कृष्ण बिन जो लड़ सके, ऐसा कहाँ अब पार्थ होगा...
तीर अपनों पे ही छोड़े, उसका कोई स्वार्थ होगा...
फाँसियों पे जो चढ़ा, मरना उसे मंजूर होगा...
मर गया औरों की खातिर, हो न हो मजबूर होगा...
भूख की ये टोकरी, हम सिर पे बस, ढोते रहेंगे..
लाख कर लो कोशिशें, इंसान हैं, सोते रहेंगे....
जीत जिसने जग लिया था, वो कोई अवतार होगा...
सच की खातिर लुट गया जो, वो बहुत लाचार होगा...
अंग काटे, दूसरों हित, उसका ये व्यवहार होगा...
छोड़ दो हमको हमारे हाल पे, आभार होगा...
हम तो बस बेहाल हो, दुर्भाग्य को रोते रहेंगे....
लाख कर लो कोशिशें, इंसान हैं, सोते रहेंगे....
वक़्त इतना है नही, कि प्यार के दो बोल बोलें...
अजनबी चेहरों की खातिर, अपने दिल के द्वार खोलें...
मन हमारा, बस हमारी स्वार्थ की परतें ही खोले...
पुष्प जो मकरंद दे, हम तो उसी के साथ हो ले...
हम तो बस इंसानियत की लाश को ढोते रहेंगे...
लाख कर लो कोशिशें, इंसान हैं, सोते रहेंगे....
अब शिराओं मे हमारे, खून की बू भी नही है...
आत्मा भी, सैकड़ों परतों के अंदर खो चुकी है...
जो मिली न प्यार से, वो चीज़ हमने छीन ली है...
अपने हाथों ने ही अब, अपनों की साँसे लील ली हैं...
जाने कितने खो चुके, हम और भी खोते रहेंगे....
लाख कर लो कोशिशें, इंसान हैं, सोते रहेंगे....
23 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर रचना है ... जाने कितने खो चुके, हम और भी खोते रहेंगे ... वाह क्या बात है ...!
कितना ही लताड़ लो, दिलीप भाई, हम पढ़्कर वाह वाह करेंगे और फ़िर खायेंगे, पियेंगे और सो जायेंगे, सोते रहेंगे।
बहुत सुन्दर।
दर्द उभर कर आया है मगर इलाज कहीं नही है।
अच्छी लगी ये कविता ..... शुक्रिया.
fir ek achhi kavita ..par main bhi sone walo me se hi hoon
भूख की या टोकरी हम सर पे बस ढोते रहेंगे
लाख कर लो कोशिशें इंसान हैं सोते ही रहेंगे ......
.....बहुत गंभीर सार्थक सटीक चित्रण .....
आज की हालत को बखूबी चित्रण किया है आपने ...
सच में कब फिर से जागरण होगा..
मार्मिक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद,
aaj kal thoda busy hoon....aapki na jaane kitni rachnayein padhne se chook gaya....
bahut hi achhi rachna hai yeh aapki.....
padhkar hamesha ki tarah achha laga....
regards
http://i555.blogspot.com/
छंदबद्ध सुंदर रचना .....!!
आपके शब्दों में उत्तेजना होती है ....यही कवि की सार्थकता है .....!!
सच में सोता ही रहेगा...युगों से सोता जो आ रहा है।
सच कभी कभी मेरे दिल में आता है सड़क पर खड़े हो कर जोर से चिल्लाऊं .....जा.......गो.... सोने वालों
dileep ji itne bura haal bhi nahi hai.
aacchhi rachna jo uttejna bhar deti hai.
भाई दिलीप , मुझे आपकी उम्र पर शक हो रहा है | ये ख़याल और इतनी इवोल्व रचना किसी पच्चीस छब्बीस साला कि नहीं हो सकती | आपसे उम्र में बढ़ा हूँ इस लिये बुजुर्गाना दुआ कर रहा हूँ जीते रहिये और यूं ही अच्छा लिखते रहिये |
abhar sabhi ka meri lekhni ko apne protsahan ka rang dene ke liye...
वाह, क्या बात है ! अति सुन्दर!
देख लो भैया ..जागकर रात को दो बजे प्रतिक्रिया दे रहे हैं... बेहतरीन रचना... शुरू की पंक्तोयों ने दिनकर की रश्मिरथी याद दिला दी... अब चलूँ सोने..इजाज़त है?
bahut hi sarthak avam aaj ki sachchai ko charitarth karti aapki rachana. par iska nivaran kab aur kaise hoga,ye gambhir vishhhhaya hai.
aakhir insaan kab jagega.
poonam
jabardast wali baat hai ji....
kunwar ji,
आपकी हर अभिव्यक्ति वास्तव में दिल की कलम से ही लिखी होती है
सच में !!
bahut achhi kavita.vaah ,shanadar our damadaar kavita ke liye badhaai .
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा प्रस्तुती!
aap sabhi ka bahut bahut abhar...agar koi jaga ho to lekhni safal hui...
achhi rachna hai dost,..apr abhi jo rachna padhi hai usi ka khumar nahi utra hai ...
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