स्वप्न जालों मे फँसे, बिस्तर से जो चिपके पड़े थे...
देख गोली, मूषकों से बिल मे जो दुबके हुए थे...
थी बहुत शर्मिंदगी अंगड़ाइयों को भी मगर...
जागकर भी नींद की डाली खड़े थे थाम कर...
आज लेकिन जोश मे खुशियाँ मनाने जा रहे हैं...
आज आलस छोड़कर ये घर जलाने जा रहे हैं...
रात मे रंगीनियाँ थी, दिन सफेदी मे पुते थे...
और हरदम दूसरों के पाप गिनने मे जुटे थे...
भेड़िया अंदर छिपाये आदमी का स्वांग रचते...
चाल शतरंजी हमेशा आप हम क्या खाक बचते...
आज वो अपना अनोखा फन भुनाने जा रहे हैं...
पंडिताई झाड़ने को सिर मुंडाने जा रहे हैं...
हादसे मे एक, नौकर छोड़ दुनिया चल बसा था...
एक बेटी के सिवा परिवार मे कुछ न बचा था...
पास इनके जब वो आई माँगने कुछ काम को...
है बुलाया कल उसे बिल्कुल अकेले शाम को....
फ़ायदा मजबूरियों का वो उठाने जा रहे हैं...
और हम से कह रहे इक घर बचाने जा रहे हैं...
बेवफा की याद मे मजनूं बने ये घूमते थे...
दर्द मे ये बन शराबी पागलों से झूमते थे...
थे नशे मे चूर आधी रात जब इक घूँट पी थी...
और फिर बन जानवर इज़्ज़त किसी की लूट ली थी...
वो किसी दामन मे कुछ काँटे सजा के आ रहे हैं...
बोलकर हमसे गये थे गम भुलाने जा रहे हैं...
34 टिप्पणियाँ:
सुन्दर ,अतिसुन्दर।
Dilip jab bhee main aapke blog par aataa hgoon to rosh mein aur naaraz ho kar hee jaataa hoon..ye naarazgee hotee hai duniya ke prati, apne chaaron aur aur apne andar bhee bad rahee gandgee ke pratee ..mere bhai ek din jhoote hee likh do ki sab theek hai... kabhee bhulaave mein bhee rehne ko man kartaa hai yaar....bahut hi badhiyaa
... अदभुत ... बहुत बहुत बधाई !!!
वाह अति उत्तम ! सशक्त रचना है !
ओह....बहुत ही संवेदनशील.....फायदा मजबूरियों का उठाने जा रहे हैं.....उफ़
मन को छू गयी ये रचना
किसी सफेदपोश की कहानी लगती है ।
यहाँ हर कोई किसी की मजबूरी का फ़ायदा ही उठा रहा है ....कुछ लोग तो इसी रोजगार मे है कि पता लगाते रहते है कि कब ,किसी को,किस तरह से मजबूर कर दिया जाए कि अपना फ़ायदा हो....
bhai vah.
bhai vah.
bhai vah vah.
(dost ye meri kavita apki nazar).
लाचारी, विवशता, बेबस क्या से क्या नही करा देती अद्भुत क्षमता है आपमे भावों को शब्दों मे अलन्क्रित करने की। मजबूरी, विवशता, बेबसी औ लाचारी कारक हैं ये, लान्घने की; शर्मो हया की चहार-दीवारी क्योंकि पापी पेट का सवाल है जिसके लिये दुनिया मे मचा बवाल है। बहुत बहुत बधाई!
जय हो !
आप अपनी टिप्पणियों का बक्सा बंद कर दीजिए... लोगों के शब्द कम पड़ जाएंगे!!! कम से कम मेरे तो हो ही चुके हैं!!
मन बेचैन हो उठा...उठकर बालकनी में आ गया. ऐसा लगा जैसे अपने मन की सच्ची तस्वीर वो देख नहीं पा रहा. आज खुद को इतना छोटा..इतना स्वार्थी देखना..सहन नहीं कर पा रहा था.
is bharpoor sneh ke liye aap sabhi ka dhanywaad...
कितनी सादगी से बात कह दी ,वो किसी दामन में कांटे सजा कर आ रहे हैं . हमसे कह कर गए थे गम भुलाने जा रहे हैं ... वाह ....
