सरपत की सींकों के झुरमुट , मेड़ों पे तन कर झूम रहे...
तोते भी हो उन्मुक्त आज, घर के पिंजरों मे घूम रहे...
दिनकर जी अपने रथ को ले, जा दूर कहीं पर दुबके हैं...
चुपचाप पपीहे चोंच खोल, अमृत पाने को लपके है...
धरती अंबर के पुनर्मिलन का शुभ संदेशा लाए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना, देखो कुछ बादल आए हैं....
आँखों की कोरी चित्रकला, अब रंगों से भर जाएगी...
बूढ़ी सी जर्जर धरती भी, यौवन का अमृत पाएगी...
अब खोल किवाड़ कली अपने, भंवरों को पास बुलाएगी...
बूँदों के दर्पण ताक- ताक हौले हौले शरमाएगी....
बूढ़े बैलों के शक्ति कमल, देखो कैसे खिल आए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना, देखो कुछ बादल आए हैं....
जो मायूसी मे था डूबा, वो श्रृंगारी हो जाएगा...
ये बाल्यकाल भी मेघों का, कुछ अभारी हो जाएगा...
अब तबलों पे मंडूक सभी, कुछ अपनी ताल सुनाएँगे...
थी केश रहित, इस धरती पे कुछ हरे केश उग आएँगे...
जिस धरा को विधवा समझ रहे, अब उसके प्रियतम आए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना देखो कुछ बादल आए हैं....
नन्हे हान्थो से काग़ज़ के, फटने का क्रम आरंभ हुआ..
धरती को अपने यौवन पे, अपने सुहाग पे दंभ हुआ...
इक गौरैया का जोड़ा भी, देखो तो छत पे आया है...
सूखा बोरिया बिस्तर बाँधे, देखो कितना घबराया है...
सूखे की सेना को घन ये, अब धूल चटाने आए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना, देखो कुछ बादल आए हैं....
बादल आए, चिट्ठी खोली, पर पत्र सभी वो कोरे थे...
न थैले थे खुशहाली के, बस मायूसी के बोरे थे...
वो उम्मीदों के सीनों में, कुछ बान विषों के खोंस गये...
जो अभी अभी थी सजी हुई, वो माँग धरा की पोन्छ गये...
जो झूम उठे थे मस्ती में, वो सारे ही मन छले गये...
है देर बहुत कर दी तुमने, बादल आए थे चले गये...
तोते भी हो उन्मुक्त आज, घर के पिंजरों मे घूम रहे...
दिनकर जी अपने रथ को ले, जा दूर कहीं पर दुबके हैं...
चुपचाप पपीहे चोंच खोल, अमृत पाने को लपके है...
धरती अंबर के पुनर्मिलन का शुभ संदेशा लाए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना, देखो कुछ बादल आए हैं....
आँखों की कोरी चित्रकला, अब रंगों से भर जाएगी...
बूढ़ी सी जर्जर धरती भी, यौवन का अमृत पाएगी...
अब खोल किवाड़ कली अपने, भंवरों को पास बुलाएगी...
बूँदों के दर्पण ताक- ताक हौले हौले शरमाएगी....
बूढ़े बैलों के शक्ति कमल, देखो कैसे खिल आए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना, देखो कुछ बादल आए हैं....
जो मायूसी मे था डूबा, वो श्रृंगारी हो जाएगा...
ये बाल्यकाल भी मेघों का, कुछ अभारी हो जाएगा...
अब तबलों पे मंडूक सभी, कुछ अपनी ताल सुनाएँगे...
थी केश रहित, इस धरती पे कुछ हरे केश उग आएँगे...
जिस धरा को विधवा समझ रहे, अब उसके प्रियतम आए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना देखो कुछ बादल आए हैं....
नन्हे हान्थो से काग़ज़ के, फटने का क्रम आरंभ हुआ..
धरती को अपने यौवन पे, अपने सुहाग पे दंभ हुआ...
इक गौरैया का जोड़ा भी, देखो तो छत पे आया है...
सूखा बोरिया बिस्तर बाँधे, देखो कितना घबराया है...
सूखे की सेना को घन ये, अब धूल चटाने आए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना, देखो कुछ बादल आए हैं....
बादल आए, चिट्ठी खोली, पर पत्र सभी वो कोरे थे...
न थैले थे खुशहाली के, बस मायूसी के बोरे थे...
वो उम्मीदों के सीनों में, कुछ बान विषों के खोंस गये...
