आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी....

Author: दिलीप /


जो शोषण का प्रतिकार करे...आगे बढ़ अरि पे वार करे....
ले अंगड़ाई तो हिले धारा...कंपन सारा आकाश करे....
पान्च्जन्य के नाद को सुन...हर ओर अधर्म पे वार करेगी....
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी....

हर एक विभीषण को छान्टे...सब अंग अंग उसके काटे....
घर के भेदी जो बने हुए...जो मृत्योपहार उसे बाँटे....
रक्तबीज जैचंदों का ...सिन्ह चढ़के जो संहार करेगी....
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी....

जो वीरों का सम्मान करे...सत्कर्मों पर अभिमान करे....
हर एक शत्रु का अंत करे...तब जाकर ही विश्राम करे....
गलन करे अरिशस्त्र का जो...क्या ऐसी विष फुँकार बनेगी....
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी....

निर्धन को भी धन बल दे...शिशुओं को जो सुंदर कल दे....
दुर्बल जिससे हो बलशाली...जो ऐसा सबको संबल दे....
सूर्य जलाकर राख करे...क्या ऐसा अग्नि प्रहार करेगी....
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी....

जो निद्रा का संधान करे...हर युवक ऊर्जावान करे....
युवा शक्ति को साधन दे...उनमे नवस्फूर्ति संचार करे...
शांत सिंधु मे उथल पुथल...कर दे क्या ऐसा ज्वार बनेगी...
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी....

कर उठे हिंद ये सिंहनाद...और दूर करे सारे विषाद....
जो शत्रु कल्पना करे नही...उसको जो वैसा दे प्रसाद....
शठे शाठ्यम समाचरेत्...जो इसका नित्याचार करेगी......
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी....

रघुनंदन की मर्यादा हो...यदुनन्दन जैसा ज्ञान रहे....
बस कर्म करे बिन फल सोचे....ये भीष्म प्रतिज्ञा ध्यान रहे....
पड़ जाए कही तो ज्वाल बने…ऐसी वो रुधिर की धार बहेगी....
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी....

35 टिप्पणियाँ:

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

कलम तलवार से कहीं ज्यादा धारदार और असरदार होती है, और आपकी लेखनी में अद्भुत धार और असर है। बनाये रखिये।
बाहुत पसन्द आई आपकी ये पोस्ट।
आभार

दीपक 'मशाल' ने कहा…

तलवार से भी ज्यादा धारदार तुम्हारी कलम से निकली एक और ओजमय रचना भाई..

दिलीप ने कहा…

Dhanyawad ..abhi do din se gaanv me tha to kai cheezein miss hui...jaldi hi in dino ki rachnaayein padhunga...

aarya ने कहा…

सादर वन्दे !
जो कलम पूजते इस जग में
वो निडर सारथी होते हैं
बन्दुक एटमबम्मों से
कायर ही लड़ा करते हैं

जो जिद ठान ले सच लिखने की
तो कलम मार हर बार करेगी
जो एटम बम भी कर ना सके
इस कलम की वो धार करेगी
रत्नेश त्रिपाठी

माधव( Madhav) ने कहा…

definitely, but pen should have the required sharpness and u have the same

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

रघुनंदन की मर्यादा हो...यदुनन्दन जैसा ज्ञान रहे....
बस कर्म करे बिन फल सोचे....ये भीष्म प्रतिज्ञा ध्यान रहे....
पड़ जाए कही तो ज्वाल बने…ऐसी वो रुधिर की धार बहेगी....
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी.... दिलीप भाई, यदि गति कलम की कुछ इसी तरह की हो, तो अवश्य कलम तलवार बनेगी। सुन्दर रचना।

Ra ने कहा…

भइये ! ये रचनाएं-वचनाएं छोड़ो ...तुम तो बड़ा सोलिड लिख देते हो ...और हमें दिमाग को टीटकी बनाते हुए ये कुरेदना पड़ता है की इस जोरदार जलती कविता को कैसे और तेज करे कहीं कम्बखत टिपण्णी घी की जगह पानी का काम ना कर जाए ....मतबल कोई ऐसी आलतू-फ़ालतू बात ना लिख दे जिससे आपके ब्लॉग का टिपण्णी स्तम्भ मुरझाने लगे ...तुम्हारी कविता पर टिपण्णी क्यूँ लिखे ? ....इस से तो ये टन्न रहेगा की खुद ही कुछ कविता लिख दे ..मेहनत तो बरोब्बर लगेगी ...पर हमें भी आपकी कविताओं से प्रेम हो गया है ...दो दिन नहीं दिखी ..हमें ही पता है दिन तो निकल गया ससुरी रात में आपकी कविता की फिर याद आई ....अम्मा बोली .....लल्लू की शादी करा दो ..हाथ से निकलता जा रहा है ...अब अम्मा को कौन मुआ जाकर ये बताएं की जिससे लव हुआ ....वो कोई ब्रज की गौरी नहीं ,,,,एक कवि की कल्पना है ...'कल्पना' नाम सुनते ही अम्मा उछल पड़ी ...अब अम्मा को कैसे कहे की दिलीप भाई आज तो कल्पना लेकर ही नहीं आये,,,,कुछ पुरानी रचनाएं दिखाई तब ..अम्मा गंभीर होकर बोली बेटा कविता को छोड़ दे ...उसके तो कई दीवाने है तुम्हारा तो वेटिंग लिस्ट में भी नंबर नहीं है ...अब अम्मा को क्या पता जो चीज इतनी सुन्दर होगी ..उसके इतने दीवाने होना तो लाजमी है ....अब देखदेख कर ही काम चला लेंगे ...पर दिलीप से कहंगे की भई रोज़ एक नयी सुन्दर कविता का दीदार करा दे ....और ये बात इतनी बकवास सुनकर दिलीप बाबू समझ ही जायंगे

