उस साड़ी का मुड़ा कोना देख, मेरी आंख में तिनके का जाना याद आता है,
वो आँचल भीगा पाकर , मुझे डांट कर उसका खुद ही रोना याद आता है,
आँखों में उसकी भी सूजन होती थी,जब मैं रातों को सो न पाता था,
कलाई पर जलने के निशान देखे है, जब मैं गरमा गरम पूडियां खाता था,
चमकती आँखें देखी हैं वो , जो परछाई हुआ करती थी मेरी जीत की,
जिसने गिरने न दिया मुझको कहीं, अब भी याद हैं पंक्तियाँ उस गीत की,
लगा देती दिल से फरियादों की झड़ी,जब मेरे माथे की शिकन देखती थी,
जिससे कुछ कहने की ज़रूरत ही न थी, वो सीधे मेरा मन देखती थी,
अब मैं नहीं हूँ, तो रातों को,घर के चूल्हे का मंजर सर्द होता है,
आंसू भी नहीं बहाती,कुछ कहती भी नहीं,पर जानता हूँ उसे दर्द होता है,
क्यूंकि उन्हें पोछने वाले हाथ तो, ठंडे हो तिरंगे में लिपटे हुए थे,
उसके जीवन भर के दिए आशीष, उन तीन रंगों में ही सिमटे हुए थे,
मैं दूर जब उससे बात करता था, तो दोनों बस मिलकर खूब हँसते थे,
पर जानता था उन बातों में उसकी,आँखों के कुछ मोती भी बसते थे,
उसे अब सास बहू की कहानियां नहीं जँचती,जिसे लेकर हम झगड़ते थे,
अब वो सब्जियां फल भी नहीं आते, जो पहले इतने आते थे की सड़ते थे,
वो अपनी पसंद का अब नहीं खाती,क्यूंकि उसने कभी वो खाया ही नहीं,
मैं सुबह शाम रात जो खाऊँगा, उसके सिवा उसने कुछ बनाया ही नहीं,
वो पहले मेरी खातिर कई व्रत रखती थी , अब मेरी याद में रोज़ रखती है,
वो अब भी रोज़ थाली सजाती है,और बाहर बैठ मेरा इंतजार करती है,
वो दरवाज़े जो मेरे आने से पहले ही, चहक कर खुल जाया करते थे,
अब कोई आ भी जाये, तो खोलती नहीं उन्हें, अकड़ कर बस बंद रहते हैं,
बचपन में बनायीं मेरी तसवीरें ,अब भी बहुत संभाल कर रखती है,
मेरी यादों की निशानियाँ सीने से चिपकाए,युहीं गुमसुम चलती रहती है,
दुनिया मुझे शहीद कहकर आगे बढ़ गयी,पर मैं तो उसका बेटा हूँ,
मुझको राख बना सब भूल गए,पर उसके दिल में मैं अब भी लेटा हूँ,
मैं अमर हुआ इस बात का गर्व तो है,पर दे उसको कुछ भी न सका,
मैं अपनी मिटटी के लिए मर तो गया,पर बस अपनी माँ के लिए जी न सका.....
वो आँचल भीगा पाकर , मुझे डांट कर उसका खुद ही रोना याद आता है,
आँखों में उसकी भी सूजन होती थी,जब मैं रातों को सो न पाता था,
कलाई पर जलने के निशान देखे है, जब मैं गरमा गरम पूडियां खाता था,
चमकती आँखें देखी हैं वो , जो परछाई हुआ करती थी मेरी जीत की,
जिसने गिरने न दिया मुझको कहीं, अब भी याद हैं पंक्तियाँ उस गीत की,
लगा देती दिल से फरियादों की झड़ी,जब मेरे माथे की शिकन देखती थी,
जिससे कुछ कहने की ज़रूरत ही न थी, वो सीधे मेरा मन देखती थी,
अब मैं नहीं हूँ, तो रातों को,घर के चूल्हे का मंजर सर्द होता है,
आंसू भी नहीं बहाती,कुछ कहती भी नहीं,पर जानता हूँ उसे दर्द होता है,
क्यूंकि उन्हें पोछने वाले हाथ तो, ठंडे हो तिरंगे में लिपटे हुए थे,
उसके जीवन भर के दिए आशीष, उन तीन रंगों में ही सिमटे हुए थे,
मैं दूर जब उससे बात करता था, तो दोनों बस मिलकर खूब हँसते थे,
पर जानता था उन बातों में उसकी,आँखों के कुछ मोती भी बसते थे,
उसे अब सास बहू की कहानियां नहीं जँचती,जिसे लेकर हम झगड़ते थे,
अब वो सब्जियां फल भी नहीं आते, जो पहले इतने आते थे की सड़ते थे,
वो अपनी पसंद का अब नहीं खाती,क्यूंकि उसने कभी वो खाया ही नहीं,
मैं सुबह शाम रात जो खाऊँगा, उसके सिवा उसने कुछ बनाया ही नहीं,
वो पहले मेरी खातिर कई व्रत रखती थी , अब मेरी याद में रोज़ रखती है,
वो अब भी रोज़ थाली सजाती है,और बाहर बैठ मेरा इंतजार करती है,
वो दरवाज़े जो मेरे आने से पहले ही, चहक कर खुल जाया करते थे,
अब कोई आ भी जाये, तो खोलती नहीं उन्हें, अकड़ कर बस बंद रहते हैं,
बचपन में बनायीं मेरी तसवीरें ,अब भी बहुत संभाल कर रखती है,
मेरी यादों की निशानियाँ सीने से चिपकाए,युहीं गुमसुम चलती रहती है,
दुनिया मुझे शहीद कहकर आगे बढ़ गयी,पर मैं तो उसका बेटा हूँ,
मुझको राख बना सब भूल गए,पर उसके दिल में मैं अब भी लेटा हूँ,
मैं अमर हुआ इस बात का गर्व तो है,पर दे उसको कुछ भी न सका,
मैं अपनी मिटटी के लिए मर तो गया,पर बस अपनी माँ के लिए जी न सका.....
