बहुत दिनों बाद आज फिर से आपके सामने आया हूँ... ज़िन्दगी जीना सीख रहा था...जब नहीं सीख पाया तो फिर से फक्कड़ी बन के जीने चला आया...उम्मीद है आपका प्यार ज़रूर मिलेगा....ग़ज़ल विधा में थोडा लिखने का प्रयास किया है....बताइयेगा कैसा लगा ये प्रयास....
तेरा गम जब भी चखता हूँ, कड़वा सा हो जाता हूँ....
धीरे से अम्मा कहता हूँ, मैं मीठा हो जाता हूँ...
अँधा एक पपीहा देखो, रोज़ तरसता सावन को...
न मर जायें वो उम्मीदें , रोज़ वहाँ रो आता हूँ...
ग़ज़ल बगल मे बाँध के अपने, तेरी राह गुज़रता हूँ...
जाता हूँ बाजार, बेचने, रोज़ वहीं खो आता हूँ...
वहाँ जहाँ पर एक भिखारी, मरा पड़ा था दो दिन से...
चिल्लर थोड़े फेंक के अपने, पाप ज़रा धो आता हूँ...
जब लगता है फसल तुम्हारी, यादों की हो गयी खराब...
दिल को आँखों से नम करके, बीज ज़रा बो आता हूँ...
एक कटोरी याद से तेरी, खाकर फिर दो ग़ज़ल 'करिश'...
और आँख का पानी पीकर, मैं भूखा सो जाता हूँ....
-दिलीप तिवारी 'करिश'
धीरे से अम्मा कहता हूँ, मैं मीठा हो जाता हूँ...
अँधा एक पपीहा देखो, रोज़ तरसता सावन को...
न मर जायें वो उम्मीदें , रोज़ वहाँ रो आता हूँ...
ग़ज़ल बगल मे बाँध के अपने, तेरी राह गुज़रता हूँ...
जाता हूँ बाजार, बेचने, रोज़ वहीं खो आता हूँ...
वहाँ जहाँ पर एक भिखारी, मरा पड़ा था दो दिन से...
चिल्लर थोड़े फेंक के अपने, पाप ज़रा धो आता हूँ...
जब लगता है फसल तुम्हारी, यादों की हो गयी खराब...
दिल को आँखों से नम करके, बीज ज़रा बो आता हूँ...
एक कटोरी याद से तेरी, खाकर फिर दो ग़ज़ल 'करिश'...
और आँख का पानी पीकर, मैं भूखा सो जाता हूँ....
-दिलीप तिवारी 'करिश'