दरवाजे थोड़ा तो खोलो, दिल चौखट पर पड़ा वहाँ...
उसपर भी कहती हो मुझसे क्या मुश्किल है जीने मे...
बंद हुई खिड़की पर अब भी बारिश देती है दस्तक...
क्यूँ खोलूं बूँदों से उसकी, आग लगेगी सीने मे....
पीने को तब तक पीते हैं जब तक तुम न आ जाओ...
नशे मे भी ना दिखो अगर, तो मज़ा कहाँ है पीने मे...
मेरी मुश्किल और मुफ़लिसी, क्या समझेंगे लोग यहाँ...
ख़ुदग़रजी की इस दुनिया मे, प्यार कहाँ है सीने मे...
अपनी यादों से कह दो, हो और मेहेरबाँ शेरों पर...
चुभते हैं पर अब भी थोड़ा, कम चुभते हैं सीने मे...
बाहर चाहे कितना ही तन्हा दिखता हूँ मैं तुमको...
सजी हुई है महफ़िल' यादें नाच रही हैं सीने मे
उसपर भी कहती हो मुझसे क्या मुश्किल है जीने मे...
बंद हुई खिड़की पर अब भी बारिश देती है दस्तक...
क्यूँ खोलूं बूँदों से उसकी, आग लगेगी सीने मे....
पीने को तब तक पीते हैं जब तक तुम न आ जाओ...
नशे मे भी ना दिखो अगर, तो मज़ा कहाँ है पीने मे...
मेरी मुश्किल और मुफ़लिसी, क्या समझेंगे लोग यहाँ...
ख़ुदग़रजी की इस दुनिया मे, प्यार कहाँ है सीने मे...
अपनी यादों से कह दो, हो और मेहेरबाँ शेरों पर...
चुभते हैं पर अब भी थोड़ा, कम चुभते हैं सीने मे...
बाहर चाहे कितना ही तन्हा दिखता हूँ मैं तुमको...
सजी हुई है महफ़िल' यादें नाच रही हैं सीने मे
14 टिप्पणियाँ:
बाहर चाहे कितना ही तन्हा दिखता हूँ मैं तुमको...
सजी हुई है महफ़िल' यादें नाच रही हैं सीने मे
बहुत खूब .....बहुत सुंदर
waah sir ji ..
अपनी यादों से कह दो, हो और मेहेरबाँ शेरों पर...
चुभते हैं पर अब भी थोड़ा, कम चुभते हैं सीने मे...
बाहर चाहे कितना ही तन्हा दिखता हूँ मैं तुमको...
सजी हुई है महफ़िल' यादें नाच रही हैं सीने मे
adbhut...behtareen....
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अहा, आनन्द आ गया, यादें ऐसे ही बमचक मचाती हैं मन में।
अपनी यादों से कह दो, हो और मेहेरबाँ शेरों पर...
चुभते हैं पर अब भी थोड़ा, कम चुभते हैं सीने मे...
बाहर चाहे कितना ही तन्हा दिखता हूँ मैं तुमको...
सजी हुई है महफ़िल' यादें नाच रही हैं सीने मे
bahut khob sir
वाह वाह...
ख़ुदग़रजी की इस दुनिया मे, प्यार कहाँ है सीने मे...
बेहतरीन...
मेरी मुश्किल और मुफ़लिसी, क्या समझेंगे लोग यहाँ...
ख़ुदग़रजी की इस दुनिया मे, प्यार कहाँ है सीने मे...
बहुत उम्दा और खुबसूरत शेर.....दाद कबूल करें|
"अपनी यादों से कह दो, हो और मेहेरबाँ शेरों पर...
चुभते हैं पर अब भी थोड़ा, कम चुभते हैं सीने मे..."
क्या ग़जब ढाया है चन्द शब्दों ने तेरे ...
वो चुभन सहने की तलब उठी है मेरे भी सिने में....
कुँवर जी,
पीने को तब तक पीते हैं जब तक तुम न आ जाओ...
नशे मे भी ना दिखो अगर, तो मज़ा कहाँ है पीने मे...
अपनी यादों से कह दो, हो और मेहेरबाँ शेरों पर...
चुभते हैं पर अब भी थोड़ा, कम चुभते हैं सीने मे...
kya sher hain......
khoobsoorat...
बहुत ही बढ़िया सर!
सादर
अपनी यादों से कह दो, हो और मेहेरबाँ शेरों पर...
चुभते हैं पर अब भी थोड़ा, कम चुभते हैं सीने मे...
.....
वाह क्या गज़ल कहि है दिलीप जी बहुत खूब !
BEHTAREEN GAZEL.
Sirji pranaam.. :)
//अपनी यादों से कह दो, हो और मेहेरबाँ शेरों पर...
चुभते हैं पर अब भी थोड़ा, कम चुभते हैं सीने मे...
bawaal ekdum.. bawaal..
पीने को तब तक पीते हैं जब तक तुम न आ जाओ...
नशे मे भी ना दिखो अगर, तो मज़ा कहाँ है पीने मे...
मेरी मुश्किल और मुफ़लिसी, क्या समझेंगे लोग यहाँ...
ख़ुदग़रजी की इस दुनिया मे, प्यार कहाँ है सीने मे...
वाह!!! कमाल का लिखा है आपने बहुत खूब शायद यही है सच्चा इश्क...
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