नव क्रांति कोई तो होने दो, भारत को अब न सोने दो....

Author: दिलीप /





इतिहास की अमर कथाओं में , भूगोल के उन अध्यायों में,
अर्जुन गांडीव के बाणों में , अट्ठारह व्यास पुराणों में,
दुर्भाग्य को अपने रोता है , भारत अब छिप कर सोता है ,

कबिरा रहीम के दोहों में , भगवद्गीता के श्लोकों में ,
मीरा और सूर के गीतों में ,उन कृष्ण सुदामा मीतों में,
स्मृतियाँ नयी संजोता है, भारत अब छिप कर सोता है,

सतयुग के सत्कर्मों में, उन पूज्य पुरातन धर्मों में,
सीता सावित्री सतियों में, श्री राम के जैसे पतियों में,
मणियों से अश्रु पिरोता है, भारत अब छिप कर सोता है,

पन्नाधाय के त्यागों से, हरिदास के अदभुत रागों से,
तुलसी की पवन भक्ति से, उस मौर्य वंश की शक्ति से,
अब के घावों को धोता है, भारत अब छिप कर सोता है,

गुरु गोविन्द में राणा में, उस खूब लड़ी मर्दाना में,
आजाद भगत से लालों में, त्यागी दधीची की खालों में,
देता स्वमृत्यु को न्योता है, भारत अब छिप कर सोता है,

आँखों में भर अंगारों को, बढ़ तोड़ सभी दीवारों को,
अब काट सिन्धु के ज्वारों को, मत रोक रुधिर की धारों को,
नव क्रांति कोई तो होने दो, भारत को अब न सोने दो....

25 टिप्पणियाँ:

kunwarji's ने कहा…

वाह दिलीप भाई!बहुत बढ़िया!पहले समस्या का विश्लेषण और फिर समाधान....

आपको पढ़ कर मै खुद को रोक नहीं पाया.....



दुर्भाग्य भाग रहा है,

शायद भारत जाग रहा है!

कलम तुम्हारी पढ़ाती नहीं,हिलाती है,

जो भूलते जाते है,याद वही दिलाती है,

बदल सबका राग रहा है,

शायद भारत जाग रहा है!

प्रयास तुम्हारा व्यर्थ तो ना जाएगा,

अश्रू नहीं औरत का जो बस बह जाएगा,

वो तो अब जन-जन में बन आग रहा है,

शायद भारत जाग रहा है!

कुंवर जी,

Sarita ने कहा…

नवक्रांति कोई तो होने दो..... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। अपनी सक्रियता से हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं यही कामना है।
http://gharkibaaten.blogspot.com

अरुणेश मिश्र ने कहा…

दिलीप . प्रशंसनीय एवं लोकोपयोगी ।

sonal ने कहा…

आपकी ओज पूर्ण लेखनी से निकली इस रचना ने रगों में लहू का प्रवाह बढ़ा दिया
ऐसे ही लिखते रहे

Asha Lata Saxena ने कहा…

सार्थक पोस्ट के लिए बधाई
आशा

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

लेखनी का प्रवाह और जोश पढने लायक है.....बहुत बढ़िया...मन आनंदित हुआ

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सतयुग के सत्कर्मो में , उन पूज्य पुरातन धर्मों में,
.............................भारत अब छिपकर सोता है
बहुत ही उत्तम पंक्तिया, बहुत सुन्दर दिलीप जी !

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

भारत को अब न सोने दो। उम्दा प्रस्तुति।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जागो सोने वालों .......
उम्दा रचना हमेशा की तरह !!

Parul kanani ने कहा…

dilip ji ..bahut khoob! :)

vandana gupta ने कहा…

बेहद उम्दा प्रस्तुति…………दर्द उभर कर आया है।

Unknown ने कहा…

समस्या का अच्छा विषलेशन कर बढ़िया समाधान प्रसतुत किया आपने

बेनामी ने कहा…

तुम्हारी इस रचना ने झिझोड़ कर रख दिया. अद्भुत, कमाल. मेरे पास तो शब्द ही नहीं बचे.
यह तेवर और यह आग संभाल कर रखना, इन्हें बुझने मत देना.
एक बात और कहना चाहूँगा--- कल तुम्हारा है.
** तुम लखनऊ में हो, मैं भी. तुमसे मिलने कि इच्छा हो रही है है. कभी अवसर मिले तो भटक जाना.
एम-१८, न्यू गोल मार्केट (यूनिवर्सल बुक सेंटर के पीछे गली में), महानगर, लखनऊ.
फोन: ०५२२४१०५७६३ ९६९६३१८२२९.

दिलीप ने कहा…

bahut bahut Abhaar....sir main is samay mysore me hun par agle hafte lucknow aa raha hun...jarur milunga...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बाजुएँ फडक रही हैं इस गीत को पड़ कर .... जै हिंद ...

hempandey ने कहा…

अच्छा देशभक्ति गान.साधुवाद.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपका उपाख्यान बहुत अच्छा लगा!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

टेम्पलेट तो बहुत बढ़िया है!
इसीलए खुलनें में बहुत देर लगाता है!

दिलीप ने कहा…

Mayank ji itna achcha template laga ki ab badalne ka man nahi karta..waise jyaada pareshani ho to bataye...kuch kiya jaaye...

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

"अट्ठारह व्यास पुराणों में"

क्या सभी पुराण व्यासजी द्वारा निर्मित हैं? क्या यहाँ अतिव्याप्ति दोष तो नहीं आ गया?

दिलीप ने कहा…

Pratul ji..vaastav me jahan tak mujhe gyaan hai...Vyaas kisi ka naam nahi...ek upaadhi thi...ek sanskrit shlok me kaha bhi gaya hai...ashtadash puraneshu vyasasya vachanadvyam...paropkaaraay punyaay paapaay parpeednam...

Tej ने कहा…

josh bhar diya aap ne is kavita se...
aap ne mere blog par jo kaha main usse bilkul bhi chakit nahin hun...par aap to aacha likh rahe hain..aage bhi likte rahenge.
dusre bhason ka prayog karne ke virodh main main nahi hun par jahan tak ho sake hindi main koi burayi to nahin hai.

रचना दीक्षित ने कहा…

हर बात दिल से निकली लगती है अद्भुत !!!!!!!!!!!!!

Sadhana Vaid ने कहा…

उत्साह और प्रेरक तत्वों से परिपूर्ण एक सशक्त एवं सार्थक प्रस्तुति !'देश को अब न सोने देने' का बहुत ही सामयिक और वन्दनीय आह्वान है ! मेरा साधुवाद स्वीकार करें !

Anupama Tripathi ने कहा…

आँखों में भर अंगारों को, बढ़ तोड़ सभी दीवारों को,
अब काट सिन्धु के ज्वारों को, मत रोक रुधिर की धारों को,
नव क्रांति कोई तो होने दो, भारत को अब न सोने दो....
ठीक बात है -
उठो वीर जागो ...!!
बहुत सुंदर रचना ,
बधाई

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