अभी हाल में तमिलनाडु में एक सड़क पर ये घटना हुई थी जिसने सारी मानवता को शर्मशार किया...ये कविता उसी से प्रेरित है...

Author: दिलीप /


मैं रोज़ हर किसी से कुचल दी जाने वाली सड़क हूँ,
पर उस दिन कुचली इंसानियत से हैरान अब तलक हूँ,
मेरी इसी गोद मे लेटा पड़ा था पुलिस का एक जवान,
खून से लथपथ जिस्म पर थे बस ज़ख़्म के निशान,

बस गँवा ही चुका था अपना एक पैर वो शायद,
पर मौत से था जीतने की करता रहा कवायद,
मेरी मजबूर परेशानी को तब थोड़ा चैन सा मिला,
जब बढ़ने लगा उसकी तरफ कुछ इंसानों का काफिला,

पर उनकी इंसानियत कुछ कदम चलकर ही खो गयी,
अगर उनमे अंतरात्मा थी तो वो भी कहीं सो गयी,
आँखें गड़ाई तो देखा वो आम आदमियों का रेला था,
समझ गयी उनके लिए तो ये बस तमाशा था, मेला था,

ये तो वो थे जिनके ज़िंदगी सुलग सिगरेट की तरह जाती है,
देखते ही देखते धुआँ उड़ जाता है राख रह जाती है,
इनकी नज़र कभी खुद के पेट से ही नही उठ पाती है,
ये मजबूर दुनिया को नही दुनिया इन्हे चलाती है,

पर इस बेचारे के मन मे कुछ उम्मीद जगी थी,
खून से सनी उंगलियाँ फिर मदद माँगने को उठी थी,
काश मैं उससे कह सकती ये उम्मीद बेमानी है,
उन्हे तेरी कुछ सुननी नही कुछ अपनी ही सुनानी है,

पर वो भी बहुत समझदार था जल्दी ही समझ गया,
फिर से गिरा और अपने उन्ही फटे चीथड़ो मे उलझ गया,
तभी मुझे कुछ गाड़ियों का इक काफिला आता दिखा,
उसकी भी रफ़्तार कम हुई वो भी वहाँ आकर रुका,

इस बार उम्मीद ने हम दोनो का दिल खिला दिया था,
लगा की भाग्य ने किसी देवदूत से ही मिला दिया था,
उस गाड़ी मे जनता के सेवक कोई मंत्री जी सवार थे,
उनकी झलक दिखी तो लगा वो कुछ करने को तैयार थे,

पर उनकी वो झलक भी सिर्फ़ उनकी कार की खिड़की से ही मिली,
फिर अचानक खिड़की बंद हुई और फिर दुबारा ना खुली,
वो इक बार फिर रेंगते रेंगते मदद को बिलखता रहा,
उस थोड़ी सी जुड़ी टाँग से ही धीरे धीरे घिसटता रहा,

आधे घंटे तक ये तमाशा मेरे सामने चलता रहा,
खून बहता रहा उसका पर वो मौत से जंग लड़ता रहा,
पर अचानक से उस बदली मे भी सूरज की किरण छाई,
शायद मंत्री जी को किसी ने अगले चुनाव की याद दिलाई,

उस जनता के सेवक ने आज ज़िंदगी मे पहला कमाल किया,
उसे काफिले की सबसे पिच्छली गाड़ी के पीछे डाल दिया,
किसी की हो ना हो मेरी आँखें तो खुशी से नम थी,
वो मतलबी इंसानियत भी उस ज़ख्म पे मरहम थी,

पर बाद मे पता चला कि बहुत देर हो चुकी थी,
उसके साथ उम्मीद भी दिल मे दुबक कर सो गयी थी,
इंसान ही आज इंसानियत को बेरहमी से मार गया,
वो जवान मौत से अपनी जंग राह मे ही हार गया,

काश मैं आँचल मे समेट सकती खून की वो धारा,
कह सकती समाज से उस मजबूर को तुमने है मारा,
पर क्या करूँ बस देख सकती हूँ,कुछ बोल नहीं सकती,
अपने ये दर्द से भरी दिल की पोटली कहीं खोल नही सकती,

