ये टपकी ओस की बूँदें, मेरी आँखों का पानी है...

Author: दिलीप /


ये टपकी ओस की बूँदें, मेरी आँखों का पानी है...
ये सीलापन हवाओं का, मेरे गम की निशानी है...
यहाँ जब पुष्प खिलते हैं, भ्रमर भी दूर रहते है...
अजब है बात पुष्पों का, बहुत नमकीन पानी है...

तेरे अधरों के मोती, मुझपे गिरते, क्या बदल जाता...
ये मेरे भाग्य का तारा, बिखरता ना, सम्हल जाता...
तू बस इक बार थामे हान्थ कहती, घुप अंधेरा है...
मैं खातिर जगमगाने राह तेरी , खुद ही जल जाता...

तेरा ही नाम अब तक, मेरे दिल की सिलवटों में है....
  तेरी ही याद के घावों की पीड़ा, करवटों में है...
मैं कैसे त्याग की भाषा, दहेकते मन को समझाऊं...
ये राधा सा खड़ा अब तक, वहीं यमुना तटों पे है...

मिटा सब ग्यान अब मेरा, मैं समझाऊं भला कैसे...
ये मन बच्चा मेरा, इसको, मैं बहलाऊं भला कैसे...
जो अब तक घूमता था बस, तेरे ही  दिल की गलियों मे...
उसे आँसू के सागर मे , मैं तैराऊ भला कैसे....

मैं इस दिल मे नही कोई नया, अब स्वप्न बुनता हूँ...
हमारे प्यार की बस, अधखिली कलियों को चुनता हूँ...
मैं बंधन तोड़ कर सारे,समाजों के, रिवाजों के....
मैं सुनता हूँ कभी अब तो, बस अपने दिल की सुनता हूँ.....

तुझे पाना नहीं, बस चाहने की चाह अब मुझको...
ये स्वप्नो मे अधूरा सा मिलन, स्वीकार अब मुझको...
चिता की मैं जलन सह लूँ, मगर ये सह ना पाऊँगा...
निशानी जग से मिट जाए, मैं आऊँ याद तब तुझको...

20 टिप्पणियाँ:

Tej ने कहा…

ek se badkar ek....mubarak

M VERMA ने कहा…

वाह ! बहुत सुन्दर लिख रहे हैं
बधाई

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

बहुत खूबसूरत जज़्बात हैं।
आभार

संजय भास्‍कर ने कहा…

हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

bahut sundar likhte hain aap..
shukriya..

Shikha Deepak ने कहा…

बहुत सुंदर........हर शब्द हर पंक्ति सुंदर........आपको पढना अच्छा लगा........आगे भी आते रहेंगे। बस आप यूँ ही लिखते रहें...शुभकामनाएं।

हेमन्त वशिष्ठ ने कहा…

मैं सुनता हूं कभी तो बस अपने दिल की सुनता हूं... बस इसी तरह से अपने दिल की सुनते रहो दिलीप ... औऱ लिखते रहो...

बेनामी ने कहा…

बहुत बढ़िया.
लाजवाब.

Archana Chaoji ने कहा…

मै आपकी हर कविता पढती हू .......बहुत अच्छा लिखते हैं आप ,हर कविता मे कोई सन्देश छुपा होता है ,कई बार मेरे पास शब्द नही होते इसलिए चुपचाप पढकर लौट जाती हूँ......एक बात और ----हान्थ को हाथ, तुम्हारी को तेरी, दहेकते मान को दहकते मन , "जगमगाने राह तेरी खातिर मै खुद ही ......" किया जा सकता है (अन्यथा न लें)

विजयप्रकाश ने कहा…

वाह...तुम्हें पाना नहीं बस चाहने की चाह अब मुझको...
बहुत बढ़िया लगी आपकी ये कविता.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है ... हर एक पंक्ति लाजवाब है ... आप इतने शब्द ... इतने भाव लेट कहाँ से हो ... मैं तो ताज्जुब हूँ की आप इतनी सुन्दर रचनाएँ कैसे लिख पाते हो ...

दिलीप ने कहा…

Archana ji bahut bahut dhanyawaad...aaj kal waqt bahut kam mil pata hai, jitna nikal pata hun...baaki blogs padhne me lagata hun....isliye thodi trutiyan ho jaati hai...par jab tak aap jaise pathak ho, galtiyan buri nahi lagti...shukriya...

दिलीप ने कहा…

baaki sabhi mitron khaskar Indranil ji ka bahut bahut dhanyawad....

Dimple Maheshwari ने कहा…

जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर...इंतजार ...बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..

praneykelekh ने कहा…

bhai ji gazab
likhte rahe aur hum bhi prena milte hai aapse

dipayan ने कहा…

बहुत सुन्दर तरीके से लिखी है आपने ये रचना । दिल को छू गई, यह विरह की वेदना ।

अति Random ने कहा…

tujhe pana nahi bas paane ki chaah mujhko
very nice

अति Random ने कहा…

and the photo is just amazing......kaha se mili

दिलीप ने कहा…

@himani ji...sabhi chitra google gi den hain ;)

nilesh mathur ने कहा…

वाह ! सुन्दर रचना!

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