अरे भारत के तथाकथित सपूतों मेरा क्या उखाड़ लोगे....

Author: दिलीप /


सुना है कल किसी ने मुझे मौत की सज़ा दी है...
कलम के कुत्तों को भौंकने की एक और वजह दी है...
भौंक लो भौंक लो जब थक कर चूर हो जाओगे...
चुपचाप पुरानी गलियों के कोने मे सो जाओगे...

दो दिन बंदर से उछल उछल कर मेरा क्या बिगाड़ लोगे...
अरे भारत के तथाकथित सपूतों मेरा क्या उखाड़ लोगे....

तुम्हारे आँगन की एक उड़ती चिड़िया दबोच ली...
फिर तुम्हारे चमकीले मुखड़े पे कालिख पोत दी...
पल भर की ही आँधी मे सैकड़ों को उड़ा दिया...
कितने टिमटिमाते हुए दियों को यूँही बुझा दिया...

देखना वक़्त बीतेगा फिर मुझसे तुम पल्ला झाड़ लोगे...
अरे भारत के तथाकथित सपूतों मेरा क्या उखाड़ लोगे....

मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ और सूरत...
कहाँ कहाँ नही चटकाई तुम्हारी माँ की मूरत...
कितने ऐसे किस्से होंगे जो तुम भूल चुके होगे...
कितने अफ़ज़ल बस काग़ज़ो पे फंदे झूल चुके होंगे...

अब तो लगता है एक दिन गीदडो को भी पछाड़ दोगे...
अरे भारत के तथाकथित सपूतों मेरा क्या उखाड़ लोगे....

मुझे मारने मे अभी तुम्हे एक दो साल लगेंगे...
तब तक न जाने कितने ही और कसाब बनेंगे...
क्या पता कल अज़हर की तरह मुझे भी छोड़ दो...
फिर आरोप प्रत्यारोप मे अपनों का सिर फोड़ लो…

हमारी ज़रूरत भी न होगी तुम ही खुद को उजाड़ लोगे...
अरे भारत के तथाकथित सपूतों मेरा क्या उखाड़ लोगे....

हम तो बस बाहर से बैठे बैठे हड्डी फेंकते हैं...
फिर तुममे से ही कुछ तुम पर ही भौंकते हैं...
और वैसे भी तुमने दुनिया को दिया बस ज़ीरो है...
हथियार रखे, लोगों को कुचले, तुम्हारा हीरो है...

देखना बहुत जल्दी ही तुम एक देश नही बस कबाड़ होगे...
अरे भारत के तथाकथित सपूतों मेरा क्या उखाड़ लोगे....

41 टिप्पणियाँ:

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

सच कहा दिलीपजी आपने

आज की मेरी यह पोस्ट देखे

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत जोश भरी और तीखे तेवर वाली रचना है ...
हम भारतवासी ऐसे ही हैं ... सदियाँ गुज़र गई हम नहीं बदले ... अब क्या खाक बदलेंगे ...

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

क्या बारूदी कविता लिखी है...काश! इस बरूद की आवाज़ आकाओं तक पहुँच पाती... लगे रहो मुन्ना भाई! कभी तो सोने वालोंकी नींद टूटेगी...

kunwarji's ने कहा…

लहूँ को फूँक कर स्याही की,फिर लिखने की सोची होगी,
आत्मा को सुलगा कर ठंडक पाने की कोई तरकीब भी खोजी होगी,
यूँ ही तो नहीं लिखी जाती दास्ताँ-ए-तडपन अपनी,
खुद जल-भुन कर बाद अपनी आत्मा ही नौची होगी!

कुंवर जी

दिलीप ने कहा…

waah kunwar ji kya baat kahi lajawaab...

Ra ने कहा…

बहुत खूब ..कहा आपने ......ज्वलंत मुद्दे पर एक अच्छी प्रस्तुति .....

