आसमान ने नये पर्दे खरीद लिए हैं...

Author: दिलीप /


आसमान ने नये पर्दे खरीद लिए हैं...
ग्रे शेड के...
कोने मे हल्के काले से दिखते हैं तो...
लगता है कि ज़ुल्फ तुम्हारी...
जो कल तकिये से अनबन मे टूट गयी थी...
उससे तकिये ने तुरपाई कर दी है...
आसमान के उस पर्दे की...
गर्मी ने जो बूँदें तुम्हारी माथे पर रख छोड़ी थी...
मोती बन गयी सारी...
तुम जागती उससे पहले ही...
बेंच दिए गर्मी ने मोती आसमान को...
देखो न कैसी झालर सी लटका दी है पर्दे से...
सुना है कल रात तुम्हारा बहा था काजल...
इसीलिए ये पर्दे भी अब तक गीले हैं...
देखो न तुम रोती हो जब याद मे मेरी...
सारी दुनिया भीगी भीगी सी लगती है...
एक मैं रोता हूँ...
तो बस कुछ काग़ज़ गीले होते हैं...
कुछ लफ्ज़ उसी मे घुल जाते हैं...
बारिश न हो पर...
यहाँ भी कुछ बरसता ज़रूर है...

8 टिप्पणियाँ:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिये हैं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भाव भीनी रचना

Anupama Tripathi ने कहा…

प्रबल भाव ...
सुंदर रचना ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ी ही रोचक...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बारिश न हो पर...
यहाँ भी कुछ बरसता ज़रूर है...
वाह...बेजोड़...अन्दर तक असर कर गयी आपकी रचना...

नीरज

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

तुम रोती हो तो बादलों से टपका पानी भी खारा होता है....

सदा ने कहा…

भावमय करते शब्‍दों का संगम

बेनामी ने कहा…

subhanallah.....bahut khubsurat nazm

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