क्यूँ आख़िर ये बदरा आकर, अन्सुवन की बौछार बढ़ाए...
अब कुछ ऐसा कर दो सारी, धरती ये बंजर रह जाए...
जान रही मैं धरती प्यासी, तडपेगी लेकिन ओ श्यामल,
रंग बादलों का भी देखो, मुझको तेरी याद दिलाए...
आग बड़ी ये सब आगों से, बोलो इसको कहाँ बुझाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...
बदरा जो बरसे निर्मोही, मोर यहाँ फिर नाच उठेगा...
उसके सतरंगी पंखों मे, मुझको मेरा श्याम दिखेगा...
विरह आग मे देखो कैसा, राख हो गया गोकुल तेरा...
अंबर की चिंगारी से फिर, इस मिट्टी से धुआँ उठेगा...
विटप वारि का मिलन सोच कर मन ही मन मैं तो मुरझाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...
बदरा देखो बरस गये तो, आग चौगुनी कर जाएँगे...
तेरे कुछ पदचिन्ह बचे हैं, वो पानी से धुल जाएँगे...
कानों मे अब तक कुछ यादें, गुनगुन करती जाती हैं पर......
हँसी उड़ा के गरजेन्गे वो, वंशी के स्वर खो जाएँगे...
इतना ही उपकार करो कि, यादों के संग संग मर जाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...
जाने क्यूँ चिंता करते हैं, बदरा कारे, कालींदी की...
यहाँ देख नैनों से मेरे, बहती रहती नित कालींदी...
जल की प्यास किसे है बदरा, तुमको क्या ये समझ ना आए...
यहाँ तड़पती सारी अँखियाँ, प्यासी हैं बस श्याम दरस की...
इंतज़ार की एक नदी है, और मैं उसमे बहती जाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...
अब कुछ ऐसा कर दो सारी, धरती ये बंजर रह जाए...
जान रही मैं धरती प्यासी, तडपेगी लेकिन ओ श्यामल,
रंग बादलों का भी देखो, मुझको तेरी याद दिलाए...
आग बड़ी ये सब आगों से, बोलो इसको कहाँ बुझाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...
बदरा जो बरसे निर्मोही, मोर यहाँ फिर नाच उठेगा...
उसके सतरंगी पंखों मे, मुझको मेरा श्याम दिखेगा...
विरह आग मे देखो कैसा, राख हो गया गोकुल तेरा...
अंबर की चिंगारी से फिर, इस मिट्टी से धुआँ उठेगा...
विटप वारि का मिलन सोच कर मन ही मन मैं तो मुरझाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...
बदरा देखो बरस गये तो, आग चौगुनी कर जाएँगे...
तेरे कुछ पदचिन्ह बचे हैं, वो पानी से धुल जाएँगे...
कानों मे अब तक कुछ यादें, गुनगुन करती जाती हैं पर......
हँसी उड़ा के गरजेन्गे वो, वंशी के स्वर खो जाएँगे...
इतना ही उपकार करो कि, यादों के संग संग मर जाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...
जाने क्यूँ चिंता करते हैं, बदरा कारे, कालींदी की...
यहाँ देख नैनों से मेरे, बहती रहती नित कालींदी...
जल की प्यास किसे है बदरा, तुमको क्या ये समझ ना आए...
यहाँ तड़पती सारी अँखियाँ, प्यासी हैं बस श्याम दरस की...
इंतज़ार की एक नदी है, और मैं उसमे बहती जाऊं...
भीगे भीगे नैन लिए मैं श्याम श्याम गलियों मे गाऊँ...
8 टिप्पणियाँ:
बदरा देखो बरस गये तो, आग चौगुनी कर जाएँगे...
तेरे कुछ पदचिन्ह बचे हैं, वो पानी से धुल जाएँगे...
कानों मे अब तक कुछ यादें, गुनगुन करती जाती हैं पर......
हँसी उड़ा के गरजेन्गे वो, वंशी के स्वर खो जाएँगे...
Excellent!
shrangaar ras me doobi hui rochak kavita.bahut pasand aai.
बहुत उम्दा...
श्याम प्रेमरस मे भीगी अति उत्तम अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर रचना। सरस और गेय भी। आध्यात्मिक भाव से पूरित।
kuchh alag likha hai is baar ...sundar...
मीरा की हो, राधा की हो,
सबकी यही कहानी है।
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