मेरे महबूब तू तो 'रोटी' है...

Author: दिलीप /



प्रेम पर कुछ कलम चलाने कि कोशिश तो कि...पर देखिये क्या हुआ.... :)


जब तुझे पहली बार देखा दिल खुद खुद झुक गया...
बुतो को पूजने का सिलसिला जाने क्यूँ बस रुक गया....
कितनी मिन्नते करता हूँ तो तेरी एक झलक मिलती है...
तेरी रहमत पे दिल धड़कता है, मेरी साँस चलती है...

बस इतना कहूँगा की तू इन सारे नज़ारों से जुदा है...
मेरे महबूब ये देखकर, मुझे लगता है कि तू 'खुदा' है...

तेरी चमक मेरे दिल को अजीब सा सुकून पहुँचाती है...
पर जाने क्यूँ अक्सर तू दूर जा कहीं छुप जाती है...
पर फिर जब आती है तो दिल के अंधेरे खिल जाते हैं...
दिल के खामोश खंडहर ज्वार भाटे से हिल जाते हैं...

जाने तेरे होंठो का ये तिल क्या करता फरियाद है...
मेरे महबूब वो शायद यही कहता है कि, तू 'चाँद' है...

तेरी एक नज़र दिल की जलती जमी को बुझा देती है....
फिर मेरी ये प्यासी रूह तेरी आँखों को दुआ देती है...
पर कभी कभी तू ये इनायत अंजानो पे भी करती है...
कभी यूँही पलट जाती है फिर मुस्कुराहट बरसती है...

तेरी इक झलक को जाने कितने दिलों के मोर पागल है...
मेरे महबूब लगता है तू चाँद नही तू एक 'बादल' है...

पर जब देखता हूँ सब तेरी एक झलक को तरसते हैं...
किसी और की तरफ इनायत हो तो कितना जलते हैं...
तेरे लिए तो ना जाने कब एक दूसरे मे जंग हो जाए...
तू हो तो कितनी ज़िंदगियाँ बस यूँही बेरंग हो जाए...

जब ये देखा तो समझा कि मेरी समझ कितनी छोटी है...
खुदा, चाँद, बादल, मेरे महबूब तू तो 'रोटीहै...

27 टिप्पणियाँ:

M VERMA ने कहा…

प्रेम पर आपकी कलम खूब चली, चलाते रहिये
बहुत सुन्दर रचना

कडुवासच ने कहा…

.....बहुत सुन्दर !!!

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

आल राउन्डर! बहुत खूब! चंहु ओर अपनी आभा बिख्ररते रहिये। बधाई!

sonal ने कहा…

आपकी लेखनी से बारूद पढने की आदत पड़ गई थी .. थोडा समय लगेगा हमको ..खूबसूरत रचना

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या कहूँ भाई , हर बार की तरह इस बार भी लजवाब प्रस्तुति रही , डुब कर लिखता पहचान बन गई है आपकी ।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

आपकी कलम में तो जोश भी है और मुहब्बत भी ... क्या बात है !

दीपक 'मशाल' ने कहा…

अच्छा है दिलीप पर तुम से और बेहतर की उम्मीद कर सकते हैं.. ये मुझे पता है.. इश्क कर के देखो.. :) इसमें भी बाद में आके!!!! हा हा हा मानोगे नहीं..

मनोज कुमार ने कहा…

इस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह....क्या बात कही है....रोटी से ज्यादा ज़रूरी कुछ नहीं...यदि महबूब में रोटी दिखती है तो वो जिंदगी के लिए बहुत ज़रूरी है.. :):)

Parul kanani ने कहा…

waaaaaaaaaahhhhhhhhhhh! :)

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

bahut sundar blog sundar kavitaa pet ko choo gayee

दिलीप ने कहा…

sabhi miron ka abhaar is ajeeb koshish ki parashansha ke liye...Dipak ji bas aise hi likhne ki koshish kar raha tha...so ye hi man me aaya...waise pyaar kiya tha kabhi...uski bhi kuch nishaniyan kaagazon pe hain...par ab unke kya maayne...

nilesh mathur ने कहा…

दिलीप जी, अंतिम पल में बाजी पलट दी !

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना | बहुत बहुत बधाइयाँ !!

Rohit Singh ने कहा…

देश की सत्तर फीसदी जनता की महबूब...15 फीसदी जनता किसी तरह पाती है....बाकी के लोग इससे खेलते हैं....

Renu goel ने कहा…

वाह ... महबूबा और रोटी .. क्या खूब कहा

दिलीप ने कहा…

Dhanywaad Mitron...

kunwarji's ने कहा…

मस्त है जी!

महबूब भी फूला ना समाया होगा,

जब प्रेमी भूखा ही उस से मिलने आया होगा!

कुंवर जी,

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

दिलीप जी इस पर मैं कल रात को टिपण्णी देने वाला था, लेकिन खुद को रोक दिया क्यूंकि उस वक्त लोगो की टिप्पणियाँ आनी शुरू ही हुई थी अथ मैं नहीं चाहता था कि कोई उपदेशात्मक टिपण्णी मैं पहले पोस्ट कर दूं ! यदि बुरा न माने तो एक बात कहूंगा कि जिस तरह पूरी रचान बहुत खूब-सूरत बन पडी थी उसमे सिर्फ सुरुआत का एक वाक्य मुझे नहीं जंचा, ..... दिल खुद व खुद झुक गया .... अगर आप गौर करें तो इन प्रैक्टिकल यह कहीं नहीं कहा जाता कि मेरा या उसका दिल झुक गया हाई , दिल झुक नहीं सकता अत यह अतिश्योक्ति बन जाता है ! अगर आपको उचित लगे तो इसमें थोड़ा फेर बदल कर लीजिये , मसलन "पूरा बदन मेरा खुद व खुद झुक गया...... इत्यादि ! बाकी की कविता माशाल्हा , बहुत सुन्दर !

संजय भास्‍कर ने कहा…

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

प्रेम में प्रेमी किसी को शामिल नहीं करना चाहता और रोटी में तो भागीदार बनाना हमारी संस्कृति में है.

Rishi Raj ने कहा…

bahut sunder kindly access my blog

Rishi Raj ने कहा…

my blog address is www.rishirajshanker.blogspot.com

अरुणेश मिश्र ने कहा…

रचना अपना संदेश यथास्थान प्रेषित करने मे सक्षम ।
चि0 दिलीप . अच्छी रचना ।

Kulwant Happy ने कहा…

अद्बुत है महाराज। अद्बुत है। साँसें चलती है। की जगह साँस चलती है। शायद फिट बैठता है।

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

nicely concluded.. :)

Shikha Deepak ने कहा…

दिलीप.........हमेशा की तरह बहुत बढ़िया प्रस्तुति। महबूब...........रोटी !!!!!! वाह

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