जाने एक नौजवान को क्या सनक चढ़ी...
जाने थी क्या खुराफात उसने मन मे गढ़ी...
वो जोश मे उठा और तेज़ी से चलने लगा...
एक सज्जन का तेज़ी से पीछा करने लगा...
बेचारे सज्जन भी ये देखकर बड़ा घबराए...
अपने कदम थे उन्होने बड़ी तेज़ी से बढ़ाए...
उनके काँधे पे एक छोटा सा बैग लटका था...
बस उसी मे इस नौजवान का जी अटका था...
सज्जन बैग सीने से चिपकाए ज़ोर से भागे...
लगा शायद नौजवान से निकल गये आगे...
पर वो भी दुगनी रफ़्तार से दौड़ रहा था...
सज्जन का पीछा बिल्कुल न छोड़ रहा था...
सज्जन भागकर तब रेलवे स्टेशन पहुँचे...
बड़ी तेज़ी से थे प्लॅटफॉर्म की ओर लपके...
पर उसने अभी भी उनका पीछा ना छोड़ा...
वो भी उनके पीछे पीछे प्लॅटफॉर्म पे दौड़ा...
लोग तो बस खड़े खड़े तमाशा देख रहे थे...
ओलंपिक जैसी दौड़ से आँख सेंक रहे थे...
फिर पोलीस भी कहीं से सीन मे आई...
नौजवान को पकड़ा और लाठियाँ बजाई...
पर वो सज्जन अभी शायद नही थे थके...
वो तो बस दौड़ते ही रहे और नही रुके..
पोलीस को शक हुआ तो उन्हे भी रोका...
पर वो तो दे गये पोलीस को ही धोखा...
बैग फेंका और वो भीड़ मे कहीं खो गये...
फिर जाने कहाँ वो चुपचाप चंपत हो गये...
बैग खोला तो वहाँ खड़े सब गये सहम..
उसके अंदर रखा हुआ था एक टाइम बम...
फिर तुरंत वहाँ बम निरोधक दस्ता आया...
फिर उन्होने उस बम को फटने से बचाया...
फिर बात चली नौजवान उसी का साथी है...
हो ना हो ये भी ज़रूर कोई आतंकवादी है...
फिर चार लाठियों मे ही वो बिखर गया...
उसके खुलासे से हर कोई था सिहर गया...
बोला मैं कोई आतंकवादी नही सरकार...
मैं तो हूँ बस एक अदना सा बेरोज़गार...
जाने कबसे घर मे था चूल्हा नही जला...
कोशिश की तो पर कोई काम ना मिला....
ये सब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था..
इसलिए एक कोने मे बैठा रो रहा था...
फिर मैने उसे बम रखते हुए देख लिया...
इसीलिए मैं उसके पीछे पीछे हो लिया...
सोचा था कहीं न कहीं तो ये बम फूटेगा...
बस बेरोज़गारी से वही मेरा दामन छूटेगा...
इसके धमाके मे चुपचाप मरने चला था...
परिवार के लिए आज कुछ करने चला था...
मरता तो सरकार से पैसे ही मिल जाते....
मेरे मरने से परिवार के दिन फिर जाते....
21 टिप्पणियाँ:
बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। अपने कविता के माध्यम से इसे बड़ी सहजता से उजागर किया है। बढ़िया।
ओह.... बहुत मार्मिक....बेरोज़गारी कि भयावहता को बताती अच्छी रचना..
ये दर्द महसूस करने वाला दिल भी सब के पास नहीं होता।
फ़िर से बहुत मर्मस्पर्शी रचना।
आभार।
आज की ज्वलन्त समस्या "बेरोजगारी"। धर लेता है रूप विकराल, विवशता,भूखमरी लाचारी। करता है आत्महत्या को उद्यत, या फिर बन जाता है भिखारी। मर्मस्पर्शी रचना। जय जोहार्…॥
निःशब्द कर दिया आज आपने!
बुद्धिजीवियों के लिए यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन मेरा मानना है कि हिंदी साहित्य कि वर्त्तमान की ये श्रेष्ठ रचनाओं में एक है,
रत्नेश त्रिपाठी
ye to hasya likh dala aap ne....
बेहतरीन रचना ! बेरोज़गारी कि बिकराल समस्या पुरे देश को निगल रही है ...
... क्या बात है ... प्रसंशनीय!!!
बहुत खूब मेरे दोस्त .....बेरोजगारी की समस्या अब विकराल रूप ले रही है ....अगर जल्द ही इसका कोई उपाय नहीं सोचा तो ...बड़ी भयानक स्थति उत्पन्न हो सकती है ...इसी तरह देश के हर नौजवान बेरोजगार को कोई अनैतिक रास्ता चुनना पड़ेगा ....आपकी यह आवाज हम तक पहुंची ...काश यह हर हिन्दुस्तानी और सरकार तक भी पहुंचे ...आपकी रचना वक़्त की आवाज है ..अच्छी प्रस्तुति ....सफल प्रयास .....
Shukriya doston aur rajendra ji aapke videos dekhe...aap to bade waale mastikhor nikle...Superman wala jabardast tha...
Pariwaar apni aulad khoke un paison se aram karak zindagi nahi basar kar sakta...
kshama ji ab wo bwchara bhi kya kare bhookhon marte dekh bhi to nahi sakta...
berojgari ka ek aur kurup roop dikha diya aapne. sateek rachna.
Dhanywaad Anamika ji...
haalat ka behad marmik chitran...rongte khade karne wala..............aapki post kal ke charcha manch par hogi.
Shukriya Vandana ji...
मरता तो सरकार से पैसे मिल जाते
दर्द जब पराकास्ठा पर पहुँच जाता है तब मिलती है ऐसी अभिव्यक्ति
बेरोज़गारी का इतने प्रभावी तरीके से मार्मिक वर्णन किया.. अच्छा लिखा दिलीप..
ज़िन्दगी की एक दुखद सच्चाई है बेरोज़गारी ..................सटीक मुद्दे पर करारी चोट करी है !
तुम्हारी हर कविता अपने आप में एक कहानी होती है .........बहुत बढ़िया मेरे दोस्त, लगे रहो !!
gambhir vishay ko bahut khoobsurati se aapne kavita m bandha hai .............shivam mishra ji se sahmat hun mai bhi
बहुत खूब मेरे भाई .....बेरोजगारी की समस्या अब विकराल रूप ले रही है
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