कल कुछ लोग कह रहे थे..
कि अब तुम मेरी नहीं हो...
क्यूँ..कुछ बदल गया है क्या...
ज़ुल्फो की उस छाँव के कुछ तिनके ही तो टूटे होंगे...
कुछ बारिश की बूँदों से ऊपर ऊपर गीले ही तो हुए होंगे...
वक़्त की धूप ने उन्हे कुछ कड़ा ही तो कर दिया होगा...
पर चाँद देखने को, वो बादल हथेलियों से हटाने का
एहसास...
लट भूल गयी होगी क्या...
चेहरे पर कुछ झुर्रियाँ हो शायद अब...
शायद थोड़ी शिकन किसी ने खींच दी हो माथे पर...
आँखों के नीचे कुछ अंधियारा भी हो सकता है...
पर उन निगाहों के दिए मे जलता मेरा नाम...
मिटा तो नहीं होगा...
थोड़ा और भर गया हो शायद बदन तुम्हारा...
शायद अब दुपट्टे की जगह साड़ी का पल्लू होता हो...
शायद कुछ रंग बिरगी चूड़ियों ने बाँध लिया हो तुमको...
पर वो तुम्हारा काँधे का तिल, अब भी काँधे पर ही
होगा न...
कुछ तो कहता ही होगा...
चादर पर सिलवट हो चाहे, रात हो ज़रा शरमाई सी...
पर तकिये पर अब भी शायद...
कभी कभी इक बूँद गिरा करती होगी...
यादें भले छिपा दी हों, पर ज़िंदा होंगी...
नहीं लकीरों मे तो क्या, किसी पुराने छल्ले में..
लटका के रखा होगा मुझको...
बड़े नादान हैं वो जो कहते हैं...
कि अब तुम मेरी नहीं हो...
10 टिप्पणियाँ:
सशक्त अभिव्यक्ति ....!!
शुभकामनायें.
नहीं लकीरों मे तो क्या, किसी पुराने छल्ले में..
लटका के रखा होगा मुझको...
बड़े नादान हैं वो जो कहते हैं...
कि अब तुम मेरी नहीं हो... दिल को छूती, कोमल भावों को सहेजे रचना
bahut hi sunder
पुराने छल्ले में नहीं.....रगों में दौड़ती है याद...लहू बन कर...
प्यार यूँ मरा करता है क्या कभी???
अनु
बहुत खूब दिलीप ... जय हो !
आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
bahut khub dilip ji aaj to dil loot liya aapki is kavita ne....jitni tarif ki jaaye kam hai :)best wishes...keep writing.
बहुत सुन्दर
गहरे भाव लिए अभिव्यक्ति....
:-)
क्या बात कह दी.....बहुत गहरी....यही तो प्यार है...
shukriya doston.aap sabhi ka sneh aur asshish yunhi bana rahe bas yahi kaamna hai
बहुत ही खुबसूरत और प्यारी सी नज़्म।
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