दिलीप ने कहा…

Rajendra ji itna samman mat dijiye....waise aapki tippani me hamesha ek apnapan aur ajeeb sa khinchaav rehta hai....aur abhi to ham dono bhai seekh hi rahe hai...kuch ek dusre se kuch doosron se...:)

Ra ने कहा…

गुरुदेव हमारे उपवन की गली में भी अइयो ...तुम चले गए... दिनरात पानी दिया फिर भी कुछ कलियाँ नहीं खिल पायी ..उन्हें ही ताक रहे है

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

जम गया रुधिर धमनी में, मसी सूख गई लेखनी में
युवजन वश में हैं मद के, और कलम बैठी मुजरे में
कैसे जगकर सोने वालो पर कलम आज चित्कार करेगी
व्यर्थ पूछना है दिलीप क्या कलम कभी तलवार बनेगी.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

हाँ हाँ........ यह कलम तलवार बनेगी !!

nilesh mathur ने कहा…

दिलीप जी, आपकी कलम तो तलवार नहीं AK 47 है, बेहतरीन रचना

मिलकर रहिए ने कहा…

मेरे नए ब्‍लोग पर मेरी नई कविता शरीर के उभार पर तेरी आंख http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html और पोस्‍ट पर दीजिए सर, अपनी प्रतिक्रिया।

कडुवासच ने कहा…

...अदभुत !!!

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhaai dilip ji aapki is rchnaa ne aatmaa jhkjhr di he lekin is jnm me fir se aek baar qlm tlvaaar bnegi vigyaapnn ki gulaami ke chlte yeh hogaa yaa nhin keh skte lekin aapke saath milkr aesi qlm bnaane ki koshish qrur kr rhe hen. akhtar khan akela kota rajastha mera hindi blog akhtarkhanakela.blogspot.com he

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

अच्छी रचना... मंच पर इस का सार्थक प्रयोग हो सकता है..

पापा जी ने कहा…

पुत्र
मुझे तुझ पर गर्व है
तू मेरा नाम रोशन कर रहा है
पापा जी

बेनामी ने कहा…

talwaar ke naam par aapne to agni se waar kiya hai.....
kaafi damdaar rachna...
ek aur dhaar daar rachna.....
bahut khub...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

shabdo ki talwaar bahut teekhi hai...kahin na kahin to ye teekhapan asar dikhayega jaroor..bahut sunder rachna.badhayi.

अमिताभ मीत ने कहा…

भाई फिर से एक और कमाल की रचना ..... बधाई ...

जवाब नहीं इस कलम का !!

राजकुमार सोनी ने कहा…

काफी धांसू रचना है आपकी। आपको बधाई।

दिलीप ने कहा…

Dhanywaad mitron...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह...सारे छंद एक से बढ़ कर एक....

रघुनंदन की मर्यादा हो...यदुनन्दन जैसा ज्ञान रहे....
बस कर्म करे बिन फल सोचे....ये भीष्म प्रतिज्ञा ध्यान रहे....
पड़ जाए कही तो ज्वाल बने…ऐसी वो रुधिर की धार बहेगी....
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी...

बहुत ओज पूर्ण रचना.....बधाई

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हर एक विभीषण को छान्टे...सब अंग अंग उसके काटे....
घर के भेदी जो बने हुए...जो मृत्योपहार उसे बाँटे....
रक्तबीज जैचंदों का ...सिन्ह चढ़के जो संहार करेगी....
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी....

आपकी कलाम की धार तो तलवार से भी तेज़ है ... कमाल की रचना ... आज की ज़रूरत ...

