आज बहुत दिन बाद एक कहानी लिखी..धन्यवाद दूंगा दीपक 'मशाल' जी को, जिन्होंने प्रेरित किया...आपके लिए प्रस्तुत है एक लघुकथा...
दौड़ती भागती ज़िंदगी का कुछ पलों का ठहराव सा, ये लोकल ट्रेन का प्लॅटफॉर्म…यहाँ कदम रुकते हैं पर मन उसी रफ़्तार से चलता जाता है...कितना कुछ है यहाँ, किसी को किसी पे गुस्सा...घर के कुछ झगड़े... ऑफीस की माथापच्ची...खाली कंधों पे कितना बोझ है, आँखों के नीचे पड़े गड्ढों और माथे की शिकन से दिख जाता है...ऐसी ही एक मुर्दा भीड़ मे एक दिन मैं भी मुर्दा सा खड़ा...ऑफीस जाने की तैयारी मे था...चेहरे पे थोड़ी बहुत चमक इसलिए थी…क्यूंकी महीने का पहला हफ़्ता था, दिल ना सही बटुआ तो अमीर था...बटुआ खोलते ही एक मोटी हरी लकीर देखते ही बनती थी...उसी की चमक तो शायद मुँह पे हरियाली ला रही थी...वैसे मुँह पे हरियाली तो मुरझाए चेहरे दिखते नही पर जाने कैसे एक नन्ही मुरझाती कली पे नज़र पड़ी...बिखरे बाल बता रहे थे पानी से तो उनका रिश्ता बहुत पहले ही छूट गया होगा...तन पे फटे पुराने कुछ चीथड़े...शायद वो मैल की पर्त ही कुछ ठंड से बचाती होगी... उम्र तकरीबन 7 या 8 साल की होगी...पर मजबूरी तो समय से कुछ तेज़ ही चलती और बढ़ती है...अपने नन्हे हाथों से किसी का दामन पकड़ उसका मन खंगालने की कोशिश करती...आँखों मे पेट की भूख सजाए....कुछ पाने की चाहत मे चलती जा रही थी...ट्रेन आने मे अभी 15 मिनिट थे इसलिए चाय की चुस्कियों से अच्छा टाइमपास क्या होता, तो सामने ही एक टी स्टॉल पे पहुँच गया...ये बेंचने वालों की आँखों मे एक अजीब सा अपनापन होता है...बनावटी होता है या नहीं ये तो बता नही सकता...पर उनकी गर्मजोशी देख लगता है बस आपके लिए ही दुकान खोल के बैठा है...खैर चाय ली…एक दो घूँट ही मारे होंगे... कि वो नन्हा मन अपना ख़ालीपन समेटे मेरे सामने खड़ा था...महीने के शुरुआती दिन हो तो दिल थोड़ा दिलदार हो जाता है...ज़्यादातर तो अपने लिए ही...पर आज सोचा कुछ इसको भी दे ही दूं...बटुआ खंगाला...एक भी सिक्का नहीं...अरे होता है न...जेब मे हज़ारों पड़े हो, पर हम भिखारी और भगवान सिक्के से ही खुश करने की कोशिश करते हैं...खैर सिक्का नही मिला... हाँ शर्ट की जेब मे एक 10 रुपये का नोट पड़ा था...भीख मे 10 रुपये का नोट... कभी सुना है क्या...यही सोच उससे मुँह फेरने की नाकाम कोशिश की...पर जाने क्यूँ वो वहाँ से टस से मस न हुई...आख़िर इस डर से की कहीं मेरी पैंट छू के गंदी न कर दे...वो 10 का नोट निकाला और उसकी तरफ बढ़ा दिया...अब दिन भर खराब सा मन लिए घूमने से तो अच्छा था न की 10 रुपये चले जाए पर जान छूटे ...पर वहाँ तो स्थिति ही बदल गयी…10 का नोट देखते ही वो रोते रोते वहाँ से भाग गयी...10 का नोट हाथ मे ही रह गया, जाहिर सी बात है मुँह से एक ही बात निकली, ये भिखारी भी न...चाय वाला सब देख रहा था...अचानक बोला...साहब ना आपकी ग़लती है न उसकी...फिर उसने आगे बताया की पिछले महीने रात के वक़्त किसी ने 10 रुपये के बदले ही इसकी मासूमियत तार तार करने की कोशिश की थी...वो तो भला हो पोलीस का जो अपने स्वाभाव के विपरीत समय पर पहुँची और एक मासूम की मासूमियत को लुटने से बचा लिया...पर थे तो पोलीस वाले ही...पैसा लिया और उस अपराधी को भी छोड़ दिया...बस इसीलिए १० का नोट देखा तो वो रोकर भाग गयी...मैं स्तब्ध था…कहने के लिए कुछ ना बचा था...इस १० के नोट की कीमत उसके लिए मेरी समझ से भी कहीं ज़्यादा थी... जिस ओर वो भागी थी कुछ देर उस ओर देखा फिर खुद से एक अजीब सी बदबू आई...घिन सी हुई खुद से...अचानक ट्रेन की सीटी बजी...वो अपनी उसी रफ़्तार से चली आ रही थी...हाँ मेरी रफ़्तार ज़रूर कुछ कम हो गयी थी...खैर भीड़ का हिस्सा था तो उसी के साथ ट्रेन मे चढ़ गया...हाथ मे अब भी वो 10 का नोट था...उसे देखा तो आँखों के एक कोने से इंसानियत कुलबुला के टपक पड़ी...लेकिन उस नोट पे चिपका एक महापुरुष अभी भी हंस रहा था....
