तेरे आँचल मे आग लगी, माथे से रक्त टपकता है...
तेरा करने को चीर हरण दुस्शासन नित्य लपकता है...
छलनी करने सीना तेरा जयचंद हज़ारों लगे हुए...
तू टूट बिखर है बिलख रही अंजाने सारे सगे हुए...
पर मैं डर के छिप के अपने इस स्वप्न महल मे लेटा हूँ...
मत करना मुझसे आस कोई, मैं तेरा कायर बेटा हूँ...
तेरी अकुलाई आँखों के निषदिन बहते इस जल से क्या...
जो बीत गया सो बीत गया और आने वाले कल से क्या...
जो त्याग स्वयं को दूँ तुझ हित, क्या मेरा पेट भरेगी तू...
इन परिवारों का बोझ कभी क्या मेरे बाद सहेगी तू...
तू अभी मुझे आश्वस्त करे मैं यहीं प्राण तज देता हूँ...
मत करना मुझसे आस कोई, मैं तेरा कायर बेटा हूँ...
वो होंगे देव समान कोई जो तुझ पर जान छिड़कते है...
मेरे बच्चे अब भी मेरी छाती से चिपक सिसकते है...
मैं मानव हूँ भगवान नहीं जो कर लूँ वश मे इस मन को...
मैं अब भी हूँ बस तरस रहा सर पे छत को इक आँगन को...
मुश्किल से जीवन की नौका, तूफ़ानों मे भी खेता हूँ...
मत करना मुझसे आस कोई, मैं तेरा कायर बेटा हूँ...
हैं तृप्त उदार जिस जनता के, क्या वो करती है याद तुझे...
उनमे मार जाने का तुझ पर, क्या दिखता है उन्माद तुझे...
कुछ शयन कक्ष मे पड़े कहीं कुछ मधुशाला की ओर चले...
दो गिनती उन चरणों की माँ, जो दृढ़ हो तेरी ओर चले...
जो बाँट किसी को राज करूँ, ना कोई ऐसा नेता हूँ...
मत करना मुझसे आस कोई, मैं तेरा कायर बेटा हूँ...
"इस सौ करोड़ की जनता में जब मेरा कोई बचा नहीं...
हिंदू मुस्लिम तो बने सभी मानव अब कोई बचा नही..
जब मेरा हिस्सा जलता है मेरे ही घी छिड़काते हैं...
पश्चिम पश्चिम करते करते सब मुझको भूले जाते हैं...
मैं धन्य हुई की कोई तो मुझको आश्वासन देता है...
कायर की कोई बात नहीं, कहता तो खुद को बेटा है"...
तेरा करने को चीर हरण दुस्शासन नित्य लपकता है...
छलनी करने सीना तेरा जयचंद हज़ारों लगे हुए...
तू टूट बिखर है बिलख रही अंजाने सारे सगे हुए...
पर मैं डर के छिप के अपने इस स्वप्न महल मे लेटा हूँ...
मत करना मुझसे आस कोई, मैं तेरा कायर बेटा हूँ...
तेरी अकुलाई आँखों के निषदिन बहते इस जल से क्या...
जो बीत गया सो बीत गया और आने वाले कल से क्या...
जो त्याग स्वयं को दूँ तुझ हित, क्या मेरा पेट भरेगी तू...
इन परिवारों का बोझ कभी क्या मेरे बाद सहेगी तू...
तू अभी मुझे आश्वस्त करे मैं यहीं प्राण तज देता हूँ...
मत करना मुझसे आस कोई, मैं तेरा कायर बेटा हूँ...
वो होंगे देव समान कोई जो तुझ पर जान छिड़कते है...
मेरे बच्चे अब भी मेरी छाती से चिपक सिसकते है...
मैं मानव हूँ भगवान नहीं जो कर लूँ वश मे इस मन को...
मैं अब भी हूँ बस तरस रहा सर पे छत को इक आँगन को...
मुश्किल से जीवन की नौका, तूफ़ानों मे भी खेता हूँ...
मत करना मुझसे आस कोई, मैं तेरा कायर बेटा हूँ...
हैं तृप्त उदार जिस जनता के, क्या वो करती है याद तुझे...
उनमे मार जाने का तुझ पर, क्या दिखता है उन्माद तुझे...
कुछ शयन कक्ष मे पड़े कहीं कुछ मधुशाला की ओर चले...
दो गिनती उन चरणों की माँ, जो दृढ़ हो तेरी ओर चले...
जो बाँट किसी को राज करूँ, ना कोई ऐसा नेता हूँ...
मत करना मुझसे आस कोई, मैं तेरा कायर बेटा हूँ...
"इस सौ करोड़ की जनता में जब मेरा कोई बचा नहीं...
हिंदू मुस्लिम तो बने सभी मानव अब कोई बचा नही..
जब मेरा हिस्सा जलता है मेरे ही घी छिड़काते हैं...
पश्चिम पश्चिम करते करते सब मुझको भूले जाते हैं...
मैं धन्य हुई की कोई तो मुझको आश्वासन देता है...
कायर की कोई बात नहीं, कहता तो खुद को बेटा है"...
16 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छी वेगमय सत्य को दर्शाती कविता..........."
dhanyawad Amit ji
अद्भुत अद्भुत।
बेहतरीन
ma ki wandna
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
Dhanyawad Shekhar aur Kulwant ji...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत सुन्दर....
हम तो आपकी लेखनी के कायल हो गए..
बहुत अच्छा लिखते हैं आप...
अनेकों शुभकामनाएँ...
ek sashaqt behtreen rachna.
बहुत बढ़िया।
सादर
bahut hi sundar rachna...aabhar
Welcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
भारत माता के प्रती असीम प्रेम और श्रद्धा दर्शाती
बहूत हि सुंदर रचना है....
delip ji hamesh hi mere man ne apki rachnao ko saraha hai aur apki post ka nazar intzar bhi karti hai...ye purani post n jane kaise mujhse chhoot gayi. aabhar SANGEETA Ji ka jinki halchal k maadhyam se mujhe apki saraahneey rachna padhne ko mili.
hridyon me aag jagati si is vegmay parstuti k liye.
मन की व्यथा ...बिलकुल सच्ची सच्ची
बहुत सुन्दर
bahut badiya prerak rachna..
मन की व्यथा को प्रगट करती सशक्त रचना...
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