Kulwant Happy ने कहा…

सच कहूँ, एक क्रांतिकारी कवि हो तुम दिलीप भैया।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

दिलीप भाई
बेशक उत्कृष्ट पोस्ट

honesty project democracy ने कहा…

निर्धन को भी धन बल दे...शिशुओं को जो सुंदर कल दे....
दुर्बल जिससे हो बलशाली...जो ऐसा सबको संबल दे....
सूर्य जलाकर राख करे...क्या ऐसा अग्नि प्रहार करेगी....
आज पूछ्ता हूँ तुमसे...क्या कलम कभी तलवार बनेगी....
ऐसा तभी हो सकता है जब कलम चलाने वाले ईमानदारी से
अपना अपना स्वार्थ छोड़कर जनहित और इंसानियत के लिए एकजुट हों जाएँ |

Apanatva ने कहा…

utkrusht rachana ke liye badhai .

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

प्रशंसा की बौछार के बाद ओलावृष्टि :

— दिलीप जी यदि कलम तलवार बनी, तो आप अपने ब्लॉग शीर्षक का नाम क्या बदल देंगे?

— क्या हम रावण पक्ष से इस कविता पर विचार करें? यदि करेंगे तो संत विभीषण को घर का भेदी ही ठहराते रहेंगे. ["हर एक विभीषण को छान्टे...सब अंग अंग उसके काटे..../ घर के भेदी जो बने हुए...जो मृत्योपहार उसे बाँटे...."] — दूसरी तरफ आप रघुनन्दन की मर्यादा को भी कलम का विषय बनाने के हिमायती हैं.

— श्री राम और संत विभीषण रावण के दुष्कर्मों के प्रति एकजुट हुयी ताकत और सत्कर्मों के प्रति हुयी संधि का प्रतीक है. बस हम लेखकों को विभीषण के प्रति बने इस प्रचलित मुहावरे को धता बतानी होगी. आपकी कलम में वो स्याही है जो इसे नया रूप दे सकती है.

— हाँ "विभीषण" लंका को ढहाने का कारण ज़रूर बना लेकिन वो लंका पाप और दुराचार की प्रतीक बन गयी थी. आप इसे सामयिक अर्थों में समझें "यदि पाकिस्तान के बुरे मंशों को बताने को नवाज शरीफ तैयार हो जाए और किसी बड़े परमाणु हमले को फ़ैल करने का कारण बने तो क्या वो भारत के पक्ष से भेदिया ठहराया जाएगा. नहीं ना..."

— जो वीरों का सम्मान करे/ सत्कर्मों पर अभिमान करे / हर एक शत्रु का अंत करे.. तब जाकर ही विश्राम करे/ गलन करे अरिशस्त्र का जो.../ निर्धन को भी धन बल दे/ शिशुओं को जो सुंदर कल दे/ दुर्बल जिससे हो बलशाली /जो ऐसा सबको संबल दे / जो निद्रा का संधान करे...हर युवक ऊर्जावान करे.... / युवा शक्ति को साधन दे...उनमे नवस्फूर्ति संचार करे... इन सभी पंक्तियों में एक मजबूत राष्ट्र के लिये आपने जो भी कामना की है वह सच्चे अर्थों में "राष्ट्रीय वंदना" कहलाने योग्य भाव हैं. वैदिक राष्ट्रीय गीत में काफी कुछ यही कामनाएँ निहित रहती हैं.

— कविताओं में केवल नाद ही नाद न रह जाए - इसका ज़रा ध्यान रखना. ओज गुण वाली कविताओं में खासकर इस बात को गाँठ बाँधें.

— लिखते रहें क्योंकि कभी ना कभी लेखन उत्कृष्टता पायेगा ही. आपका लेखन सतत है और अपेक्षाकृत बेहतर है इसलिये आपके ब्लॉग पर आना सुखद है.

दिलीप ने कहा…

@Pratul ji....main ye nahi kehta main kavi hun...bas kuch karne ka ichchuk hun apne rashtra ke liye...yahan vibhishan ka naam ghar ke bhediyon ke liye hi liya gaya...pehle mujhe bhi thodi hichkichahat thi...par fir maine thoda chintan kiya....aur fir socha kalyugi vibhishano ko maarne ki zarurat hai...kyunki wo ghar ki kamiyon ke liye kuch karte nahi varan unka fayda uthakar..shatru ke sath milkar inash ko janm dete hain....

दिलीप ने कहा…

baaki main yahi kahunga ki mera har prayas mere liye ek updesh hai jo mujhe prerit karta hai kuch karne ke liye...shuruaat bhi ki hai...uska bhi jikr jaldi hi karunga...

दिलीप ने कहा…

pratul ji aapke aashirwad ke liye dhanywaad...aur aapse vada karta hun...ek din zarur kuch aisa kar jaunga ki sabhi ko fakr ho...

संजय भास्‍कर ने कहा…

.क्या कलम कभी तलवार बनेगी...
kyo nahi daleep ji...............jaroor banegi......

Avinash Chandra ने कहा…

Jabardast....oj ka adbhut swaroop...talwar hi to hai ye lekhan

बेनामी ने कहा…

no words

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