Yogesh Sharma ने कहा…

kya baat hai Dilip ...aapkee yeh kavita padhke ek kuch der ko bhrasht netaa aur naukarshah logon kaa bhee zameer jaag jaayega...superb

डा० अमर कुमार ने कहा…


तो.. कसाब के खाते में एक नये तरह का नायकत्व ?
वल्लाह, क्या अँदाज़ है.. ग़र इसमें तुर्शी की जगह मौज़ लिये जाने का मुलम्मा होता,
फिर तो मुँह से यही निकलता.. माशाल्लाह ।

डा० अमर कुमार ने कहा…


तो.. कसाब के खाते में एक नये तरह का नायकत्व ?
वल्लाह, क्या अँदाज़ है..
ग़र इसमें तुर्शी की जगह मौज़ लिये जाने का मुलम्मा होता,
फिर तो मुँह से यही निकलता.. माशाल्लाह ।

सूबेदार ने कहा…

kukekuchh logo ke liye wot bank hai .bharat ki atma ro rahi hai.

sonal ने कहा…

दिलीप जी , भाव हम सबके मन में उठते है पर लेखनी हर किसी की इस तरह नहीं चलती ..
मन को उद्वेलित कर गई ये रचना

nilesh mathur ने कहा…

आपने जिस भाव से लिखी है वो तो समझ रहा हूँ, परन्तु इस तरह की रचना पढ़कर निराशा और आत्मग्लानी होती है!

Dev K Jha ने कहा…

वैसे कटु सत्य तो यही है.... एक से बढकर एक मिसालें हैं...
साफ़गोई से अपनी बात कहनें के लिये बधाई...

दिलीप ने कहा…

Nilesh ji kya pata ye aatmglaani aur nirasha hi kuch badlaav le aaye...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जो आपने कहा वह कटु सत्य है पर फिर भी ....................

"है बात कुछ कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ;
सदियों रहा है दुश्मन आहेले जहान हमारा ||"

जय हिंद !!

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

ऐसा लग रहा है जैसे आप उस कमी.........??? के दिमाग में ही बैठे हों........बिलकुल ऐसा ही सोच रहा होगा वो स्या...???
यहाँ खुले आम गाली देना शोभनीय नहीं होगा नहीं तो जो मैसेज हमने बना कर सभी मित्रों को भेजा है वो भी लिख देते टिप्पणी में.
क्या करेंगे साहब.................अब सबूत मिल गए हैं पाकिस्तान के खिलाफ तो अब पाकिस्तान की माँ......?????
चलिए जाने दीजिये..............
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

Tej ने कहा…

aap ki sonch jaiyej hai par hum hindustani hai..ek ek ki ukhaad lenge. Jai India, Bharat, Hindustaan.

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

हमेशा की तरह .......... बहुत अच्छी

दिलीप ने कहा…

pata nahi wo waqt kab aayega...kitna kuch to dekh liya ab tak to ukhada nahi yuva nashe me dhut clubon me jhoom rahe hain...unhe fursat nahi desh ki kab mauka mile kab videsh jaayein bas yahi soch hai unki...aur ham itne bhi mahaan nahi rahe jitna Iqbaal sahab ne kabhi kaha tha....

Apanatva ने कहा…

Ek sashkt rachana jo jakjhor gayee .

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

कुछ नहीं उखाड़ सकते.. छद्म धर्म निरपेक्षता ने ऐसी तैसी कर दी है..

Amit Sharma ने कहा…

गर उखाड़ना ही चाहे तो उखाड़ सकते है बहुत कुछ
क्या करे नामर्द हुई कौम सारी, नसों में होता नहीं कुछ

दिलीप ने कहा…

waah Amit ji sahi kaha ekdam kadwa sach...

