ज़रा सी जिंदगी, जीने का बहाना निकले...
ये नया साल भी थोड़ा सा, पुराना निकले...
ज़रा सा प्यार वो करें, तो बहुत सा तडपे...
ये प्यार का ज़रा उल्टा सा, फसाना निकले....
सज़ा हो लब पे तुम्हारे, तुम्हारी चाह बिना..
कलम से कोई लाजवाब, तराना निकले...
कोई ग़रीब गर यूँही, पड़ा डब्बा खोले...
तो बम नही, वहाँ दो वक़्त का खाना निकले...
जिसे कुरेदते रहे तो लब से उफ़ ना कहें...
ये दिल का जख्म, अब ज़रा सा पुराना निकले...
मेरे बालों की सफेदी, ये उसे बोझ लगे...
मेरा सूरज कभी इतना न सयाना निकले...
सहेंगे कब तलक ही राज यहाँ, अंधों का...
इस खड़ी भीड़ से इस बार तो काना निकले...
अभी तो और तजुर्बा मुझे होना है बचा...
अबके दुश्मन मेरा सारा ही ज़माना निकले...
के तीन रंग मे लिपटी हुई हो लाश 'ऐ दिल'...
कभी यूँ धूम से अपना भी जनाज़ा निकले..
20 टिप्पणियाँ:
ek arse baad aapko padha. vahi rang-e-kalam vahi josh vahi sargoshi hai. sunder gazel.
achhi kavita....
ज़रा सा प्यार वो करें, तो बहुत सा तडपे...
ये प्यार का ज़रा उल्टा सा, फसाना निकले....
वाह …………बहुत खूबसूरत फ़साना है।
कोई ग़रीब गर यूँही, पड़ा डब्बा खोले...
तो बम नही, वहाँ दो वक़्त का खाना निकले...
जिसे कुरेदते रहे तो लब से उफ़ ना कहें...
ये दिल का जख्म, अब ज़रा सा पुराना निकले...
मेरे बालों की सफेदी, ये उसे बोझ लगे...
मेरा सूरज कभी इतना न सयाना निकले...
Lajawaab rachana hai!
बहुत खूबसूरत गज़ल ....
kafi antaraal ke baad aapki rachna padhne ko mili....bahut sundar sirji...
www.poeticprakash.com
कोई ग़रीब गर यूँही, पड़ा डब्बा खोले...
तो बम नही, वहाँ दो वक़्त का खाना निकले.
बहुत सुन्दर कामना! सर्वे भवंतु सुखिनः ...
वाह...वाह....वाह!!! क्या खूब कहा है दिलीप जी...!
कोई ग़रीब गर यूँ ही, पड़ा डब्बा खोले...
तो बम नही, वहाँ दो वक़्त का खाना निकले...
के तीन रंग मे लिपटी हुई हो लाश 'ऐ दिल'...
कभी यूँ धूम से अपना भी जनाज़ा निकले..
आगत विगत का फ़ेर छोडें
नव वर्ष का स्वागत कर लें
फिर पुराने ढर्रे पर ज़िन्दगी चल ले
चलो कुछ देर भरम मे जी लें
सबको कुछ दुआयें दे दें
सबकी कुछ दुआयें ले लें
2011 को विदाई दे दें
2012 का स्वागत कर लें
कुछ पल तो वर्तमान मे जी लें
कुछ रस्म अदायगी हम भी कर लें
एक शाम 2012 के नाम कर दें
आओ नववर्ष का स्वागत कर लें
बहुत खूब सर!
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
सादर
वही पहचाना सा परिदृश्य बना रहे।
बहुत खूबसूरत उम्दा गज़ल... सादर बधाई और
नूतन वर्ष की सादर शुभकामनाएं
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...
नववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
achhi gajal badhai ....nav varsh kii shubh kaamnaaye
"के तीन रंग मे लिपटी हुई हो लाश 'ऐ दिल'...
कभी यूँ धूम से अपना भी जनाज़ा निकले" काफ़ी दिनो के बाद मिले देखने को दिल से लिखे तराने यहाँ, हम तो चाहेंगे दोस्त साल 2012 में आम आवाम के लि्ये खुशियों का ख़ज़ाना निकले……हार्दिक नूतन वर्षाभिनंदन……।
नव-वर्ष 2012 की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
bahut bahut shukriya doston...
वाह वाह....
बहुत अच्छी गज़ल...एक एक शेर लाजवाब...
दाद कबूल कीजिये.
वाह जी वाह,बहुत सुंदर गजल,बेहतरीन शेर,क्या कहना दिलीप जी.
"काव्यान्जलि"-में स्वागत है,....
वो कहते हैं कि सूना घर है, इसको बेंच दो लेकिन...
किसी की याद के साए, अभी भी घर मे रहते हैं...
मैं कैसे काट दूं आँगन के इस बूढ़े से बरगद को...
अभी इसपर गिलहरी के कई बच्चे उछलते हैं....
धरातल पर लिखी गई गज़लें बहुत कम पढ़ने में आती हैं,बार-बार पढ़ने और गुनगुनाने को मजबूर करते अश'आर, दिलीप जी दिली दाद स्वीकार करें.
एक टिप्पणी भेजें