सूरज मेरे घर की ज़रा पुताई कर दो...

Author: दिलीप /


सूरज मेरे घर की ज़रा पुताई कर दो...
बदले में मुझसे मेरी नजमें ले लेना...
आगे वाले कमरे में सुबह की लाली...
पीछे थोड़ा शाम का सिंदूरीपन रख दो...
कोने वाले कमरे को यूँही रहने दो...
रात बुला कर मैं उससे ही रंगवा लूँगा....
उस कमरे में बैठ के ही नजमें लिखनी है...
वहाँ उजाला होगा तो लिखूंगा कैसे....
वैसे भी दिन रात वहाँ बारिश होती है...
उस बारिश में रंग कहाँ से टिक पाएँगे...

सूरज मेरे घर की ज़रा पुताई कर दो...


7 टिप्पणियाँ:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

आज की ब्लॉग बुलेटिन समाजवाद और कांग्रेस के बीच झूलता हमारा जनतंत्र... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

रश्मि शर्मा ने कहा…

Waaah....bahut khoob

Smart Indian ने कहा…

बहुत सुंदर!

वाणी गीत ने कहा…

सुबह की लाली , शाम का सिंदूरीपन ...
सूरज का आशीष मिल ही गया !
खूबसूरत अभिव्यक्ति !

poonam ने कहा…

क्या कहने

इमरान अंसारी ने कहा…

वाह निहायत खुबसूरत।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अहा, बहुत सुन्दर

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