काश तुम भी माँ से होते...( पिता को समर्पित.... )

Author: दिलीप /



काश कभी आते मुझे गोद मे ले के लोरी सुनाते...

फिर मुझे पुच्कारते, और फिर प्यार से सुलाते...

कभी मन मे छिपे प्यार की गुल्लक भी फोड़ते...

कुछ सपनों की सुनेहरी डोर, इन पलकों से जोड़ते...



कभी किसी शैतानी पे मुझसे यूँही रूठ भी जाते...

कुछ प्यार मे सने चावल अपने हान्थो से खिलाते...

कभी मैं धूल मे गिर रोता तो तुम भी रो पड़ते...

कभी मेरे सवालों के कुछ काँटे तुम्हे भी गडते...



कभी यूँही घर मे तुम्हे अपने पीछे दौड़ा थाकाता...

कभी तुम्हारे प्यार के साए मे थक के सो जाता...

कभी धूल से सना लौटने पर मुझे डाँट लगाते...

फिर अपने हान्थो से रगड़ रगड़ मुझे नहलाते...



पर तुम तो हमेशा बाहर से सख़्त ही बने रहे...

मैं जब भी गिरा मुझे थामा नही बस तने रहे...

फिर बेटे से दोस्त बना लिया जब कुछ बड़ा हुआ...

हमेशा लगा की प्यार तो रह गया बस छुपा हुआ...



अब जब दूर हूँ तो जब भी मेरा हाल पून्छ्ते हो...

तब समझ पाता हूँ मेरे लिए कितना सोचते हो...

मेरे सोते सोते मेरा जीवन था प्यार से भर दिया...

और जब जागा तो हमेशा माँ को आगे कर दिया...



ममता की अति मे तुम्हारा प्यार तो बस दबा रहा...

माँ की प्रेम गंगा मे तुम्हारा भी तो था जल बहा...

कभी कह देते कितना प्यार करते हो सामने होके...

अब सोचता हूँ बाबा कि, काश तुम भी माँ से होते...

13 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari ने कहा…

क्या सभी पिता ऐसे होते हैं...मुझे लगा जैसे आपने मेरी बात कही हो!!

सुन्दर अभिव्यक्ति!

संजय भास्‍कर ने कहा…

कभी मन मे छिपे प्यार की गुल्लक भी फोड़ते...

कुछ सपनों की सुनेहरी डोर, इन पलकों से जोड़ते...

.........बहुत खूब, लाजबाब !

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

pallavi trivedi ने कहा…

kya khoobsurati se pita ke ehsaason ko sameta hai....sabhi pita sachmuch ekdam aise hi hote hain! after reading this i m missing papa.

दिलीप ने कहा…

Sameer ji...pita ka ye ek aam roop hai....ab pita ji logon ko ek adarsh bhi to rakhna hota hai beton ke liye.....

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना
हमारे प्रोफ़ाईल से हमारी
स्थिति का भी पता लग गया होगा

दिलीप ने कहा…

SooryaKant ji bahut dukh hua ...aur aapki paragati dekhkar garv bhi hua....kitne log hote hai..saari suvidhayein sara pyar hone par bhi avnat hi reh jate hain...aapko mera salaam...

Yogesh Sharma ने कहा…

Dilip, apni ankahee baaton ko likhnaa aasaan hotaa hai par kisi aur ki ankahee baaton aur bhaavon ko samajhnaa aur likhna sabse mushkil...jo aapne itne pyare dhang se likh diya..bahut hee badia - Yogesh

दिलीप ने कहा…

Dhanyawad Yogesh ji...

Yogesh Sharma ने कहा…

Aapkee lekhnee main lucknow kaa zaaykaa hai. Main bhee lucknow ka hee hoon so nostalgic ho gaya hoon.

दिलीप ने कहा…

is baar lucknow gaya to dekha nazakat khatm ho rahi hai...hindi to waise bhi mit hi rahi hai...

दीपक 'मशाल' ने कहा…

shayad sabhi nahin to dunia ke adhikansh pita aise hi hote hain.. nariyal ki tarah

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