सब कुछ यहाँ बदलता है...

Author: दिलीप /

कैसे माँ मुझसे कह पाए, उसको बड़ी उदासी है... 
खून भरा उसकी आँखों मे, दिखती बहुत रुवान्सी है...
 सोच रही है कैसे उसके, बेटे निरे नपुंसक हैं... 
बिस्तर मे दुबके बैठे हैं, जलते मथुरा काशी हैं...
 
शायद हम अँग्रेज़ों की ही, करते अभी गुलामी है... 
उनका ही पहनावा है और बस उनकी ही बानी है... 
सदियों की पूंजी को हमने, सस्ते मे है बेच दिया... 
साल मे ऐसे दो ही दिन हैं, जब हम हिन्दुस्तानी हैं...
 
जिसको तब पावन कहते थे, अब बिकती वो खादी है... 
अपने हमको लूट रहे हैं, जाने क्या आज़ादी है... 
रीढ़ बिना हम जीव हैं सारे, रेंग रहे हैं यहाँ वहाँ... 
गूंगे बहरे हैं कहने को, सौ करोड़ आबादी है...
 
शेर कहीं मरते जो लड़कर, कीमत यहाँ लगाते हैं... 
उनकी कुर्बानी को अक्सर हम कर्तव्य बताते हैं... 
कहाँ समझते हैं हम बोलो, करुण रुदन उन हृदयों के... 
जिनके टुकड़े देश की खातिर, अपनी जान लुटाते हैं....
 
चूर नशे मे चिल्लाते हैं, कहाँ कभी कुछ बदला है... 
अपनी तो फ़ितरत है ऐसी, यहाँ सभी कुछ चलता है.... 
आज हमें विद्रोह की हल्की चिंगारी सुलगानी है... 
और दिखाना है सबको कि, सब कुछ यहाँ बदलता है...

श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...

Author: दिलीप /

क्यूँ आख़िर ये बदरा आकर, अन्सुवन की बौछार बढ़ाए...
अब कुछ ऐसा कर दो सारी, धरती ये बंजर रह जाए...
जान रही मैं धरती प्यासी, तडपेगी लेकिन ओ श्यामल,
रंग बादलों का भी देखो, मुझको तेरी याद दिलाए...

आग बड़ी ये सब आगों से, बोलो इसको कहाँ बुझाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...

बदरा जो बरसे निर्मोही, मोर यहाँ फिर नाच उठेगा...
उसके सतरंगी पंखों मे, मुझको मेरा श्याम दिखेगा...
विरह आग मे देखो कैसा, राख हो गया गोकुल तेरा...
अंबर की चिंगारी से फिर, इस मिट्टी से धुआँ उठेगा...

विटप वारि का मिलन सोच कर मन ही मन मैं तो मुरझाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...

बदरा देखो बरस गये तो, आग चौगुनी कर जाएँगे...
तेरे कुछ पदचिन्ह बचे हैं, वो पानी से धुल जाएँगे...
कानों मे अब तक कुछ यादें, गुनगुन करती जाती हैं पर......
हँसी उड़ा के गरजेन्गे वो, वंशी के स्वर खो जाएँगे...

इतना ही उपकार करो कि, यादों के संग संग मर जाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...

जाने क्यूँ चिंता करते हैं, बदरा कारे, कालींदी की...
यहाँ देख नैनों से मेरे, बहती रहती नित कालींदी...
जल की प्यास किसे है बदरा, तुमको क्या ये समझ ना आए...
यहाँ तड़पती सारी अँखियाँ, प्यासी हैं बस श्याम दरस की...

इंतज़ार की एक नदी है, और मैं उसमे बहती जाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...

हुंकार...

Author: दिलीप /

प्रतिकार का अधिकार ही हथियार है जन्तन्त्र का...
और मूक बधिरों को यहाँ बस शोभती परतंत्रता....
है स्फुटित होता नही हुंकार हाहाकार से...
है सीखनी अब अश्रुओं से आग जनने की कला....

है पर्वतों के सामने क्या धार सरिता का रुका...
क्या मूषकों के सामने है शीश सिंहों का झुका...
क्या भीरू वंशज हो गये हैं उस भरत सम्राट के...
था सीखता जो सिंह दाँतों से विहँस कर गिनतियाँ...

निस्तब्धता की ओट मे अब सूर्य भी छुपने लगा है...
चंद्र सब अपनी कलायें भूलकर घुटने लगा है...
रज्नियाँ देखो तिमिर की दासियाँ सी बन गयी हैं...
नील नभ लज्जा से देखो संकुचित होने लगा है...

अठखेलियों मे खो चुके यौवन ज़रा सा जाग जाओ...
हे सघन रक्तिम हृदय श्रावण ज़रा सा जाग जाओ...
कापुरुष जनने की भारत भूमि की आदत नही है...
क्रांति का विस्तार बन जीवन ज़रा सा जाग जाओ...

अब दिशाओं मे अनल से क्रांति का इक नाद भर दो...
मृत्यूशैय्या पर पड़े इस भीष्म मे नव्श्वास भर दो...
इन अभागी चीखती बलिवेदियों की माँग भर दो...
धमनियों मे राष्ट्र की नवरक्त का संचार भर दो...


