बताओ न कि नये साल मे नया क्या है...
Author: दिलीप /ये इन झूठी बधाइयों का सिलसिला क्या है...
बताओ न कि नये साल मे नया क्या है...
कहाँ बदल रही तकदीर झोपड़ों की कभी...
माँ का दिल भूख की किल्कारियों से रोएगा...
कहीं महलों मे हो बेचैन रात जागेगी..
कहीं दिन भूख से फुटपाथ पर ही सोएगा...
फिर इन चेहरों की चमक का ये माजरा क्या है...
बताओ न कि नये साल मे नया क्या है...
समाज मे जो जी रहे यहाँ कीड़ों की तरह...
कहाँ उनको कोई सीने से जा लगाएगा...
झगड़ झगड़ के काँच से वो झुलस जाएँगे...
कोई नेता नया सा बल्ब दिखा जाएगा...
उनकी आँखों मे बस उम्मीद के सिवा क्या है...
बताओ न कि नये साल मे नया क्या है...
क्या कोई मुल्क किसी मुल्क को न जीतेगा...
क्या कोई बम किसी के लाल को न छीनेगा...
सुलग के राख हुई मजहबों के शोलो से...
किसी बस्ती में कटे जिस्म को न बीनेगा...
इन सबके सिवा नया सा वाक़या क्या है...
बताओ न कि नये साल मे नया क्या है...
रोशनी कौन अंधेरो से जीत जाएगी...
१२ महीनो की चाल कौन बदल जाएगी...
ये मेरा मुल्क है बरसों से क़ैद रातों का...
इसकी किस्मत की रात कौन सा ढल जाएगी...
कहाँ छिपा के हालात-ए-वादियाँ क्या है...
बताओ न कि नये साल मे नया क्या है...
चलो छोड़ूं मैं सारी बात अपनी बात करूँ...
मेरे लिए तो नया साल नया ही होगा...
मेरी रातों मे आसमान रहेगा खाली...
के मेरा चाँद कहीं और चमकता होगा...
मुझे मालूम है इस साल बदलना क्या है...
मुझे पता है नये साल मे नया क्या है...
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