ग़ज़ल कुछ बीमार थी..

Author: दिलीप /


इक ग़ज़ल कुछ बीमार थी...
मर्ज़ क्या था पता नहीं...
शेर दिन-बदिन कमजोर होते जा रहे थे...
तरन्नुम की जाने कितनी शीशियाँ ख़त्म हो गयी...
पर कोई फ़ायदा न हुआ...
एहसासों की टॅब्लेट्स, आँसुओं के कैप्सूल्स...
सब बेकार रहा...
उसकी आख़िरी ख्वाहिश थी...
तुम्हे देखने की...
क्या कहता उसे...
हाथों की खुरचनें रखता रहा उसके माथे पर...
कि शायद तुम्हारी छुवन...
किसी लकीर के खाने मे अभी बची हो...
आज फिर एक ग़ज़ल मर गयी...
अभी बस सीने मे दफ़ना के आया हूँ..

13 टिप्पणियाँ:

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ दिलीप जी, इस बीमार ग़ज़ल के हाल ने हिला कर रख दिया....

उपमेय और उपमाओं में निर्णय नहीं कर पा रहा हूँ कि कौन श्रेष्ठ हैं.... मुझे तो दोनों ही ने मुग्ध कर दिया.

मुझे यह विश्वास है कि यह आपकी कालजयी रचना सिद्ध होगी!

बेनामी ने कहा…

behatrin aur lajawab....is gazal ke liye daad kabool karen

vandana gupta ने कहा…

अब इसके बाद कहने को क्या बचा सिवाय महसूसने के

ZEAL ने कहा…

जिसे सीने में जगह मिल गयी, वो ग़ज़ल तो अमर हो गयी।

Anupama Tripathi ने कहा…

ग़ज़ल जो हो गयी सीने में कैद ....
सुन्दर भाव ...!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गहरी अभिव्यक्ति, मन में उतरती हुयी।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

उस गज़ल को ज़रूरत थी ह्रदय प्रत्यारोपण की......
कोई नया दिल ला देते
:-)

मजाक नहीं...सच्ची बहुत सुंदर, दिल को छूते जज़्बात

अनु

udaya veer singh ने कहा…

शहर-ए-खमोशा के इंतजामात रुखसती देंगे ,
इल्मदां है , गजल को रूह दे दे

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत मार्मिक ...लाजबाब लिखा

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

मार्मिक प्रस्तुति...
कोमल भाव से लिखी बेहतरीन रचना...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

आपकी रचनाएँ आवाक कर देती हैं....
सादर बधाई।

Anamikaghatak ने कहा…

bhawpoorna wa marmik kawita....sahaj shabdo ke sath

Kailash Sharma ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति...

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