सूरज का हलवा, त्रिवेणी, तुम्हारी याद...

Author: दिलीप /



रात को सस्ते मे मिल गया शायद...
कुछ सुर्ख, कुछ काले कद्दूकस से...
उस एक पाव सूरज को घिसे जा रही है...
तारे भूखे हैं बहुत आज...
अमावस है न...
चाँद की बोरी कल चुक गयी थी...
पर लगता है...
आज रसोई महकेगी...
आज सूरज का हलवा बनेगा...
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कल रात मैं दिल के..
प्रयाग मे था, संगम पर खड़ा...
देख रहा था त्रिवेणी को...
उजली सी ग़ज़ल, स्याह सी मय...
तुम दिखी तो नहीं, पर जानता हूँ...
उन दोनो के नीचे तुम...
धीरे से बह रही थी...
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याद है तुमने एक बार तोहफे में...
राधा कृष्ण दिए थे...
पत्थर के...
तुम दूर क्या हुई..
अब उनमें भी दरारें आ गयी हैं..
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तुम्हारी याद...
जानता हूँ सेहत के लिए ठीक नहीं...
पर छोड़ी नहीं जाती...
आदत जो पड़ गयी है...
इसलिए अब फिल्टर लगा कर पीता हूँ...

13 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सभी क्षणिकाएन बहुत सुंदर ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भावों से गुँथा शब्द समुच्चय..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सूरज का हलवा .... ओह , गरमागरम

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बड़ा मुश्किल हो जाता है कमेन्ट करना......
अब टिप्पणी के रूप में कोई निबंध तो नहीं लिख सकते न!!!!

अनु

बेनामी ने कहा…

कमाल है...मंत्रमुग्ध कर देते हैं आप सच कहूँ तो आपकी कलम में कभी कभी तो गुलज़ार साहब का गुमान होता है......सूरज का हलवा, फिल्टर ....वाह ।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

kamal ki kshanikaayen hain. seedhe dil me jagah bana rahi hain.

सदा ने कहा…

वाह ... बहुत खूब ।

vandana gupta ने कहा…

क्या कहूँ ? निशब्द हो जाती हूँ।

M VERMA ने कहा…

यादों को फ़िल्टर करने की यह अदा अच्छी लगी

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

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उम्दा लेखन, बेहतरीन अभिव्यक्ति


हिडिम्बा टेकरी
चलिए मेरे साथ



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♥ पहली बारिश में गंजो के लिए खुशखबरी" ♥


♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥

ब्लॉ.ललित शर्मा
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ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

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Asha Joglekar ने कहा…

याद है तुमने एक बार तोहफे में...
राधा कृष्ण दिए थे...
पत्थर के...
तुम दूर क्या हुई..
अब उनमें भी दरारें आ गयी हैं..

सारी ही क्षणिकाए बेहद सुंदर दिलीप जी । पर ये वाली ज्यादा अच्छी लगी ।

Ashish ने कहा…

उत्तम अतिउत्तम

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