अरे हाँ भूल गयी वहाँ किसी और की भी नज़रें थी,
शायद समाज की शतरंज की वो शातिर मोहरें थी,
वो समाज की अच्छाई का बुराई का ठेकेदार था,
वो कॅमरा लिए इक कलम पकड़े कोई पत्रकार था,

उसने भी वो सब देखा पर वो कर्म का पुजारी था,
वो तो इंसानियत का जुआ खेलने वाला बड़ा जुआरी था,
उसने बस खबर के लिए उसके मरने का इंतेज़ार किया,
बाद मे इंसान पे हैवान की जीत का समाचार दिया,

उड़ाता रहा वो खिल्ली उस समाज की जिसका वो भी हिस्सा था,
उसके लिए वो कामयाबी दिलाने वाला बस एक किस्सा था,
देखती हूँ मेरे गड्ढों से सबको होती परेशानी है,
पर ये घटना इंसानी दिल के गड्ढों की निशानी है,

मेरा क्या है मैं तो संवर जाऊंगी जब चुनाव आएगा,
पर इस बिखरते समाज की उम्र का कब वो पड़ाव आएगा,
जब कोई नफ़रत के खंजर से ज़ख़्मी यूँ नहीं पड़ा होगा,
पड़ा भी होगा तो उसके लिए सारा समाज खड़ा होगा...

20 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

संसार के एक और पहलु से आपने परि्चय करवाया।
दिलीप जी, आपका बहुत बहुत आभार

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सुन्दर दिलीप जी , मानवता को शर्मशार करने वाला वह बेर्शर्म एक तमिलनाडु का मंत्री था !

संजय भास्‍कर ने कहा…

... बेहद प्रभावशाली

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

रचना बेहद सुन्दर है ... और मार्मिक है ... और घटना किसीको भी शर्मशार करने वाला है ...

बेनामी ने कहा…

dil ko chhu lene waali rachna......

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
दिलीप ने कहा…

shukriya mitron....

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

बहुत ही सुन्दर! आपने जिन्दगी की धुरी, गाड़ी के पहियों के ही द्वारा कुचले जाने का जिक्र किया है। बहुत सुन्दर!

Pushpa Paliwal ने कहा…

bhaut hi khbusurat rachna lajawab bmisal

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
दीपक 'मशाल' ने कहा…

ye jisne tasveer nikali ye kaun tha Dileep, kya ye sirf photo nikaal ke chalta bana tha?

mukti ने कहा…

ये घटना लगभग एक महीने या उससे भी पहले की है... इसका पूरा कवरेज बड़े टी.वी. समाचार चैनलों पर दिखाया गया. किसी ने उस जवान की मदद नहीं की, जबकि वो अपनी ड्यूटी के दौरान कु्छ बदमाशों का पीछा करते हुये उनके द्वारा घायल किया गया था. इस खबर को देखने के बाद मैं लगभग एक हफ़्ते तक परेशान रही, उस दिन तो रो ही पड़ी थी. सच में इंसानियत भी कोई चीज़ होती है, उस दिन सभी भूल गये थे. और टी.वी. वाले उसकी कराह सुना रहे थे, जो कई दिनों तक सपने में मुझे परेशान करती रही.

दिलीप ने कहा…

Deepak ji sirf foto hi kya poora video bana tha..alag alag news channels pe dikhaya bhi gaya tha...wahan janta bhi thi patrkaar bhi..aur mantri ji to the hi...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

आपके लेखन में जो बेबाकपन है वो काबिले तारीफ है। ऐसे ही रोज न जाने कितनी जिंदगियाँ दम तोड़ देती हैं और हम बस देखते रहते हैं उनकी जीवन की लौ को बुझते हुए.............

Udan Tashtari ने कहा…

मार्मिक!!!

Yogesh Sharma ने कहा…

jhakjor diya dost..ab aur kuch nahin keh saktaa

nilesh mathur ने कहा…

मार्मिक और झकझोरने वाली रचना!

sm ने कहा…

nice but sad pic

दिलीप ने कहा…

Dhanyawad mitron par ham is ghatna ko har baar ki tarah bhool gaye....aam aadmi ki yaaddasht badi kamjor hoti hai...

आदेश कुमार पंकज ने कहा…

बहुत प्रभावशाली है |

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