45 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब ,मार्मिक अभिव्यक्ति
dasha vyakt karti laghu katha. achha likhate he aap.
महापुरुष तो हँसते ही रहते हैं। सोचते होंगे किन किन के हाथों मे उनकी कैसी कदर है। भाई जी इस जगत मे किस कदर गदर है। अमीर, गरीब और मध्यम वर्गीय। रचना बहुत सुन्दर! आभार!
तो आप इस विधा में भी माहिर हो ... और क्या क्या आता है भाई आपको ... आपकी रचना पढकर स्तब्ध हो गया ... दिल को छुं लेने वाली कहानी है ...
सुन्दर लघुकथा
मशाल को गुरू बनाना होगा
Sonal ji, Amitabh ji, Indraneel ji, Suryakant ji, Verma ji bahut abhaar ...waise mimicry ka bhi shauk hai indraneel ji...ek movie bhi banayi college time me...naatak likhna unka nirdeshan karna aur abhinay ye bhi bahut pasand hai...
बहुत बढ़िया लघुकथा....ऐसी बातों पर मन संवेदनाओं से भर जाता है..
दिलीप /दीपक दोनो को बधाई !!!!!!!!!!! एक संवेदनशील लघुकथा के लिए....काश लोग इसे सिर्फ़ लघुकथा न समझें...
और एक बात ....क्या उस महपुरूष को पता होगा कि लोग उसे महापुरूष कहते हैं और उसे कहाँ-कहाँ चिपका कर हँसाया जा रहा है???...
sangeeta ji bahut dhanywaad, Suneel ji aaapka bhi aabhaar....Archana ji aapke maatritv ke liye aapko naman karta hun...
पहली बार आपने कहानी प्रस्तुतु की लेकिन ये कतई लगा नहीं , बहुत ही मार्मिक रचना लगी ।
दिलीप जी, इतनी मार्मिक कहानी...........मेरी आँखों से भी संवेदनाएं टपकने लगी हैं।
...बहुत खूब ... बहुत ऊर्जा है !!!
दिल को छुं लेने वाली कहानी है ...
शाबाश मेरे भाई .............बहुत खूब ...........क्या कहानी लिखी है !! तुम्हे सच में दिलो के तार को छेड़ना आता है !!
उम्दा मानवता आधारित रचना /
beautiful story
excellent narration
Bahut samvedansheel kathabaad me afsos to hota hi hai..
बहुत अच्छी लगी कहानी! कहानी का कंटेंट तो अच्छा है ही , आप कहानी लिखने की विधा में जबरदस्त हैं!
दिलीप जी
कहानी इतनी बेहतरीन है कि लगता ही नहीं आपकी पहली कहानी है ।
वाह मेरे दोस्त ...ब्लॉग में ये नयापन बहुत भाया....बहुत बढिया लिखा है ..मैं बहुत पहले से आपको ऐसा लिखने के लिए कहने वाला था ,,,पर खुद को कुछ छोटा समझ नहीं कह पाया ...चलो दीपक जी ने कहा उनका शुक्रिया ...आपकी नयी प्रतिभा सामने आई ...लघु कथा लिखना तो आसन है पर उसे एक सचित्र रूप देना उतना ही कठिन ...आपने ये काम बखूबी कर दिखाया...बहुत ही लाजवाब सृजनशक्ति के मालिक हो आप .....लघुकथा की शुरुआत अच्छे से की ....आँखों के सामने एक सजीव चित्र सजा दिया ....वहाँ का जीवंत चित्रण किया ...बीच-बीच में कुछ प्रेरणा दायक और व्यवहारिक बातें भी झट से कह दी ....एक साधारण सी कल्पना अथवा घटना को बहुत ही अच्छे ढंग से तराशा .....मेरी ज्यादा बक-बक का यही मतलब है की तुमने कविता लिखने में कमाल किया .....इस नए सृजन में भी नयी ऊँचाइयों को छुओगे ..ये मेरी दुआ नहीं ..वादा है .....{इस टिप्पणी में लिखी एक- एक बात दिल से और दिमाग से निकली है ....कहीं कोई तारीफ़ नहीं जो लगा वही कहा है ...}
हां एक बात और इसमे कहीं कोई अश्लीलता या फूहडपन नहीं है ...जो इसके स्तर को गिराए ...बहुत ही अच्छे स्तर की प्रस्तुति है ......
