छाई पूरब मे लाली हो, हो पुष्प चहक के झूम रहे...
मंदिर मे कुछ पहचाने से, हो रंग निराले घूम रहे...
कुछ शरमाई, कुछ नम आँखें, हो विदा पिया घर जब जाए...
जब बचपन के मुख की लाली, माता का आँचल भर जायें...
जब पुर्वाई का इक झोंका, मन का आँचल लहराता है...
तब खुशहाली आ जाती है, रंग केसरिया बन जाता है....
हिम की चादर मे भी तन कर, गिरिराज शौर्य दर्शाता हो...
उज्ज्वल बादल सा बन कपोत, जब शांति रंग बरसाता हो....
कोने मे बैठे दादाजी, कुछ अनुभव वाली बात कहे...
जब श्वेत चंद्र हो पूनम का, उजियारी, निर्मल रात बहे....
जब कान्हा का अबोध बचपन, माखन मे, दूध मे छनता है...
शिव जटा से निकले गंगा जल, ये श्वेत रंग तब बनता है...
यूँ सावन की हरियाली मे, जब मन मयूर हो नाच रहे...
कुछ झुंड सुरीली कोयल के, हो प्रेम कथायें बाँच रहे...
धरती की सूनी गोद कभी, अद्भुत ममता से भर जाए...
जब आसमान से कुछ बूँदें, आँखों के मोती हर जायें...
जब धरती के पीले रंग मे, नीला अंबर मिल जाता है...
आँखों मे अश्रु नही रहते, तब हरा रंग बन जाता है...
कुछ श्वेत हुई चट्टानों पे, जब शत्रु के पंजे बढ़ते हो....
जब संकट के बादल गुपचुप, यूँ आसमान मे चढ़ते हो...
तब हरे वस्त्र मे दबी भुजा, कुछ और फड़कने लगती है...
माँ की रक्षा की भाव अग्नि, तब और धधकने लगती है...
उन श्वेत हिमो पे, हरे रंग से, लाल रंग जब गिरता है....
बलिदान अमर हो जाता है, तब एक तिरंगा बनता है....
मंदिर मे कुछ पहचाने से, हो रंग निराले घूम रहे...
कुछ शरमाई, कुछ नम आँखें, हो विदा पिया घर जब जाए...
जब बचपन के मुख की लाली, माता का आँचल भर जायें...
जब पुर्वाई का इक झोंका, मन का आँचल लहराता है...
तब खुशहाली आ जाती है, रंग केसरिया बन जाता है....
हिम की चादर मे भी तन कर, गिरिराज शौर्य दर्शाता हो...
उज्ज्वल बादल सा बन कपोत, जब शांति रंग बरसाता हो....
कोने मे बैठे दादाजी, कुछ अनुभव वाली बात कहे...
जब श्वेत चंद्र हो पूनम का, उजियारी, निर्मल रात बहे....
जब कान्हा का अबोध बचपन, माखन मे, दूध मे छनता है...
शिव जटा से निकले गंगा जल, ये श्वेत रंग तब बनता है...
यूँ सावन की हरियाली मे, जब मन मयूर हो नाच रहे...
कुछ झुंड सुरीली कोयल के, हो प्रेम कथायें बाँच रहे...
धरती की सूनी गोद कभी, अद्भुत ममता से भर जाए...
जब आसमान से कुछ बूँदें, आँखों के मोती हर जायें...
जब धरती के पीले रंग मे, नीला अंबर मिल जाता है...
आँखों मे अश्रु नही रहते, तब हरा रंग बन जाता है...
कुछ श्वेत हुई चट्टानों पे, जब शत्रु के पंजे बढ़ते हो....
जब संकट के बादल गुपचुप, यूँ आसमान मे चढ़ते हो...
तब हरे वस्त्र मे दबी भुजा, कुछ और फड़कने लगती है...
माँ की रक्षा की भाव अग्नि, तब और धधकने लगती है...
उन श्वेत हिमो पे, हरे रंग से, लाल रंग जब गिरता है....
बलिदान अमर हो जाता है, तब एक तिरंगा बनता है....
15 टिप्पणियाँ:
बलिदान अमर हो जाता है, तब एक तिरंगा बनता है....
bilkul sayta keh diya deleep ji...
शानदार रचना!
जब माँ की रक्षा की भाव अग्नि, तब और धधकने लगती है...तब तिरंगा बनता है
उन श्वेत हिमो पे, हरे रंग से, लाल रंग जब गिरता है....
बलिदान अमर हो जाता है, तब एक तिरंगा बनता है....
Bahut sundar , laaajabaab ! please keep it up !!
कुछ श्वेत हुई चट्टानों पे, जब शत्रु के पंजे बढ़ते हो....
जब संकट के बादल गुपचुप, यूँ आसमान मे चढ़ते हो...
तब हरे वस्त्र मे दबी भुजा, कुछ और फड़कने लगती है...
माँ की रक्षा की भाव अग्नि, तब और धधकने लगती है...
!!!!!!!!Naman Naman Naman!!!!!!!!
उन श्वेत हिमो पे, हरे रंग से, लाल रंग जब गिरता है....
बलिदान अमर हो जाता है, तब एक तिरंगा बनता है....
dilip ji aap bahut hi achha likh rahe hain... aapki kai rachnaaye padh gaya aur sab achhi hai... likhte rahe... shubhkaamnaaye
wah kya khub likha hai aapne...
is tirange ko ham naman karaten hain..
bahut sundar rachna
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
Dhanyawad mitron....
कुछ श्वेत हुई चट्टानों पे, जब शत्रु के पंजे बढ़ते हो....जब संकट के बादल गुपचुप, यूँ आसमान मे चढ़ते हो...तब हरे वस्त्र मे दबी भुजा, कुछ और फड़कने लगती है...माँ की रक्षा की भाव अग्नि, तब और धधकने लगती है...उन श्वेत हिमो पे, हरे रंग से, लाल रंग जब गिरता है....बलिदान अमर हो जाता है, तब एक तिरंगा बनता है...
rogte khade ho gaye
Vakai aise hi TIRANGA banta hai..
अभी अर्चना जी की आवाज में सुना, आनन्द आ गया.
अभी-अभी सुनकर आ रहा हूँ अर्चना जी की आवाज में !
स्वर में सज गया है यह गीत ! और भी सुन्दर हो गया है ।
इस चिट्ठे से कैसे विरम गया था..पता नहीं ! आज की उपलब्धि है इस चिट्ठे पर आना ।
उन श्वेत हिमो पे, हरे रंग से, लाल रंग जब गिरता है....
बलिदान अमर हो जाता है, तब एक तिरंगा बनता है....
सच ही कहा तभी तिरंगा बनता है
jai hind
bande mataram
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