एक नायाब ताजमहल बन गया था...

Author: दिलीप /


ईंट जोड़ के बने...
उस बेतरतीब चूल्हे के सामने...
आग जलाए बैठी थी...
वो साँवली...
झुलसन लिपट रही थी उससे...
पसीना टपक रहा था माथे से...
जैसे साँवले कमल पर ओस फिसल रही हो...
खसम ने जब देखा तो प्यार से बोला...
ताजमहल बनवा दूँ तेरी खातिर...
तिरछी आँख से देखा...
मुस्काई शरमाई फिर बोली...
ताजमहल का मुझे क्या करना...
बस अगली बार इतना राशन ले आना...
कि कुछ दिन आराम से..
भरपेट खाना बना सकें...
मैं उम्मीद से हूँ...
एक नायाब ताजमहल बन गया था...ख़सम ने ऊपर देखा...
मुस्कुराया और साँवली को...
गले लगा लिया...
पूनम की रात थी...
फटी छत से झाँक रही...
चाँद की रोशनी में...
एक नायाब ताजमहल बन गया था...

5 टिप्पणियाँ:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत उम्दा प्रस्तुति,आभार दिलीप जी ...
आप भी फालोवर बने,,,मुझे हार्दिक खुशी होगी,,,
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प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रेम भरा है, अपना मोहक ताजमहल है।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


सच तो है जहाँ प्रेम है वहीँ ताजमहल है ,आपभी अनुशरण करें ,ख़ुशी ही होगी

Yogesh Sharma ने कहा…

bahut sundar !!!

इमरान अंसारी ने कहा…

क्या बात है कितनी गहरी बात कही है आपने......ताजमहल संगमरमर कि नहीं प्यार कि अमर सौगात है .......हैट्स ऑफ इस सुन्दर पोस्ट के लिए ।

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