Rajendra ji ...aap chhote nahi hain aapke vichaar bahut achche aur oonche hain...baki mera protsahan karne ke liye bahut bahut dhanywaad...aage bhi kuch kahaniyan likhta rahunga...Suman ji, Pallavi ji, Kshama ji, Shivam ji, Sanjay ji, Mithilesh ji, Uday ji, Shikha ji...aapke protsahan bhari tippaniyon ke liye dhanywaad...
दिलीप भाई पहले तो देर से आने के लिए मुआफी चाहता हूँ उसके बाद ये कहना है कि इस वृत्तांत/लघुकथा ने हिला के रख दिया खास कर जब दस रुपये ना लेने का कारण पता चला..
कुछ और लिखने की स्थिति में नहीं हूँ बस यही कहूँगा कि तुम्हारी अपनी लेखनी में दम है भाई किसी के कहने ना कहने से थोड़े ना तुम अच्छा लिखोगे.. अच्छा लिखने की क्षमता है तुममे इसीलिए लिखोगे. वैसे आता मुझे भी कुछ नहीं लेकिन अगर अपनी गलतियों से जो सीखा है वो तुम्हें बता सका तो उतना जरूर करूंगा.. शुभकामनाएँ..
ओह! अति मार्मिक!! भीतर तक उतर गई...मन अशांत है!
Bahut bahut Dhanywaad Dipak ji aur Sameer ji....
मार्मिक!
बहुत प्रभावशाली ढंग लिखी गयी कहानी!
कुंवर जी,
इस लघु कथा को पढ़ आँखें भर आयीं.
कहानी बहुत ही अच्छी है। बस आंखो में आँसू आ गए, कहानी पढ़ते वक्त जीवंत लग रही थी।
बेहद मार्मिक चित्रण्……………कहानी कम हकीकत ज्यादा लग रही थी।
दिल को गहरे छूकर झकझोरती बहुत ही प्रभावशाली कथा....
आपकी लेखन प्रतिभा ने प्रभावित किया...लिखते रहें...बहुत आगे जायेंगे आप....शुभकामनाएं...
great story......very touchy .....
Kunwar ji Pratul ji, Dheeraj ji, Kunwar ji. Ranjana ji, Soni ji aap sabhi ka bahut bahut dhanywaad...
बहुत खूब....ऊपर से नीचे तक पढ़ते वक्त लग रहा था पता नहीं क्या है जो दिल को छू तो रहा है पर वहां अपनी छाप नहीं छोड़ पा रहा पर अंत की लाइन ने उसे पूरा कर दिया। बहुत अच्छा जोड़ा।
dilip ji.........choo gayi!
अभिव्यक्ति खूब मंजी हुई है ...आपकी लेखनी की ताकत इस लघु कथा में दिखाई देती है ...बधाई
आपने ओ हेनरी, सआदत हसन मंटो और मोपांसा की तरह जो पलटी खायी वो लाजवाब थी, दिलीप भाई!
lazawaab lazwaab lazwaab... kaleja dukhne laga kambakht kahani padh kar... aakhir me kamaal kar diya hai dost... kahaani jheeri se aati raushani ki tarah thi....jaise jaise aage badhi jehan par failti chali gayi...
एक मार्मिक लघु कथा दिलीप जी !
ye kahani aapne chori kee hai.
bahut pahle mai is laghu katha ko padh chuka hun.
behtar hoga ki aap is post ko hata len anytha wo laghu katha jisse aapne nakal maari hai pesh kar dee jaayegi.
aapne sirf shabd badle hain, kahani bilkul same hai.
aisa ho hi nahi sakta...maine kal hi ye kahani likhi hai...office me baithe baithe...aur haan maine ye kahani parson ek resturant me baithe baithe sochi...jab wahan ek table saaf karne wali ladki ko maine 10 ka note diya tha...
aur haan bilkul pesh kijiye mujhe khushi hi hogi ki koi mere jaisa pehle bhi soch chuka hai...
aur haan benaami bankar kyun aaye sarkaar..naam chaap hi dete...to bhi kuch galat nahi hota....khair mujhe jo kehna tha main keh chuka ...aur haan kahani likhna mere liye koi nayi baat nahi hai...mujhe kisi se kuch churaane ki zarurat nahi...vichaar kam nahi padte mere...
मार्मिक!
Dil ko chuu gai dost
अपने दोगले समाज की सच्ची कहानी अपने क्या खूब लिखी है
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