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

अनाचार देख के यह भाव उमड़ना स्वाभाविक है। किन्तु सोचिये हम किस प्रकार की भूमिका निभा रहे है। हमारी लेखनी "मेरा क्या उखाड़ लोगे जैसे शब्दों का प्रयोग करे" अपनी ही मातृभूमि का अपमान होगा। जो कर रहे हैं वो तो कर ही रहे हैं। हमे लोगों मे जागृति पैदा करना है न कि अपनी विवशता प्रकट करना। समझ रहा हूँ वर्तमान परिस्थिति यह सब कहने को विवश कर रही है। वैसे आपकी रचना वाकई दिल से निकली हुई आवाज होती है। मै आपकी रचना का कायल हूं। यह मेरे मन का उद्गार है। क्षमा करेंगे।

दिलीप ने कहा…

suryakaant ji main bhi paehle asamanjas me tha ki aisa likhun ya na likhun par fir socha shayad isse kisi ka khoon khaule koi uthe...bas isiliye ye shabd istmaal kiya ...aur waise bhi wo kasaab bhi kuch aisa hi soch raha hoga

arvind ने कहा…

bahut sundar,teekha tevar, joshila, krantikaari.....kash log samajh paate yaa netao tak ye aavaaj pahunchati.

Shikha Deepak ने कहा…

बहुत खूब लिखा है आपने...........एक एक पंक्ति सीधी दिल पे चोट करती है। ऐसे ही लिखते रहिये।

SANJEEV RANA ने कहा…

ऐसे ही ना उजड जाये मेरा ये चमन डर लगता हैं
कोई कलि फूल कभी ना बन पाए डर लगता हैं
यू तो चिरागे दिल जला दू में मुल्क की रौशनी के लिए पर
अपने वतन के गद्दारों की घटिया राजनीती से डर लगता हैं


ठीक कहा आपने कसाब अगर ये सोच भी रहा होगा तो बिलकुल ठीक सोच रहा होगा.
आपकी रचना में पूरी सच्चाई हैं

tension point ने कहा…

नीति नियंताओं के मुहं पर जूता मारा है आपने | धन्यवाद

रंजू भाटिया ने कहा…

sach likha hai aapne ...pasand aayi aapki likhi yah rachna

Uma Shankar Yadav ने कहा…

Indian are to good in commenting, and anyone found Indian lazy while acting.

they live like and individual, not a society
yahan to aise bhi hain ki agar padosh mein koi bimar hain to dekhne bhi nahi jate hain, aur agar door kisi gali mein koi kudi ki khabartak mil jaye to waha chakkar lagate rahenge, bhale khud ki biwi ghar me akeli rahe

They are overdependent on others,
jis kaam mein inko munafa dikhta hain wo to karte hain baaki to koi na koi kar hi lega aisi sonch hai,to kya hoga,

inko koi ungli kare to hi uski or dekhte hain
aur kuch kehte hain, bahuto ko to ungli ki adat ho gayi hain,

Gud Work

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

Umdaa rachna Dilip ji.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

दिलीप.. दिलीप दिलीप. मेरी हज़ार पोस्ट न्योछावर हैं तुम पर.. और चटके भी.. अभी तो यही कह सकते हैं

दीपक 'मशाल' ने कहा…

चटका नहीं लग रहा भाई.. घर कब जा रहे हो? घर है कहाँ तुम्हारा? अपना नो. देना

राजभाषा हिंदी ने कहा…

विचारोत्तेजक!

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

गहरा व्यंग्य।
--------
कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?

vandana gupta ने कहा…

dileep ji
bahut hi jordar aur karara tamacha lagaya hai aaj ki vyavastha par.........gazab ki prastuti.......keep it up.

Unknown ने कहा…

जब तक सेकुलर गिरोह की चलती है तब तक गद्दारों नमकहरामों का कोई कुछ नहीं विगाड़ सकता लेकिन जिस दिन ....

सुन्दर रचना के लिए बधाई

vedvyathit ने कहा…

likhte rho
bdhai
dr. vede vyathit

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

देश के क़ानून की ये धुल मूल नीतियां ही ऐसे अवसाद को जन्म देती हैं...और दुश्मन बिलकुल इसी तरह से सोच खुश होता है..और फायदा उठाता है...मन की वेदना को जिस तरीके से लिखा है उसे पढ़ नेताओं और क़ानून पर भी शर्म महसूस होती है...

झकझोर दिया इस रचना ने

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