कुछ बातें तो बस कहने सुनने मे अच्छी लगती हैं...

Author: दिलीप /

कैसी शय है यार मोहब्बत, बारिश सूखी लगती है...
धूप ज़रा ठंडी लगती है, सर्दी गर्मी लगती है...

कैसे कह दूं नाम तुम्हारा, और किसी से वाह सुनू...
कुछ ग़ज़लें तो बस सीने मे, उलझी अच्छी लगती हैं...
 
कहाँ मोहब्बत के जज़्बे को, इन आँखों से तोले हम...
कभी कभी सौ फूल नही, इक पत्ती अच्छी लगती है...

उनके लब की खामोशी का, दर्द कहाँ तक सह पाते...
हमें आज उनकी होठों से, गाली अच्छी लगती है...

बड़े करिश्मे हैं दुनिया मे, इससे बेहतर क्या होगा...
माँ के हाथों से रूखी, रोटी भी अच्छी लगती है...

तुम कहते हो हम सुनते हैं, 'अभीऔरहैजहाँ' 'सनम'...
कुछ बातें तो बस कहने सुनने मे अच्छी लगती हैं...

वो पहला ही महीना था...ये फिर पहला महीना है...

Author: दिलीप /

वो पहला ही महीना था, जो है गुज़रा बरस, उसका...
थे जब इक माह की खिटपिट ख़तम हो, हम मिले फिर से...
सजाए फिर से कुछ सपने, लगाए बाग फूलों के...
जो काँटे थे हमारे बीच उनको छांट आए थे...
हो शायद याद तुमको भी, मेरे हाथों पे तेरा सर...
सिमट कर सो रही थी तुम, मेरी बाहों के बिस्तर पर...
तुम्हारे गाल पर हल्का सा इक बोसा दिया मैने...
वो पूरी रात काटी थी, तुम्हीं को देखकर मैने...
मुझे लगता था ये रातें मिलाकर एक दिन मेरी..
ये सारी ज़िंदगी शायद मुकम्मल हो ही जाएगी...
मैं अब भी सोचता हूँ रात मे उठकर के ख्वाबों से...
तुम्हारे हाथ की अदरक की चाय, फिर से मांगू मैं...
तुम्हे फिर से कहूँ की भूख से बेचैन हूँ बच्चे...
वो तुम फिर दौड़ कर जल्दी से कुछ मेरे लिए लाओ...
तुम्हे फिर से कभी डांटू तुम्हारी ग़लतियों पर मैं...
के तुम फिर बात कोई डर के यूँ मुझसे छिपा जाओ...
कहीं जाने की खातिर ज़िद करो, मुझको मनाओ तुम...
मगर इस बार मेरे लब से कोई न नहीं निकले...
चलो जायें वही दोनो जहाँ अक्सर थे जाते हम...
ज़रा बैठे, मगर अब हाथ मे हो हाथ दोनो के...
निकल जाएँ यूँ रातों को, चलो नापें वही सड़कें...
के जिनपर साथ हम दोनो ने कितने ख्वाब बुन डाले...
चलो फिर से तुम्हे बाज़ार की रंगत दिखाऊँ मैं..
मैं जिनको हाँ कहूँ तुम फिर वही कपड़े ख़रीदो न...
न जाने ऐसे कितने ही अधूरे ख्वाब हैं मेरे..
किसे बोलूं ये सारे ख्वाहिशें तुम बिन अधूरी हैं...
मुझे कुछ भी न दो लेकिन मगर इक काम ये कर दो...
चली आओ न सब कुछ छोड़ कर,क्यूँ दूर हो मुझसे, ...
ये माना साल बदला है, मगर हसरत वही ही है....
के फिर से पास आ जाओ, ये फिर पहला महीना है...


चूल्हे मे उसके अंगारे देखे हैं...

Author: दिलीप /


हमने दिन के घुप अँधियारे देखे हैं...
बुझ बुझ कर मर जाते तारे देखे हैं...

शाम मे फैले लाल खून मे सने हुए से...
थके थके बेहोश नज़ारे देखे हैं...

बोझ तले वो दबे हुए छुप छुप हैं रोते...
हंसते लब हमने बेचारे देखे हैं...

दरिया के कोने मे प्यासे हैं मर जाते...
ऐसे भी किस्मत के मारे देखे हैं...

जाने कबसे करता था वो सीली बातें...
उसके अंदर बहते धारे देखे हैं...

जब भी हम गुज़रे हैं उनके गाँव से होकर...
पोखर हमने सारे खारे देखे हैं...

रात उसे लाला के घर जाते देखा, कल...
चूल्हे मे उसके अंगारे देखे हैं...

सजी हुई है महफ़िल' यादें नाच रही हैं सीने मे...

Author: दिलीप /

दरवाजे थोड़ा तो खोलो, दिल चौखट पर पड़ा वहाँ...
उसपर भी कहती हो मुझसे क्या मुश्किल है जीने मे...

बंद हुई खिड़की पर अब भी बारिश देती है दस्तक...
क्यूँ खोलूं बूँदों से उसकी, आग लगेगी सीने मे....

पीने को तब तक पीते हैं जब तक तुम जाओ...
नशे मे भी ना दिखो अगर, तो मज़ा कहाँ है पीने मे...

मेरी मुश्किल और मुफ़लिसी, क्या समझेंगे लोग यहाँ...
ख़ुदग़रजी की इस दुनिया मे, प्यार कहाँ है सीने मे...

अपनी यादों से कह दो, हो और मेहेरबाँ शेरों पर...
चुभते हैं पर अब भी थोड़ा, कम चुभते हैं सीने मे...

बाहर चाहे कितना ही तन्हा दिखता हूँ मैं तुमको...
सजी हुई है महफ़िल' यादें नाच रही हैं सीने मे

लो फिर से किसी नज़्म के आसार हो गये...

Author: दिलीप /

हम तो तुम्हारे इश्क़ मे आबाद हो गये....
दुनिया बता रही के हम बरबाद हो गये....

हालात भी अजीब हुए हैं तुम्हारे बाद...
हम क़ैद हुए और तुम आज़ाद हो गये...

मैं पास तुम्हारे, मगर हूँ दूर भी बहुत...
तुम फूल बने और, हम तो खाद हो गये...

कुत्ते जो इस गली मे, हिलाते थे दुम्म कभी...
कुर्सी पे चढ़ के, वो भी शहंशाह हो गये...

जो पल हमारे वास्ते, इक ज़िंदगी से थे...
उनके लिए कुछ दिन की मुलाकात हो गये...

धीरे से सरक के गिरे पलकों से मेरे गम...
काग़ज़ पे गिर के गम मेरे अशरार हो गये...

कुछ है जो हमे जोड़ता अब भी है, ये माना...
तुम कानपुर और हम इलाहाबाद हो गये...

जब मारना ही था तो फिर दोनो को मारते...
के आज बहुत संगदिल, सैय्याद हो गये....

इंसान दिखा तो खुदा ने जश्न मनाया...
इंसान भी तो ईद का हैं चाँद हो गये...

फिर याद के बादल, ज़रा आँखों पे छा गये...
लो फिर से किसी नज़्म के आसार हो गये