जो अभी अभी थी सजी हुई, वो माँग धरा की पोन्छ गये...
जो झूम उठे थे मस्ती में, वो सारे ही मन छले गये...
है देर बहुत कर दी तुमने, बादल आए थे चले गये...
38 टिप्पणियाँ:
Sundar kawita
ashok jamani
जो मायूसी मे था डूबा, वो श्रृंगारी हो जाएगा...
ये बाल्यकाल भी मेघों का, कुछ अभारी हो जाएगा...
अब तबलों पे मंडूक सभी, कुछ अपनी ताल सुनाएँगे...
थी केश रहित, इस धरती पे कुछ हरे केश उग आएँगे...
Waah Dilip ji waah !
मान गए प्रकृतिचित्रण के भी महारथी हो भाई...
दिलीप जी,
आखिर में क्यों दुखी कर गये यार। आशा से निराशा तक पूरा सफ़र करवा दिया। मन तुम्हारा भी कुछ ठीक नहीं था, आखिरी लाईन में बादल का बदल लिख गये, ठीक कर लो, त्रुटिहीन हो जायेगी रचना।
आभार
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना, देखो कुछ बादल आए हैं....
क्या सुन्दर अन्दाज़ है
और हाँ आपने do not copy हटाकर अच्छा किया. लाईने उद्धृत करने में आसानी होती है.
roz roz yahi dekh raha hun...baadal aa rahe hain par baras nahi rahe...jaane kitne armaano pe bin paani paani fir jaata hoga...
धरती अंबर के पुनर्मिलन का शुभ संदेशा लाए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना, देखो कुछ बादल आए हैं..
jaroor ayage daleep ji thoda sa inzar baad me bahaar......
मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
क्या गरीब अब अपनी बेटी की शादी कर पायेगा ....!
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_6458.html
आप अपनी अनमोल प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित कर हौसला बढाईयेगा
प्रसिद्ध नवगीतकार सुरेन्द्र वाजपेयी के गीत की एक पंक्ति याद आ गये...
तुमने तो बादल को आते देखा होगा
हमने तो बादल को जाते देखा है..!
आपने बादलों के आने का उल्लास और बिन बरसे चले जाने का दर्द बखूबी अभिव्यक्त किया है.
..बधाई.
sundar rachna...
dhanywad.
काबिल-ए-तारीफ
प्रभु के घर देर है अन्धेर नही, उम्मीदो पर ही जग है टिका क्या छोड़ देगी धरती को प्यासी, आती हर साल प्यारी बरखा नही होगी सूनी माँग धरा की, कपूत पूत फिर बन जायें कुविचार तज,सत्कर्म अपना, खुशहाली के दीप जलायें भाई दिलीप, कभी कभी लगता है इस आभासी दुनिया को अलविदा कहा जाय! आप ऐसे ही लिखते रहिये। अद्भुत है आपकी कल्पना शक्ति। यहां तो पापाजी, मम्मी जी, पता नही और क्या क्या उगने लगे हैं!
गजब है भाई गजब!! बहुत बेहतरीन!
क्या बात है! बहुत खूब लिखते हैं आप!
सरपत की सींकों के झुरमुट , मेड़ों पे तन कर झूम रहे...
मतलब आपने गाँव के खेत की मेड को बड़े मन से देखा है ...
जो मायूसी मे था डूबा, वो श्रृंगारी हो जाएगा...
ये बाल्यकाल भी मेघों का, कुछ अभारी हो जाएगा...
अब तबलों पे मंडूक सभी, कुछ अपनी ताल सुनाएँगे...
थी केश रहित, इस धरती पे कुछ हरे केश उग आएँगे...
सुन्दर कल्पनाशीलता का परिचय दिया है ....बहुत सुन्दर रचना है ..प्रकृति के जीवन के साथ ..जो रिश्ता है उसे बड़े रोचक और मन मोहक ढंग से दर्शाया है ..../// अब तक आप वीररस पर ही अधिक लिखते थे ...आज प्रकृति का चित्रण किया ...बहुत अच्छा लगा ...जीवन के सभी रंगों पर लिखे ...सच्चे कवि ना सही एक बेहतरीन फनकार जरूर बन पायंगे ...गीत ग़ज़ल , दोहे , काव्य , मुक्तक ,,,और भी सब कुछ ...सलाह नहीं .मित्र को सन्देश ...आप के लेखन से मुझे नित्य कुछ प्रेरणा और सीख मिलती है ...
