मैं सत्य तुम्हे कहता हूँ माँ! तब याद तुम्हारी आती है...

Author: दिलीप /


जब भ्रमर पुष्परस पीता है. और सुमन मंद मुस्काता है,
काँटों से फट जाने पर भी जब कुसुम नही मुरझाता है,
जब तप्त धरा पर बूँद कहीं मेघों से आ गिर जाती है,
काली घनघोर घटाओं से जब सूर्य किरण तर जाती है,

जब स्वेद बिंदु को मलय पवन चुपके से छू के जाती है,
मैं सत्य तुम्हे कहता हूँ माँ! तब याद तुम्हारी आती है,

जब अश्रु नीर से सिंचे  हुए मुख पे हरियाली छा जाए,
जब अकस्मात् इस रात्रि भरे मन मे दीवाली आ जाए,
जब कष्ट भरे इस जीवन मे कुछ हर्ष कहीं से आता है,
जब स्वप्न सलोना हृदय उड़ा, बस दूर कहीं ले जाता है,

भटके से अंतर्मन को जब, इक राह नयी मिल जाती है,
मैं सत्य तुम्हे कहता हूँ माँ! तब याद तुम्हारी आती है,

जब बाल्यकाल की किलकारी स्वर्णित होती है कर्णो मे,
जब पुष्प कमल अर्पण होता है स्वतः प्रभु के चरणों मे,
जब भ्रमित युवा अंतर्मन को, इक लक्ष्य नया मिल जाता है,
जब विष से भरे हृदय मे भी, अमृत कोई घुल जाता है,

सब पाप कर्म बहते बहते, जब भगीरथी  धो जाती है,
मैं सत्य तुम्हे कहता हूँ माँ! तब याद तुम्हारी आती है,

जब शीत ल़हर  ठिठुराती हो और धूप कहीं से आ जाए,
जब स्वाती बूँद का जल आकर चातक की प्यास बुझा जाए,
जब रात्रि अमावस्या की हो, पर उज्ज्वल हो पथ तारों से,
हो मधुर स्वरों की लड़ी कोई गुंजित  सरिता के धारों से,

जब धेनु स्वयं की जिह्वा से अपनों के घाव मिटाती है,
मैं सत्य तुम्हे कहता हूँ माँ! तब याद तुम्हारी आती है,

मुझ प्यासे का तुम निर्झर हो,तुम घने नीम की छाँव हो माँ,
इस ममता से परिपूर्ण व्योम का तुम विस्तृत फैलाव हो माँ,
सब पाप हमारे धोने को धरती पे आई गंग हो तुम,
मेरे कष्टों मे घावों मे हर इक पल मेरे संग हो तुम,

जब बिना किसी भी कारण के ये अश्रु लड़ी बह जाती है,
मैं सत्य तुम्हे कहता हूँ माँ! तब याद तुम्हारी आती है,

15 टिप्पणियाँ:

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

दिलीप जी,
आपकी लेखनी से आपके उज्जवल भविष्य का अंदाजा लग रहा है।
टिप्पणी लिखने के लिये भी हमें तो बहुत सोचना पड़ता है।

शुभकामनायें।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

प्रिय दिलीप जी आप यायावरी पर आए,शुक्रिया। सच कहूं तो आपकी कविता अब वहां बरसूंगा बहुत प्रभावी है। मां के लिए आपके मन में जो भाव हैं,उनका आदर करते हुए कहना चाहता हूं कि आप इस बनावटी भाषा के फेर में न पड़ें तो बेहतर है। आपकी असली ताकत आपकी अनौपचारिक भाषा है। मेरे दो और ब्‍लाग भी हैं http://utsahi.blogspot.com यानी गुल्‍लक और http://gullakapni.blogspot.com गुलमोहर। कभी समय मिले तो उन पर भी आइए।

बेनामी ने कहा…

भावुक रचना माँ तो अपने आप में पूरा संसार समेटे होती है

Ra ने कहा…

bahut bhaavuk ..rachna .....sundar prastuti

nilesh mathur ने कहा…

सुन्दर रचना !

सख्त रास्तों में भी आसान सफ़र लगता है
ये मुझे माँ कि दुआओं का असर लगता है,

माँ पर तो जितना लिखा जाए कम है!

Unknown ने कहा…

Dilip ji ki jai ho,
damdar kavita ke liye badhayi

Udan Tashtari ने कहा…

भावुक कर दिया..माँ की याद तो हर हाल में आती है.

aarya ने कहा…

सादर वन्दे!
भाई जी सोचा की इस बहुत ही सुन्दर रचना के लिए कुछ लिखूं, लेकिन माँ की प्रशंसा लिखने के लिए मुझे उपयुक्त शब्द ही नहीं मिलता ये तो शब्दों से परे है, फिर भी आपके लिए ये लिख रहा हूँ..
ये हमारे लाख दुःख सहती है,
लेकिन फिर भी खुश रहती है.
और भले दुश्मन हो जाएँ,
माँ तो लेकिन माँ रहती है |
रत्नेश त्रिपाठी

अजित वडनेरकर ने कहा…

सुंदर...

Apanatva ने कहा…

ati sunder......

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 ने कहा…

दिलीप जी,ससक्त लेखन एवं गहन विचारों का संगम हैं आपकी रचनायें....साधूवाद...

vijay ने कहा…

touch my heart aaj meri ma ki barsi hai

दिलीप ने कहा…

Vijay ji lekhni safal hui...aapki is kabhi na bhar paane waali haani par bahut afsos hai....

mridula pradhan ने कहा…

gazab ki shakti hai aapki kalm men.aur kya boloon.

Unknown ने कहा…

aapki kavitayen padh karr bahut maja aata hai
kripya aap apni nayi nayi rachnayen hume bhejte rahiye

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