त्याग कर यौवन की सारी लालसायें तुम निराले...
राह मे अमरत्व की इक दीप बनकर जल गये हो...
थे किसी के चाँद तुम, सूरज किसी आँगन के थे तुम...
उज्ज्वली सी इक छटा बिखरा गये फिर ढल गये हो...
चौखटो पर नैन के कुछ दीप जलते हैं अभी भी...
थरथराते इक हृदय मे स्वप्न पलते हैं अभी भी...
चूम कर आँचल में जिसने था बचाया हर नज़र से...
प्रार्थना के स्वर, अधर से उनके झरते हैं अभी भी....
शीश रख दूं उन चरण में, फिर भी थोड़ा ही रहेगा...
जिनकी ममता की कृपा से तुम कथा मे ढल गये हो...
त्याग कर यौवन की सारी....
था घुमाया जिसने काँधे पर तुम्हे वो भी यहीं है...
झुक गये काँधे हैं लेकिन छातियाँ चौड़ी हुई हैं...
झाँक कर देखा है मैने अश्रु से भीगे नयन मे...
गर्व की ज्योति अमर अंदर नयी इक जल रही है...
है नमन शत शत विरह मे टूटते दशरथ को मेरे...
जिनके माथे पर कोई अभिराम चंदन मल गये हो...
त्याग कर यौवन की सारी ....
संगिनी अब भी निहारे घर की खाली कुर्सियों को...
नित ही पढ़ती है तुम्हारी प्रेम डूबी चिट्ठियों को...
डबडबाये नेत्र उसके रिक्त राहों मे बिछे हैं...
आज भी दौड़ी चली आती है सुनकर आहटो को...
प्राण भी अर्पित चरण धूलि पे मेरे उस सती की...
तुम अमर इन तारकों से माँग जिसकी भर गये हो....
त्याग कर यौवन की सारी ...
पूजता हूँ द्वार को जिससे कभी निकले थे राही...
पूजता उस देहरी को तुम जहाँ खेले कन्हाई...
पूजता हूँ नीम के उस वृक्ष को जिसने तुम्हारे...
बालपन के हर सलोने खेल की दी है गवाही...
और करता हूँ मैं पूजन उस धरा नीले गगन को...
जिसके कण कण मे सुगंधी तुम पवन से घुल गये हो...
त्याग कर यौवन की सारी...
17 टिप्पणियाँ:
bahut khoob likha aapane
sundar ati sundar rachana
बहुत सुन्दर भाव ...बहुत दिनों बाद वापसी हुयी है ...
बहुत दिनों बाद इतनी सुन्दर कविता पढ़ी है।
चौखटो पर नैन के कुछ दीप जलते हैं अभी भी...
थरथराते इक हृदय मे स्वप्न पलते हैं अभी भी...
चूम कर आँचल में जिसने था बचाया हर नज़र से...
प्रार्थना के स्वर, अधर से उनके झरते हैं अभी भी....
Kya gazab lekhanee hai aapkee!
त्याग कर यौवन की सारी लालसाएं , जो निराले हुए हैं ...
उनकी चौखट श्रद्धा से सर नवाने के लिए ही है ...
ओजस्वी रचना !
बहुत सुन्दर भाव ...बहुत दिनों बाद वापसी हुयी है
बहुत दिनो बाद वापस आये है और अपने चिरपरिचित अन्दाज़ मे……॥…उन वीरों को शत शत नमन है ……बेहद भावभीनी रचना।
सूख चुकी आँखों में फिर से जल-संचार हुआ,
भावनाओं को ओढ़ जब शब्द इतराते है
तो इनमे दिलीप भाई छिप नहीं पाते है....
आपकी नयी रचना पढ़ बहुत अच्छा महसूस हुआ....
कुँवर जी,
दिलीप साहब बहुत दिनों के बाद एक सुन्दर कविता प्रस्तुत की है. धन्यवाद. इस और आना कम ही होता है अब आपका.
और = ओर
दिलीप जी ,
हृदय को छू गयी रचना... शब्दहीन हूँ..और आँखें नम..
शत शत नमन इस अमरत्व को..और इन अमर जवानों को ..
और आपकी कलम को ...
सशक्त रचना! बहुत दिनों बाद इस रस का स्वाद चखने को मिला...आभार.
deelip ji..bahut dino baad aapki kavita padhne ko mili ..bahut badhiya...
बहुत दिनो बाद वापस आये है ……बेहद भावभीनी रचना।
दिलीप जी ,
आदत.......मुस्कुराने पर
सच है क्या जिंदगी का किसी को पता नहीं.......संजय भास्कर
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
true tribute!
सभी अमर शहीदों को शत शत नमन !
जय हिंद !!
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