जहाँ तक संभव हो हिन्दी ब्लॉग पर कुछ भी लिखे, हिन्दी में ही हो.. सब कुछ .. computer ( इसकी हिन्दी जरुरी नहीं :) पर हिन्दी देख कर मन बड़ा प्रफुल्लित होता है
...बेहतरीन !!!
bahut hi achhi rachna....
जिस धरा को विधवा समझ रहे, अब उसके प्रियतम आए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना देखो कुछ बादल आए हैं....
ये पंक्तियाँ ख़ास कर पसंद आई....सुन्दर रचना regards
regards
जो झूम उठे थे मस्ती में, वो सारे ही मन छले गये...
है देर बहुत कर दी तुमने, बादल आए थे चले गये...
Uff! Koyi any shabd soojh nahi rahe...nishabd kar denewaali rachna hai..harek shabd shilp ki tarah gadha hua..
आँखों की कोरी चित्रकला, अब रंगों से भर जाएगी...
बूढ़ी सी जर्जर धरती भी, यौवन का अमृत पाएगी...
अब खोल किवाड़ कली अपने, भंवरों को पास बुलाएगी...
बूँदों के दर्पण ताक- ताक हौले हौले शरमाएगी....
बहुत सुंदर
कुछ हमारी भी सुनलो क्यों दुखी होते हो .
" ना हो निराश, मन में कर विश्वास, फिर देख सारी बाधाये टल
जायेगी ,
आँखों को खोलो,दिल जो बोले वो बोलो, मन में प्रशंता छायेगी
हम जैसे दोस्त भी हैं आपके साथ ये जानलो
दोस्तों के साथ से गमो की हर शाम ढल जायेगी "
संजीव राणा
waah Sanjeev ji...
अच्छी रचना दिलीप जी
बादल आए, चिट्ठी खोली, पर पत्र सभी वो कोरे थे...
न थैले थे खुशहाली के, बस मायूसी के बोरे थे...
वो उम्मीदों के सीनों में, कुछ बान विषों के खोंस गये...
जो अभी अभी थी सजी हुई, वो माँग धरा की पोन्छ गये...
जो झूम उठे थे मस्ती में, वो सारे ही मन छले गये...
है देर बहुत कर दी तुमने, बादल आए थे चले गये...
बहुत सुन्दर शब्दों का संयोजन...ऐसा लगा की एक शब्द चित्र खिंच गया हो....कविता पढते पढते " लगान " का वो दृश्य याद आ गया जब बादल देख कर सारा गांव खुशियाँ मानाने लगा था और बादल आये और चले गए...
बहुत अच्छी प्रस्तुति
har kavita acchi hoti hai aapki...
bahut khoob...
blag jagat ke ek sashakt hastakshar hain aap...
badhai..
ek sashakt lekhan ko prastut karti hai aapki rachna........bahut hi sundar chitran kiya hai.
laajabaab, bahut badhiya, jitani prashansha ki jaaye kam.tumhare shabdon me jaadu hai.......
बहुत सुन्दर ! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
जो झूम उठे थे मस्ती में, वो सारे ही मन छले गये...
है देर बहुत कर दी तुमने, बादल आए थे चले गये...
कमाल की पंक्तियाँ है, बहुत सुन्दर!
कविता पर हाथ सँभल चुका। यानी सिद्धहस्त कवि हो चुके हैं आप। अब शिल्प और भाव, दोनों में अनूठी परिपक्वता है, उसके लिए बधाई स्वीकार करें।
dilip ji ...badi sundarta se likha hai!
सूखे की सेना को घन ये, अब धूल चटाने आए हैं...
तुम ज़रा मुन्डेरो पे चढ़ना, देखो कुछ बादल आए हैं....
एक और लाजवाब .. धरती की खुश्बू लिए ... मनमोहक रचना ...
तुम्हारे रेगुलर मूड से अलग हट कर की गई कविता हमारे लिए वैसे ही बादल की फुहार बनकर आई है.
इतने सरल वाक्यों का इस्तेमाल करके भी कोई बात कहना, वोह भी इतनी गूढ़ बात, आनंद आ गया .
मनोज खत्री
वत्स
सफ़ल ब्लागर है।
आशीर्वाद
आचार्य जी
क्या बात है ... अति सुन्दर ...!
बस अब मानसून आने ही वाला है ...
very nice ..........kalidas ki megdut yaad aa gai.........
bahut hi khubsurat chitran
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