हम तोहमतें भेजें भी तो, भेजें भला कैसे...
हम बेवफा को बेवफा, लिख दें भला कैसे...
माना कि मेरा यार, अदाकार बड़ा है...
झूठा है चश्मे-तर, मगर देखें भला कैसे...
जिसको नहीं मालूम था तौर-ए-वफ़ा कभी...
उसको ही बेवफा सनम, लिखें भला कैसे...
तवा-ए-हुस्न तो मिला, वो आग न मिली...
हम इश्क़ की ये रोटियाँ सेंकें भला कैसे...
जिन बुतो ने हमसे की हर वक़्त बेरूख़ी...
खुदा, कलम से उनको ही कह दें भला कैसे...
हमपे है ये इल्ज़ाम, जबां है ज़रा बुरी...
अब दायरे में बँध के भी, लिखें भला कैसे...
जिनकी किरायेदार बन है उम्र कट रही...
हम आशियाना ख्वाब का दे दे भला कैसे...
है एक नज़्म में ही खुदा, मय, सनम, नमी...
अब इसके सिवा ज़िंदगी लिखें भला कैसे...