37 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर भावनात्मक रचना है ... हमेशा की तरह आप एक बेहतरीन कविता प्रस्तुत किये हैं !
बेटा माँ के लिए हर दम जिया करता है ,
और ऐसे बेटे की मौत पर तो माँ को गर्व हुआ करता है ।
कोई याद रखे या भुला दे ,
बेटा तो माँ की सांसों मे बसा करता है ।
मर्मस्पर्शी और सम्वेदनशील रचना....
A beautiful heart touching poem. A nice presentation .
Asha
नि:शब्द हैं।
ek maa ki pida ka bhavpuran chitran...
अजब है .... कमाल है ... कुछ कहने की सूरत में नहीं हूँ !
dileep ji
har baar itni marmik rachna likhte hain ki aankhein bhar aati hain.............aur insaan kuch bhi kahne ki sthiti mein nahi rahta.
बहुत सुन्दर
bahut aacha hai......ek aur sujhao..english aur urdu, farshi sabdaon par thoda kam jor den.
bahut hi badhiya
waah archana ji lajawaab...maatr divas ki shubhkaamnayein...
bandhubar main to apka fan ho gya hun ,kya likhte ho yaar ,gurudev yahi sabd uchit rahega meri side se aapke liye ,kab se apne vichaaro ko kavitao main dhakel raho ho ,aapki soch ki dad deta hu
bindaas
यही कहानी हैं दोस्त, शहीद को देश कुछ पलो के लिए याद करता हैं पर माँ, बीवी ज़िन्दगी के हर पल, प्रति पल याद करती हैं!!! शहीद के उपकार का बदला देश कभी नहीं चुका सकता परन्तु शहीद के जाने के बाद उसके परिवार की आर्थिक सुरक्षा के बारे में सोचना बहुत ज़रूरी हैं!!! शहीद के परिवार को कभी भी किसी प्रकार की कमी नहीं होनी चाहिए!!!
आपकी कविता बहुत भावुक हैं, सच में आँखों के सामने चित्र उभर आये उस माँ के........देश पर मर मिटने वाले शहीद को जन्म देनी वाली माँ को मेरा शत शत नमन
sabhi mitron ko matr divas ki bahut bahut shubhkamnayein...
बहुत ...बढिया रचना .....अच्छा सृजन ....बस इसे पढ़कर यही कहूँगा ....दुनिया की हर माँ को मेरा शत-शत नमन ...!
भावविभोर कर देने वाली रचना है, बहुत सुन्दर! शुभकामना!
मा की ममता क्या होती है, अनुभव नही हमे इसका सर से माँ का आँचल जो बचपन से ही हो खिसका ………। शैशवा अवस्था से ही माता पिता दिवन्गत।
क्या कहूँ, बस आँखें नम हो गई आपकी कविता पढ़कर ।
कितने लोग सुन पाते हैं एक शहीद की इस वेदना को... दिल छू लेने वाला चित्रण...
वन्दे मातरम !!
जय हिंद....इन्हीं मां की कुर्बानी से हम जी रहे हैं..आजाद भारत में सांस लेते हैं..यही तो शहीद है.....जननी जन्म भूमि के लिए मरता है शहीद..पर ये एहसान फरामोश दुनिया उसकी मां का ख्याल नहीं रखती...शहीद की बीबी ले जाती है सब सुख कहीं कहीं..पर मां-बाप सिर्फ इंतजार करते हैं....आखिर उनका खोया सुख औऱ दर्द कोई नहीं आता समझने के लिए न सरकार न हम यानि समाज...
बेहतर कविता दिलिप...शानदार..जिसपर समाज शर्म कर सकें.
bahut rulate ho yaar
... मां ... मां ... मां !!!
हर माँ को मेरा शत-शत नमन ...!
मर्मस्पर्शी रचना..
बहुत सुंदर
मातृ दिवस के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और मेरी ओर से देश की सभी माताओं को सादर प्रणाम |
वाह ....दिलीप जी इक शहीद का तमाम दर्द पिरो दिया आपने ......माँ के लिए .....अद्भत ....बेमिशाल ......!!
आह ...सच्च कैसे जरती होगी वह माँ सीने में उठे अपने दर्द को ...जवान मौते भुलाये नहीं भूलती ....!!
kya baat hai!
bahut he badhiya
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!
आँखों के कोनो से श्रद्धांजलि छलक उठी.... पूरी कविता सजीव हो उठी.
दुनिया मुझे शहीद बनाकर आदे बड़ गयी पर मैं तो उसका छोटा बेटा हूं
दिल तड़प गया इसे पढ़कर
बहुत मर्मस्पर्शी रचना ....सुन्दर भावों से सजी खूबसूरत रचना लगी
बहुत ही मार्मिक ... संवेदनाओं का सैलाब लिए .... आँखें भर आईं कई जगह ....
शब्दों और भावों के सुन्दर मेल से ही रचना सजीव हो उठती है और मन में हलचल पैदा कर देती है.... मर्मस्पर्शी भावपूर्ण रचना.
aap ke ehsason aur shabdon ke intekhab ki daad deta hoon.. bahut khoob likha hai
ek maa ki pida ka bhavpuran chitran...
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