जिसे हो खून कहते, हम उसे पानी बताते हैं...

Author: दिलीप /

हमें जीने मे क्यूँ होती है आसानी, बताते हैं...
हम अपने घर मे, अब कुछ और, वीरानी सजाते हैं...

खुदा, जिस दिन से तेरे नाम पर, जलते शहर देखे...
जलाते अब नही बाती, तुम्हे पानी चढ़ाते हैं...

हमें डर है की वो मिट्टी, हमें नापाक कर देगी...
तवायफ़ को तेरी बस्ती मे सब, रानी बताते हैं...

बतायें क्या, कभी उस मुल्क की बिगड़ी हुई हालत...
लुटेरे ही जहाँ पर आज, निगरानी बिठाते हैं...

लुटी थी कल कोई इज़्ज़त, तमाशे मे खड़े थे हम...
बड़े बेशर्म हैं, कि जात, मर्दानी बताते हैं...

छिपे हैं आस्तीनों मे ही कितने साँप ज़हरीले...
पकड़ पाते नही, तो पाक- इस्तानी बताते हैं....

हमारी माँ की इज़्ज़त को जो वहशी लूट जाते हैं...
उन्हे मेहमां बनाकर, उनकी नादानी बताते हैं...

जहाँ खेतों को अब पानी नही, बस खून मिलता है...
ये अफ़सर काग़ज़ों पर, खेत वो धानी दिखाते हैं...

बुरा लगता हो गर, झूठा, मुझे साबित करो यारों...
जिसे हो खून कहते, हम उसे पानी बताते हैं...

27 टिप्पणियाँ:

nilesh mathur ने कहा…

कमाल की रचना है, बेहतरीन!

sonal ने कहा…

बहुत बेहतरीन

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब,ऐसे ही हीरे बरसाइये।

Anupama Tripathi ने कहा…

लुटी थी कल कोई इज़्ज़त, तमाशे मे खड़े थे हम...
बड़े बेशर्म हैं, कि जात, मर्दानी बताते हैं...

बहुत अच्छा लिखा है -
काबिले तारीफ़ .

PAWAN VIJAY ने कहा…

superb
wakai khoon paanee ho gaya hai
ek ek lafz par kurbaan

संजय भास्‍कर ने कहा…

ला-जवाब" जबर्दस्त!!
...........काबिले तारीफ़

शारदा अरोरा ने कहा…

achchhee lagi rachna ...

Deepak Saini ने कहा…

बहुत शानदार रचना

Rajeev Bharol ने कहा…

वाह. बहुत ज़ोरदार गज़ल. सभी शेर बहुत अच्छे हैं. मतला और पहला शेर तो लाजवाब हैं.

रमेश शर्मा ने कहा…

लुटेरे ही जहाँ पर आज, निगरानी बिठाते हैं.

बहुत खूब.....

Piyush jangid ने कहा…

"छिपे हैं आस्तीनों मे ही कितने साँप ज़हरीले...
पकड़ पाते नही, तो पाक- इस्तानी बताते हैं...."

ekdum umda rachna Dileep ji...Kaafi dino baad aapka blog padhke sach me kuch achcha sa mahsoos hua...:)

Neha ने कहा…

छिपे हैं आस्तीनों मे ही कितने साँप ज़हरीले...
पकड़ पाते नही, तो पाक- इस्तानी बताते हैं....


baat bilkul sahi hai....

निर्झर'नीर ने कहा…

जहाँ खेतों को अब पानी नही, बस खून मिलता है...
ये अफ़सर काग़ज़ों पर, खेत वो धानी दिखाते हैं...

wah kya baat kahi hai ..talkh haqiqat ko kya adaygii di hai aapne

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

bahut sundar hamesha ki tarah....

Patali-The-Village ने कहा…

कमाल की रचना है, बेहतरीन!

अजित त्रिपाठी ने कहा…

बेहद खूबसूरत रचना...बधाइयां....

Basant Kr Verma ने कहा…

awesome sir ji...
mene aaj pahali baar aapki kavita padhi aur kaafi saari padhi ahi...
har ek me kuch alag kuch naya aur har ek lajawab hai.....

बेनामी ने कहा…

hiii nice post
thanks for following my poem blog that is http://seemywords-chirag.blogspot.com/

but now iam deleting this blog and will write this poems and new poems and stories on anotehr blog
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hope you will follow this blog now
thanks

Shekhar Suman ने कहा…

अरे वाह..आप कब आये आगमन की सूचना भी नहीं मिली...मैंने तो सोचा ब्लॉग से नाता टूट गया आपका...
मैंने नया ब्लॉग बनाया है, हालाँकि अभी लिखना कम कर दिया है..लेकिन पढना अनवरत जारी है..
आता रहूँगा.....

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह ने कहा…

dileep bhai,bahut maji kalam hai aap ki,umda ghazal ke liye hardik mangal kamnaye,badhai.
sasneh
dr.bhoopendra

प्रदीप कांत ने कहा…

हमें डर है की वो मिट्टी, हमें नापाक कर देगी...
तवायफ़ को तेरी बस्ती मे सब, रानी बताते हैं...

Shekhar Kumawat ने कहा…

bahut khub

निर्झर'नीर ने कहा…

खुदा, जिस दिन से तेरे नाम पर, जलते शहर देखे...
जलाते अब नही बाती, तुम्हे पानी चढ़ाते हैं...

दिल की कलम को यूँ खामोश ना रखो जनाब कुछ तो आने दो बहुत दिन हो गए

Unknown ने कहा…

होली रंगों के इस त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाये।


jai baba banaras..............

hamarivani ने कहा…

nice

VIVEK VK JAIN ने कहा…

हमारी माँ की इज़्ज़त को जो वहशी लूट जाते हैं...
उन्हे मेहमां बनाकर, उनकी नादानी बताते हैं...
..........ye lines samajh na aai....baki sab sundar h.

Smart Indian ने कहा…

छिपे हैं आस्तीनों मे ही कितने साँप ज़हरीले...
पकड़ पाते नही, तो पाक- इस्तानी बताते हैं...


एक शेर ही काफी है, कलई खोलने के लिये!
लाजवाब!

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