अस्मिता का राष्ट्र की जो कर रहे व्यापार देखो...
धर्म भी कहता कि उनका मृत्यु ही उपहार देखो...
देशद्रोही शीश मुंडों से बने जयमाल नूतन...
भारती माँ का तभी समझो हुआ श्रृंगार देखो...

काम क्या है आँख से, बहते हुए उन आँसुओं का...

Author: दिलीप /

काम क्या है आँख से, बहते हुए उन आँसुओं का... 
सूख जायें जो टपककर, आग मे तब्दील हो...
 क्या है वो इंसान जिसकी, रूह खुद भटकी हुई हो...
 घर पड़ोसी का जले तो, दिल मे उसके पीर हो
 
है खड़ी नामर्द पीढ़ी, हाथ मे चूड़ी सजाए...
 डमरुओं की थाप पर कोई उन्हे जी भर नचाए...
 खून क्या, पानी भी शायद अब रगों से उड़ गया है...
 हिंद की माटी का मतलब, अब उन्हे कैसे बताए...
 
हिंद की फिर शान ही क्या, जब जवानी हो नशे मे... 
सिर झुकाए घूमती हो, हाथ मे शमशीर हो...

जाने कितने ही खुशी से, फाँसियों पर चढ़ गये थे... 
ऐश और आराम को जो, मार ठोकर बढ़ गये थे... 
एक सुनहरे ख्वाब की, तस्वीर वो दिल मे सजाए... 
वीरता की इक नयी, रोशन कहानी गढ़ गये थे...

उन शहीदों का बड़ा ही, क़र्ज़ है साँसों पे अपनी...
 उनके दिलकश ख्वाब की, टूटी हुई तस्वीर हो...
 
प्यार की असली इबारत, भूल कर हम जी रहे हैं...
 हम हवस मे घोलकर, अपनी जवानी पी रहे हैं...
 जाने कितने दुश्मनो ने घेर के रखा हुआ है...
 हम नशे मे मस्त होकर, खाते सोते जी रहे हैं...

हाथ मे तलवार, आँखों मे हो अंगारे हमारे...
 खींचता दुश्मन कोई, माँ भारती का चीर हो...

कब तलक पालोगे अपनी, आस्तीनों मे सपोले... 
कब तलक जलते रहेंगे, दिल मे यूँ नफ़रत के शोले...
 पीढ़िया पूछेंगी हमसे हिंद जब जलने लगा था...
 तुम तमाशे मे खड़े थे, तब भला तुम क्यूँ बोले...

खून से अब इन्क़लाबी, रंग भर दो आसमाँ मे...
 अब कभी बिगड़ी हुई, इस हिंद की तकदीर हो...

राह मे अमरत्व की इक दीप बनकर जल गये हो...

Author: दिलीप /


त्याग कर यौवन की सारी लालसायें तुम निराले...
राह मे अमरत्व की इक दीप बनकर जल गये हो...
थे किसी के चाँद तुम, सूरज किसी आँगन के थे तुम...
उज्ज्वली सी इक छटा बिखरा गये फिर ढल गये हो...

चौखटो पर नैन के कुछ दीप जलते हैं अभी भी...
थरथराते इक हृदय मे स्वप्न पलते हैं अभी भी...
चूम कर आँचल में जिसने था बचाया हर नज़र से...
प्रार्थना के स्वर, अधर से उनके झरते हैं अभी भी....

शीश रख दूं उन चरण में, फिर भी थोड़ा ही रहेगा...
जिनकी ममता की कृपा से तुम कथा मे ढल गये हो...
त्याग कर यौवन की सारी....

था घुमाया जिसने काँधे पर तुम्हे वो भी यहीं है...
झुक गये काँधे हैं लेकिन छातियाँ चौड़ी हुई हैं...
झाँक कर देखा है मैने अश्रु से भीगे नयन मे...
गर्व की ज्योति अमर अंदर नयी इक जल रही है...

है नमन शत शत विरह मे टूटते दशरथ को मेरे...
जिनके माथे पर कोई अभिराम चंदन मल गये हो...
त्याग कर यौवन की सारी ....

संगिनी अब भी निहारे घर की खाली कुर्सियों को...
नित ही पढ़ती है तुम्हारी प्रेम डूबी चिट्ठियों को...
डबडबाये नेत्र उसके रिक्त राहों मे बिछे हैं...
आज भी दौड़ी चली आती है सुनकर आहटो को...

प्राण भी अर्पित चरण धूलि पे मेरे उस सती की...
तुम अमर इन तारकों से माँग जिसकी भर गये हो....
त्याग कर यौवन की सारी ...

पूजता हूँ द्वार को जिससे कभी निकले थे राही...
पूजता उस देहरी को तुम जहाँ खेले कन्हाई...
पूजता हूँ नीम के उस वृक्ष को जिसने तुम्हारे...
बालपन के हर सलोने खेल की दी है गवाही...

और करता हूँ मैं पूजन उस धरा नीले गगन को...
जिसके कण कण मे सुगंधी तुम पवन से घुल गये हो...
त्याग कर यौवन की सारी...