धुआँ उठता है थोड़ी दूर पर, क्या जला होगा...

Author: दिलीप /


धुआँ उठता है थोड़ी दूर पर, क्या जला होगा...
कोई इंसान, कोई घर या फिर बचपन जला होगा...

फटे आँचल को ठंडी राख का तोहफा मिला है आज...
ज़मीं को गोद में इंसान रखना अब ख़ला होगा...

अंधेरा आज फिर बुझते हुए चाँदों से रोशन है...
कहीं दिन जल गया होगा, कोई सूरज ढला होगा...

मुझे डस कर कहीं पर छिप गया है आज फिर इक दिन...
कहाँ मुझको खबर थी, आस्तीनों में पला होगा...

ये सूखा एक मौसम फिर छलेगा कुछ उमीदों को...
किसी रस्सी के फंदे में फँसा कोई गला होगा...

कहीं पर भूख ने दम तोड़ कर शायद खुशी दी है...
कहीं पर अब्र पत्थर का कोई शायद गला होगा...

कलम ने बोझ से थककर अभी इक नज़्म फेंकी है...
किसी इक शाख पर यादों की इक आँसू फला होगा...

10 टिप्पणियाँ:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह दिलीप जी वाह...........

हर शेर लाजवाब........
मुझे यकीन है आप मशहूर ज़रूर होंगे...

अनु

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा।

बेनामी ने कहा…

हर शेर मुकम्मल....दाद कबूल करें।

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' ने कहा…

:)

सदा ने कहा…

कलम ने बोझ से थककर अभी इक नज़्म फेंकी है...
किसी इक शाख पर यादों की इक आँसू फला होगा...
लाजवाब करती प्रस्‍तुति ... आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कुछ तो हुआ है, मन धड़का है..

वाणी गीत ने कहा…

उदासी , अनमनापन ,धुंआ , शोरगुल कहीं कुछ तो हुआ होगा!
बेहतरीन !

दिलीप ने कहा…

bahut bahut shukriya doston...

शारदा अरोरा ने कहा…

nihayat hi khoobsoorat gazal...

Pallavi saxena ने कहा…

हर शेर मुकम्मल....दाद कबूल करें।

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