Aaj ke aadmi ke badalti fidrat ko bakhubi bayan karti aapki rachna samyjik pradrashya ko jhakjhorti hai..
Bahut shubhkamnayne.
bhaut khoob badi saadgi se saralta se itni gehri baat kehne ke liye saadhuwaad !
waah aapko padhkar bahut achcha laga
saanp ka kam se kam rang to badla
insaan ne wo bhi nahi kiya..... zahar dil mein bhara hai
बहुत सुन्दर कविता है ! सच है कि इन्सान आज सांप से भी ज़हरीला बन चूका है !
bahut bahut Abhar mitron..itna protsahan dene ke liye...
ab to yahi kwasih hain ki sap kat le par abmi na
kyunki saap ka to ilaz hota hai, par aadmi kate to har mod par katta hi rahega,
sir ji agar aapko time mile to mere blog par maine bhi kabhi man se ek article likha tha uske baad to sare aadehy hi likh paya hu
just go thru""Think""
aur sir us par ek kavita likh dijiye maza aa jaye
सच कहा , साँप से डरने की जरुरत नहीं है
waah dileep ji...
kya baat kahi hai...
bahut khoob...
अरे आदमी
Dhanyawad mitron....
वाकई जहरीला है
पर दिल में उतारना ही होगा
तभी तो कहते हैं आदमी का काठा पानी भी नहीं मानता...
Bahut achchi lagi kavita.
बहुत खूब श्रीमान .....आपकी किसी भी रचना की तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ जाते है ....
Bahut achcha likha hai Dileep..likhte rahiye, isi tarah, is se behtar
Sandhya
👉 सांपों के मुकद्दर में
वो ज़हर कहां,
जो इंसान आजकल सिर्फ
बातों में ही उगल रहा है !
साँप तो कोने में बैठा
हँस रहा है !
क्योकि
इन्सान ही आजकल
इन्सान को डंस रहा है।।
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