ग़ज़ल के ज़ायके में, गम का तड़का भी ज़रूरी है...

Author: दिलीप /


ज़हेन में चाहे ही, बिकने की तैय्यारी अधूरी है...
सियासत में मगर, मालूम हो कीमत, ज़रूरी है...

फटी हरियालियों ने कब भला ढँका ग़रीबी को...
कभी सरकार ने घूरी, कभी लाला ने घूरी है...

था जिसका घर, उसी को आज, इक कमरा मयस्सर है...
है घर का एक कोना थार, और बाकी मसूरी है...

वो बोले साँप, रस्सी को, कई डसवा भी आए हैं...
यहाँ पर बिक रही चमचा-गिरी और जी-हुज़ूरी है...

बनाई आग, फिर मज़हब, बनाई झोपड़ी फिर भी...
ज़मीं है सोचती, इंसान भी, कितना फितूरी है..

बड़ी उम्मीद से, खेतों को गिरवी रखके भेजा था...
है अब मुन्ने को लगता, अम्मा कहना बेसहूरी है...

वो लिखना चाहती थी हाल माँ से, पर वो क्या लिखती...
वो बेटी जल गयी, बाकी बची चिट्ठी अधूरी है...

मना करते रहे साहब, मगर वो खा गया रोटी...
सड़क पर गिर गयी तो क्या, वो दिन भर की मजूरी है....

डुबोया आँसुओं में नाम तेरा, आँच दी थोड़ी...
ग़ज़ल के ज़ायके में, गम का तड़का भी ज़रूरी है...

9 टिप्पणियाँ:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...............
वो लिखना चाहती थी हाल माँ से, पर वो क्या लिखती...
वो बेटी जल गयी, बाकी बची चिट्ठी अधूरी है...

बहुत खूब.....
गज़ल के जायेके में गम का तडका......

अनु

सदा ने कहा…

डुबोया आँसुओं में नाम तेरा, आँच दी थोड़ी...
ग़ज़ल के ज़ायके में, गम का तड़का भी ज़रूरी है...
वाह ... बहुत खूब ।

Unknown ने कहा…

आँसू पर गम का तड़का...गजल की शक्ल में...

बेनामी ने कहा…

सुन्दर और शानदार प्रस्तुति।

Prakash Jain ने कहा…

Ek aur benamun rachna...adbhoot bhaav....

M VERMA ने कहा…

बड़ी उम्मीद से, खेतों को गिरवी रखके भेजा था...
है अब मुन्ने को लगता, अम्मा कहना बेसहूरी है...

छूती हुई गज़ल .. बहुत सुन्दर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच है..

kunwarji's ने कहा…

जी, बिलकुल जरुरी है ......
मार्मिक!
कुँवर जी,

दिलीप ने कहा…

shukriya doston

एक टिप्पणी भेजें