वैसे ऐसे लोगों के बारे में पढ़कर मन बड़ा खिन्न होता है .. पर यही समाज की सच्चाई है और उससे हम कब तक मुंह मोडेंगे ....
आपकी रचनाओं की तल्खी झिंझोड़कर रख देती है
बहुत सुन्दर
Verma ji aur Pukhaaj ji bahut bahut dhanywaad...
एक बार फिर ये साबित करते हुए की क्यों में इस ब्लॉग जगत में आपके दिल की कलम से लिखे को पढ़ने के लिए जैसे भी हो समय निकलता हूँ.
हमेशा ऐसे ही लिखते रहिये
संजीव राणा
हिन्दुस्तानी
अब तो शब्द समाप्त हो गए हमारे शब्दकोष में रोज़ रोज़ हर बाल में छक्का मारेंगे तो हम भी क्या करे .
इस रचना ने अन्दर तक झकझोर दिया .. आपकी रचनाओ में आत्मा है
Sonal ji aur Sanjeev ji aapke protsaahan ke liye aapka aabhaari hun...
ek katu satya ko bakhubi bayan kiya hai........behad marmik.
वाह!!मज़ा आ गया....किस अंदाज़ से शब्दों को संवारा है आपने....आप विरह पर लिखते है....अच्छा लगा.....
Vandana ji aur Rajneesh ji bahut bahut shukriya...
Kya gazab rachna hai!Gar bura na mane to ek baat kahun? "saza" ke badle 'saja" kar den! Itni nayab rachna me ek bhee nuqs kyon ho?
Kshama ji bahut bahut shukriya....
कौन है श्रेष्ठ ब्लागरिन
पुरूषों की कैटेगिरी में श्रेष्ठ ब्लागर का चयन हो चुका है। हालांकि अनूप शुक्ला पैनल यह मानने को तैयार ही नहीं था कि उनका सुपड़ा साफ हो चुका है लेकिन फिर भी देशभर के ब्लागरों ने एकमत से जिसे श्रेष्ठ ब्लागर घोषित किया है वह है- समीरलाल समीर। चुनाव अधिकारी थे ज्ञानदत्त पांडे। श्री पांडे पर काफी गंभीर आरोप लगे फलस्वरूप वे समीरलाल समीर को प्रमाण पत्र दिए बगैर अज्ञातवाश में चले गए हैं। अब श्रेष्ठ ब्लागरिन का चुनाव होना है। आपको पांच विकल्प दिए जा रहे हैं। कृपया अपनी पसन्द के हिसाब से इनका चयन करें। महिला वोटरों को सबसे पहले वोट डालने का अवसर मिलेगा। पुरूष वोटर भी अपने कीमती मत का उपयोग कर सकेंगे.
1-फिरदौस
2- रचना
3 वंदना
4. संगीता पुरी
5.अल्पना वर्मा
6 शैल मंजूषा
उम्दा। आपकी रचना पढ़कर बहुत आश्वस्त हुआ। बिम्बों में कहूं, तो- जैसे गांव के हॉल्ट पर प्रतीक्षारत यात्रियों ने ईंजन की आहट सुन ली ...
shabdo me jo gussa hai.aur nukeeela vyang hai vo lajvab hai.
waah Ranjeet ji aapki tippani hi badi lajawab hai...
एक अच्छी रचना .....
कुछ पंक्तिया ..बेहद प्रभावशाली ... 'बेबफा की याद..........लूट ली थी'
मद्यपान के खिलाफ लिखी गई एक बहुत बहुत बेहतरीन कविता है ये दिलीप.. वाह..
ग़ज़ल
आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा ख़ुदा देगा ।
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा ।
ज़िन्दगी को क़रीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रूला देगा ।
हमसे पूछो दोस्त क्या सिला देगा
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा ।
इश्क़ का ज़हर पी लिया ‘फ़ाक़िर‘
अब मसीहा भी क्या दवा देगा ।
http://vedquran.blogspot.com/2010/05/hell-n-heaven-in-holy-scriptures.html
श्रेष्ठ रचना. देर से पढ़ी. लेकिन ताजगी बरकरार. कमाल की कलम है आपकी.
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