यही है रंग तेरा, तो चलो ये रंग सही...

Author: दिलीप /


गम-ए-उल्फ़त का मुझे तुझसे कोई रंज़ नहीं...
मैं नज़्म-ए-ग़म से अभी तक हुआ हूँ तंग नहीं...

वो जिनकी एक एक बात लगी बेढंगी...
वो कह रहे थे हमें मौसिक़ी का ढंग नहीं...

तुझे आना ही है इक बार मे पूरी आजा...
ज़रा सा रोज़ यूँ मरना मुझे पसंद नहीं...

तू मेरी मौत है या बेवफा कहूँ तुझको...
तू है मेरी, है ये मालूम, मगर संग नहीं...

रुख़ की लाली में पढ़ रहा हूँ मैं शिकन तेरी....
यही है रंग तेरा, तो चलो ये रंग सही...

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें