कल रात इक ग़ज़ल पी थी..

Author: दिलीप /


सभी दोस्तों व शुभचिंतकों का बहुत बहुत शुक्रिया...वक़्त नहीं मिल पाता आप सभी का आभार जताने का..इसलिए आपसे माफी भी माँग रहा हूँ और आपसे अनुनय भी कर रहा हूँ, कि अपना स्नेह यूँही बनाए रखिएगा...
आज की नज़्म...

कल रात इक ग़ज़ल पी थी...
चाँद निचोड़ा था पहले पेग मे...
ख्यालों के कई सर्द टुकड़े भी डाले...
गले से गुज़रा तो किक लगी थी...
अगला इक शॉट बनाया...
जिसमें गम की कुछ बूँदें डाली...
तारों को पीस कर ओस मे मिलाया...
हथेली पर रखा और चाट लिया...
फिर जाने कितने पेग लगाए जिसमे दुनिया की...
कुछ रस्म रिवाजें घोली थी...
कुछ दर्द पसीने के मिलाए...
दिल की कुछ कड़वाहट इसी बहाने...
ख़त्म हुई थी...
आख़िर मे नीट मारी...
तुम्हारे नाम की...
ज़्यादा हो गयी कल शायद...
अब तक हॅंगओवर में हूँ...
पर एक बात समझ गया मैं...
मुझे ग़ज़ल नहीं चढ़ती...
मुझे तो बस...
तुम्हारा नाम चढ़ता है...

8 टिप्पणियाँ:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

वही कहूँ .... रात भर ग़ज़लों की लडखडाहट चाँद को कुछ सुनाती रही , चाँद की चाँदनी ठिठकी रही

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

काश ये नाश कभी न उतरे....................

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

bas aap unke naam ka nasha hi chadhaiye kyon jab vo nasha itna bhar-pur hai ki bhulta hi nahi to dusara nasha karne ki mere khayaal se jaroorat bhi nahi-----;)
shubh-kamnao ke saath
poonam

vandana gupta ने कहा…

पर एक बात समझ गया मैं...
मुझे ग़ज़ल नहीं चढ़ती...
मुझे तो बस...
तुम्हारा नाम चढ़ता है...
अब इसके बाद तो कुछ कहने को बचा ही नही

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

किसी का नाम तो हर नशे से अधिक चढ़ने लगता है..

बेनामी ने कहा…

नशा ही नशा है.....बहुत खुबसूरत ।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

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बेहतरीन रचना


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नीलांश ने कहा…

bahut acchi rachna

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